सत्यम शिवम सुंदरम्
सत्यम शिवम सुंदरम्
सावन का महीना । चारों तरफ धुली धुली प्रकृति । आसमान में छाये बादल व बूंदाबांदी के बीच नजर एक मंदिर पर जाकर ठहर गई । शिव के लिए विशेष तौर पर अवकाश नहीं निकाल पाई थी किंतु बारिश की रिमझिम फुहारों से बचने के लिए भोले भंडारी के आश्रय स्थली की जरूरत आ ही पड़ी थी ।
दूर क्यारी में कुछ रंग बिरंगे खूबसूरत से फूल खिले थे एक फूल अपने लिए अपनी खुशी के लिए तोड़ लेने की इच्छा से कदम फूलों की दिशा में उठे किंतु डंठल पर अनगिनत कांटे देखकर ठिठककर रुक गयी एक फूल अपने पीछे अनेकानेक कांटों को छुपा लेता है
हम अपने जीवन के अनगिनत काँटों को दुख को पीड़ा को वेदना को इसी तरह पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं यह भी हमारे जीवन का एक खूबसूरत सच ही तो है कथा कहानियों के संसार में उलझी उलझी सी मैं अपने आप को भुला बैठी थी संभवतः हमारे रचनाकार आदिकाल से कथा कहानियों का तानाबाना इसीलिए बुनते रहे होंगे लिखते रहे होंगे रचते रहे होंगे
श्रद्धाभाव से सजे धजे चेहरे । आंखो मे भक्ति की चमक उत्साह उमंग । लोगों की चहल पहल । प्रसाद का वितरण मंदिर को आकर्षण का केंद्र बना ही देता है
मंदिर में घुसते ही नंदी गणेश जी ब्रह्मा जी हनुमान जी सब से मुलाकात होती गई विष्णु जी महेश जी भी अपनी अपनी जगह पर सुखपूर्वक विराजमान हैं किंतु क्या ही अजीब बात है कि कुमारी कन्याएं शिव की ही पति के रूप में कामना करती हैं! न उनके पास महल है ना नौकर चाकर। न हीं शरीर की सुंदरता बढ़ाने वाले वस्त्र आभूषण । एक भी चीज़ तो ऐसी नहीं है उनके पास जो वैभवपूर्ण महिमा का गान कर सके । गले में मोटे मोटे अजगर की माला पहने मृगचर्म लपेटे यदि साक्षात रूप में किसी कुवारी कन्या के सामने आ जाए और लड़की कमजोर दिल की हुई तो उसका बेहोश होना तो तय ही है लेकिन लुटिया भर जल के साथ कामना शिव से पति की ही है । ऐसा भी नहीं है कि यह प्रथा वर्तमान काल में तय किया गया हो पुरातन काल से ही शिव ने सर्वोत्तम पति के रूप में अपना वर्चस्व कायम कर रखा है । ऐसा क्या है शिव में!
ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की है । हाथ में बहीखाता लिए हिसाब किताब में तल्लीन दिखते हैं युवतियों की पसंद के मामले में पहला कारण तो यह रहा होगा कि सृष्टिकर्ता के रूप में हाथ में बही खाता लिए हुए बेहद हिसाबी किताबी से दिखते हैं खुदा ना खास्ता इस जमाने की किसी कन्या की उनसे शादी हो भी गई और कन्या चुपके से कोई साड़ी या कान के बुंदे ही ले आई तो उनकी भेदती हुई अनुभवी आँखों से बच नहीं सकती जीवन के इतने बड़े आनंद से कोई भी स्त्री स्वयं को क्यों वंचित रखना चाहेगी ! होंगे वो सृष्टि के रचयिता ! कुमारी कन्याएं सिर्फ इतनी सी प्रतिष्ठा के लिए अपना पूरा जीवन दांव पर तो नहीं लगा सकती! आखिरकार उनका भी अपना जीवन है
शायद इसीलिए कुमारी कन्याओं ने उनकी तरफ से अपने रास्ते मोड़ लिए हैं ।
विष्णु जी । विष्णु जी शब्द के उच्चारण में ही एक तेजस्वी आभामंडल वाले देदीप्यमान पुरुष का प्रतिरूप उभरता है । सुदर्शन चक्रधारी मंद मंद मुस्कुराते लकदक कपड़े श्रेष्ठतम आभूषणों से सुसज्जित वो ऐसे दिखते हैं कि किसी भी रूपसी का मन मोह लें । उनकी अर्धांगनी होने का अर्थ है कुबेर का खजाना प्राप्त हो जाना । कमल के पुष्प पर बैठी लक्ष्मीजी स्वर्ण मुद्राएं लुटा रही हैं किंतु कन्या शिव जी का ही वरण करना चाहती है । कितनी आश्चर्यजनक बात है! संभवतः हमारे पूर्वजों ने भांप लिया होगा कि स्वर्ण आभूषण मान सम्मान व प्रतिष्ठा की भारी कीमत चुकानी पड़ती है । इतनी बड़ी सृष्टि को चलाने की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है । पति का साथ पाने की इच्छा रखना नारी का सहज स्वभाव होता है । सृष्टि को चलाने के लिए विष्णुजी के लिए जगह जगह से बुलावे आते रहते हैं तरह तरह की रणनीति बनानी पड़ती होगी सुदर्शन चक्र के इस्तेमाल आतंक व भय को फैलाने के लिए उनके कार्यकर्ता लगे रहते होंगे यह उनकी ऑफ़िशियल मजबूरी भी हो सकती है जिसके तहत हर जगह वह लक्ष्मी जी के साथ नहीं जा सकते
विष्णु जी के साथ एक और बात है कि वह ओवर लोडेड भी हैं जब न तब उनको पृथ्वी पर अवतार भी लेना पड़ता है उस दरमियां एक लंबी अवधि के लिए उनकी पत्नी को विरह वेदना सहने के लिए मजबूर होना पड़ता है
अब आते हैं गणेश जी हालांकि सभी देवी देवताओं में उनकी वंदना सबसे पहले की जाती है किंतु एक तो उनकी पसंद के सारे व्यंजन यथा लड्डू मोदक बनाने में बहुत समय लगता है और महंगाई के जमाने में घी भी बहुत ज्यादा लगता है पति रूप में गणेश जी का वरण करना है तो उनका मन पसंद व्यंजन भी बनाओ और उनकी सवारी मूषक से बचाकर यह शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्तरों पर बड़ा ही थका देने वाला काम है फिर गणेश जी विश्व की परिक्रमा के नाम पर अपने माता पिता की परिक्रमा करके वापस आ जाते हैं वो बाजी जीत जाते हैं किंतु सोचने की बात है कि घूमने फिरने की शौकीन कन्याओं की इच्छा तो मन में ही धरी रह जाएगी श्री व्यास के कहने पर महाभारत के 18 पोथी लिखने में कितना समय व्यतीत कर दिया यह भी जगजाहिर है भला कोई कन्या झंझट में उलझे देखकर कैसे हामी भर सकती है! इससे तो कुंवारी भली!
