अनोखा वायरस
अनोखा वायरस
हुर्रे, "आज तो मज़ा आ गया पूरे दिन अपने मनपसंद कार्टून्स और अब बैटमैन मूवी देखकर", - शान टीवी का रिमोट पापा को देते हुए मन ही मन खुद से बोला।
इतने में फिर से किचन से मम्मी की आवाज़ आई,"कल स्कूल भी जाना है शान, नौ बज चुके हैं, जाओ जाकर सो जाओ अब।"
"अरे यार," कितने इनटरस्टिंग फैक्टस दिखा रहे हैं न्यूज़ चैनल पर चाईना के बारे में, मुझे भी अभी पापा के साथ बैठकर इन्हें देखने का मन है" - शान ने मन ही मन खुद से कहा और फिर बिना मन से मुंह लटकाए अपने रूम में जाकर बैड पर लेट गया। बैड पर लेटे-लेटे ही शान सोचने लगा, पता नहीं ये रोज-रोज स्कूल क्यों जाना पड़ता है?, "काश, रोज सनडे होता, हम रोज छुट्टी मनाते। रोज़ पूरे दिन कार्टून्स और मूविज देखते, अगर ऐसा होता तो कितना मजा आता।" ये ही सब सोचते-सोचते शान को कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।
टीवी के शोर से शान की आंखें खुली तो वह आवाज़ सुनकर उठ खड़ा हुआ और अपने कमरे से बाहर निकलकर ड्रॉइंग रूम की ओर गया, तो देखा उसके मम्मी-पापा टीवी के सामने बैठे न्यूज देख रहे हैं और बहुत घबराए हुए लग रहे हैं। टीवी पर बेक्रिंग न्यूज की हैडलाईंस में लिखा था - "बैट का वायरस- कोविड"। न्यूज में बताया जा रहा था के चाइना में चमगादड़ को खाने से 'कोविड' नाम का एक अदृश्य खतरनाक वायरस पूरी दुनिया में तेजी से फैल रहा है, जिसकी वजह से देशभर ही नहीं पूरी दुनिया में लाॅक्डाउन लगा दिया गया है। जिसके कारण कोई भी अपने घरों से बाहर नहीं निकल सकता। सभी दुकानों, स्कूलों, कॉलेजों, आॅफिसो, बाज़ारों, रेस्तराओंं, माॅल्स आदि सभी निजी और सार्वजनिक जगहों को बंद कर दिया गया है।
ये सब सुनकर पहले तो शान भी घबरा गया लेकिन फिर जल्द ही उसने सोचा, "चलो अच्छा है अब स्कूल नहीं जाना पड़ेगा। ना मम्मी जल्दी सोने को कहेंगी, ना जल्दी उठने को, ना अब बाजार भेजेंगी, ना होमवर्क करने को कहेंगी। अब तो बस आराम से बैठकर पूरा दिन टीवी देखूंगा, खाऊगां, पीऊंगा, खेलूंगा और सोऊंगा। कितना मजा आएगा, यही तो मैं चाहता था" शान मन ही मन खुश होता हुआ खुद से बोला।
आज लॉकडाउन के पंद्रह दिन हो गए थे शान को बहुत मजा आ रहा था। अब ना कोई होमवर्क की टेंशन, ना ट्यूशन, ना स्कूल, बस टीवी और आराम "वाह लाइफ हो तो ऐसी" शान मन ही मन खुश होते हुए खुद से कहता।
लेकिन एक महीने से वह सिर्फ घर का बना खाना खाते-खाते बोर जरूर हो गया था। उसे चाऊमिन, पिज़्ज़ा, बर्गर के साथ-साथ पुरानी दिल्ली के फलूदा-कूल्फी, गोलगप्पे, चाट-पापडी, जलेबी की भी बहुत याद आ रही थी। वैसे तो मम्मी हर दिन उसकी पसंद का ही खाना बना रही थी, "लेकिन जो बात रेस्टोरेंट के खाने में होती है वह घर के खाने में कहाँ," उसने सोचा, "लेकिन बाजार तो बंद है इसलिए कुछ कर भी नहीं सकते।"
