Shikha Gola

Others Drama

4.9  

Shikha Gola

Others Drama

ट्रेन लेट

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केरल में मेरी पोस्टिंग हुए लगभग 3 महीने हो चुके थे लेकिन अब भी मेरा मन यहां बिल्कुल नहीं लगता था। केरल की हरी-भरी सुंदर वादियां और सुहावना मौसम भी मेरे मन की उदासी को कम नहीं कर पाया था। पहली बार घर से इतनी दूर होने पर मुझे हर पल घर की याद सताती रहती थी। हालांकि ऑफिस में मेरे सभी सहकर्मियों का व्यवहार अच्छा था लेकिन फिर भी यहां वह अपनापन महसूस नहीं होता था जो अपने दिल्ली शहर में, अपनों के बीच होने पर होता था। नौकरी के नियमों के अनुसार अभी तो लगभग 6-7 महीने तक दिल्ली या एनसीआर में पोस्टिंग होने की कोई सम्भावना भी नहीं थी। यहां केरल में मैंने आफिस के नजदीक ही एक होमस्टे कुछ महीनों के लिए किराए पर ले लिया था। मैं हमेशा सोचती कि काश कोई तो परिचित यहां होता जिससे मुझे यहां अजनबियों जैसा एहसास ना होता। 

आज मुझे 1 हफ्ते के लिए ऑफिस के काम से दिल्ली जाना था लेकिन खुश होने के बजाय मैं इस बात से नाखुश थी की मेरी 15 दिन की छुट्टी की अर्जी ना मंजूर हो गई थी।

सुबह जल्दी उठकर मैं ऑफिस के लिए तैयार हुई और ऑफिस का काम निपटा कर रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हुई। ऑफिस से रेलवे स्टेशन तक पहुंचने के लिए कम से कम 2 घंटे का वक्त लगता था। रास्ते में नजाने कैसे मेरे सूटकेस का हैंडल टूट गया, इस बात से मन झुंझलाया हुआ था। रेलवे स्टेशन पर पहुंची तो पता चला की ट्रेन 2 घंटे लेट है। यह जानकर मन में और चिड़चिड़ाहट भर आई। एक तो सिर्फ 1 हफ्ते के लिए दिल्ली जाने को मिला था ऊपर से अब 2 घंटे और इंतजार करना पड़ेगा। इस बात से गुस्से में मन में आया कि जाना कैंसल करके वापस होमस्टे चली जाऊं। अकेले यहां इंतजार करते हुए अभी मुश्किल से सिर्फ आधा घंटा ही बीता था। अजनबियों के बीच, अनजान शहर में अकेले इंतजार करना बड़ा लंबा लग रहा था। कुछ देर तक इंतजार करने के बाद मैंने गुस्से में समान उठाया और वापस होमस्टे जाने का फैसला किया। टूटे हुए सूटकेस को संभालते हुए मैं कुछ दूरी पर ही आगे बढ़ी थी कि अचानक मुझे पीछे से किसी ने आवाज लगाई। इस अनजान जगह पर अजनबियों के बीच अपना घरेलू नाम सुनकर मैं चौक गई। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो थोड़ी दूरी पर एक फ्रेंच दाढ़ी वाला जेंटलमैन सा दिखने वाला एक युवक, मुस्कुराते हुए मेरी ओर ही देखते हुए हाथ हिला रहा था। मुझे लगा मुझे कोई गलतफहमी हुई है इसलिए मैंने अपने दाएं और बाएं देखा, फिर दुबारा उस युवक को देखा तो पाया कि वह मेरी ओर ही देख रहा था। मैं उसे पहचान नहीं पा रही थी। मैंने दुबारा उसे गौर से देखा, तो मेरे चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कुराहट खिल आई। मैं धीरे से फुसफुसाई, 'जॉन'। जॉन मेरे साथ दिल्ली के स्कूल में पढ़ता था और मेरे सबसे अच्छे दोस्तों में से एक था। 12वीं के बाद वह आगे की पढ़ाई करने फ्रांस चला गया था। उसके बाद उससे कभी कोई कांटेक्ट नहीं हुआ। लेकिन आज इस अनजान शहर में लगभग 12 साल बाद अपने बचपन के इस दोस्त को इस तरह देखकर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। जॉन तेज कदमों से चलता हुआ मेरे पास आया और बोला, "तुम यहां कैसे?" हम दोनों ने लगभग एक साथ ही एक-दूसरे से यह सवाल किया और हँस दिए। जॉन ने कहा, "चलो पास के कैफे में कॉफी पीने चलते हैं, वहीं बैठकर बात करेंगे"। जॉन ने बताया कि वह कल ही फ्रांस से 1 महीने के लिए यहां आया है क्योंकि उसकी फैमिली कुछ महीने पहले ही दिल्ली से केरल शिफ्ट हुई थी। यहां रेलवे स्टेशन पर वह आज अपने एक परिचित को छोड़ने आया था और मिल गया मुझसे। यह जानकर मुझे और खुशी हुई जब मुझे यह पता चला की जॉन का घर मेरे होमस्टे व ऑफिस से केवल 10 मिनट की दूरी पर ही था। हमारी बातें थी कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। लेकिन 2 घंटे जरूर खत्म हो गए थे। अब हम वापस रेलवे स्टेशन आ गए थे। ट्रेन भी प्लेटफॉर्म पर आ चुकी थी। अब मुझे जल्दी से दिल्ली जाकर वापस लौटने की ज्यादा जल्दी और खुशी थी क्योंकि वापस आकर जॉन के साथ और बहुत सारी बची बातें करना और साथ में केरल घूमना जो तय हुआ था। 

आज मुझे यह सुंदर शहर सच में और भी ज़्यादा खुबसूरत और बहुत प्रिय लग रहा था। क्योंकि मुझे इस शहर ने मेरे बचपन के सबसे अच्छे मित्र से जो मुझे मिला दिया था।


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