शिव के साथ पार्वतीजी अपनी संपूर्ण गरिमा व सम्मान के साथ बराबरी में विराजमान हैं शिव भोले भी हैं झंझटों को दूर कर गृहस्थी की गाड़ी आगे बढ़ाने का प्रयास भी यथासंभव करते रहते हैं
कैलाश पर्वत का नैसर्गिक व प्राकृतिक दृश्य मनमोहक भी है और मनभावन भी आम आदमी गर्मी की छुट्टियों में छुट्टियां मनाने के लिए हिल स्टेशन की तैयारी करता है जिसके लिए सालभर हिसाब किताब बिठाता है रिजर्वेशन की मारामारी होटलों की भीड़ सफर की लंबी उबाऊ और थका देने वाली यात्रा के बाद गंतव्य तक पहुँच जाता है चार दिन बाद फिर वापसी की यात्रा सब कुछ बड़ा बोझिल होता है यहाँ पार्वतीजी की सदाबहार छुट्टियाँ नीले गगन के तले आनंद व कुशल मंगल के साथ व्यतीत होती है सबसे अच्छी बात यह है कि इतनी ऊँचाई पर मेहमाननवाजी का ज़्यादा सिरदर्द भी नहीं यहाँ तक इक्के दुक्के ही कभी कभार आ पाते हैं वे भी शिव के तीसरे नेत्र के भय से जल्दी ही लौट भी जाते हैं बर्फीली प्रांत में सर्दी के भय से आगंतुक ज्यादा देर रुकना भी नहीं चाहते एक पत्नी व्रत का नियम से पालन करते हैं कुवारी कन्या के लिए इससे श्रेष्ठ और क्या बात होगी ! शिव सामाजिक बंधनों व रीती रिवाजों के अनावश्यक भार से मुक्त हैं वे स्वतंत्र है साहसी हैं निष्पक्ष हैं और निर्भय भी हैं आनंदस्वरूप हैं
उन्हें जो कुछ अर्पित करें चाहे जल चाहे दूध चाहे भोग चाहे पुष्प या फिर बेल पत्र सब कुछ वे आगे की तरह बढ़ा देते हैं जिसे भी जो कुछ ग्रहण करना है चाहे तो प्रसाद स्वरूप ग्रहण कर ले या फिर प्रकृति के आशीर्वाद स्वरूप
शिव इसीलिए सुन्दर हैं क्योंकि वे हर हाल में निर्मल हैं यहाँ तक कि समुद्र मंथन से निकले विष का पान करके उनका कंठ नीला हो गया किंतु जस के तस बने रहे सरल निर्मल
वैसे एक बात है कि पौराणिक कथाओं के संसार में हम खुद को भुला ही बैठते हैं
वहीं पास में रखे लौटे में जल भरकर धीरे धीरे शिव का महामस्तकाभिषेक अपने भावों के साथ करने लगी । ओम नमः शिवाय के अलावा और कोई मंत्र आता नहीं था अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए हम सरीखे अनाड़ी लोगों के लिए यह एक मंत्र बड़े काम की चीज़ है।
हर मौके पर अपने आस पास खूबसूरत सा रक्षा कवच पैदा कर ईश्वर के निराकार होने का हर कोई अपने अपने ढंग से फायदा उठा ही लेता है ।
जल द्वारा शिव का महाभिषेक अभी संपूर्ण हो ही रहा था कि एक महिला ने वहाँ प्रवेश किया और शिव पर बेलपत्र धतूरा चढ़ाते हुए मुझे भी अपना साझीदार बना लिया । शिव के लिए यह थाल सजाकर आप अपने लिए लाई थी। मैंने बहुत ही औपचारिक लहज़े में कहा । जिसे औपचारिक संकोच कहना ज्यादा उचित होगा।
कोई बात नहीं । आपका धर्म और पुण्य मेरे बही खाते में चला जाएगा । धुली धुली मुस्कुराहट बाहर की प्रकृति से कितनी मिलती जुलती सी लग रही थी । शिव के अभिषेक में उनकी साझेदारी इसलिए भी अच्छी लग रही थी कि मेरे धन्यवाद को उन्होंने ईश्वर की कृपा व मर्जी पर डाल दिया । बिना एहसान के किसी के साथ चंद पल बिताना सबसे खूबसूरत लम्हा होता है । जिसे ताउम्र मन के किसी कोने में हम खूबसूरती से सजाकर रखते हैं।