इसी तरह घर में रहते-रहते दिन बीतने लगे। आज शान चुपचाप और उदास अपने कमरे में बैठा था। मम्मी ने पूछा क्या हुआ तो बोला "मैं बोर हो रहा हूं" तो मम्मी बोली, "तो जाकर टीवी देख लो या पीसी पर गेम खेल लो।" शान ने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन उसे मन ही मन गुस्सा आ रहा था। "बस टीवी और गेम, इसके अलावा लाइफ में कुछ और नहीं है क्या? आज तीन महीने हो गए, मैं स्कूल और पार्क भी नहीं गया।" यह सोचते-सोचते उसकी आंखों में आंसू आ गए। वह बैड पर जाकर लेट गया और याद करने लगा के कैसे वह स्कूल में अपने दोस्त के साथ पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद और मस्ती भी किया करता था। कितना मजा आता था, जब मम्मी उसे सामान लाने के लिए बाज़ार भेजती थी तो वह भी अपनी पसंद की आइसक्रीम, मोमोज, चाट-पकौड़े आदि चीजें भी खरीद कर लाता और खाता था। हर शाम ट्यूशन के बाद कैसे शाम को पार्क में दोस्तों के साथ मजे से साइकिल चलाता और झूले-झूलता था। सब कुछ कितना मज़ेदार और अच्छा लगता था। आज उसका इंडिया गेट जाकर खुली हवा में हरे-हरे घास के मैदान पर नंगे पावँ दौड़ते हुए गुब्बारों से खेलने का बहुत मन कर रहा था, जहाँ उसे पहले जाना बिल्कुल पसंद नहीं था और बहुत बोरिंग लगता था। जब कभी मम्मी-पापा उसे इंडिया-गेट घुमाने ले जाते तो वह अक्सर सोचता, "यह भी कोई घूमने की जगह है, इससे अच्छा तो माॅल जाकर गेम्स खेलने और मूवी देखने में है"। लेकिन आज उसे यह एहसास हो गया था के पेेड़-पौधों से मिलने वाली ठंडी - ताजी हवा और हरी-हरी घास की ठंडक में जो सुकून मिलता है, वह बंद माॅल्स या फ्लैट्स के एयर कंडिशनरस की ठंडक में नहीं।
उसे याद आ रहा था जब वह मम्मी-पापा के साथ जू गया था तो बाकी लोगों की तरह उसे भी कितना मजा आ रहा था, अजीब-अजीब तरह की आवाजें निकाल कर जानवरों को डराने में। आज उसे भी अपनी जिंदगी पिंजरे में कैद उन्हीं जानवरों जैसी लग रही थी, जिसे कोविड नाम का वायरस डरा रहा था और घर में कैद होने पर मजबूर कर दिया था। उसे ऐसे लगने लगा जैसे अगर कुछ और दिन वह घर में कैद रहा तो उसका दम घुट जाएगा। यह सोचते ही वह घबरा गया और डर से रोते-रोते वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा "मुझे स्कूल जाना है, मुझे स्कूल जाना है, मुझे स्कूल जाना है"। तभी मम्मी ने उसका हाथ पकड़ कर हिलाया और कहा "हांँ तो पहले उठ तो जाओ, कब से आवाज लगा रही हूं बस निकल जाएगी, अब जल्दी उठ कर तैयार हो जाओ"। शान ने मम्मी की आवाज़ सुनकर अपनी आंखें खोली, तो देखा सुबह हो गई है और घड़ी में सुबह के छः बज रहे है। "तो क्या मैं सपना देख रहा था?... मतलब वह सपना था बस?", खुशी से चहकता और खुद से ही बोलता हुआ शान नहाने के लिए बाथरूम की ओर भागा।
अब वह अपने दोस्तों के साथ बस स्टैंड पर खड़ा स्कूल बस का इंतजार कर रहा था। आज शान बहुत खुश नजर आ रहा था, बार-बार मन ही मन भगवान को थैंक-यू बोल रहा था क्योंकि कोविड वायरस सच नहीं बस उसका एक अनोखा सपना था और उसकी जिंदगी पिंजरे में कैद रहने वाले जानवरों जैसी नहीं बल्कि खुली हवा में उड़ने वाले पंछियों की तरह है, जिन्हें वह अपने घर में एक छोटे से पिंजरे में कैद रखने की चाह रखा करता था। लेकिन आज वह समझ गया था की पंछियों के रहने की असली जगह और खुशी खुले आसमान में है, घर में कैद रहने में नहीं।
