सत्संग महिमा
सत्संग महिमा
एक महात्मा के कई शिष्य थे। उनमें से अधिकतर महात्मा जी को अपनी साधना का अनुभव सुनाया करते थे। आज ध्यान में मैंने ऐसा देखा, ऐसा अनुभव किया, आज अमुक समाधि का अनुभव हुआ। एक शिष्य था जो महात्मा जी की सेवा में बहुत समय से लगा था। उसे इन शिष्यों के अनुभवों की बात सुनकर बड़ा दुख होता था। मैं भी साधना बड़े समय से कर रहा हूँ। महात्मा जी की सेवा भी कर रहा हूँ। मुझे कोई अनुभव क्यों नहीं होता? मुझे न कुछ ज्ञान प्राप्त हुआ न समाधियों का आनंद प्राप्त हुआ।
एक दिन महात्मा जी अकेले बैठे थे। उनके पास गया, बड़े दुःखी हृदय से महात्मा जी से निवेदन किया-" प्रभु मैं आपकी सेवा में लंबे समय से हूँ।नित्य आपके आदेशानुसार साधना भी करता हूँ,फिर भी आज तक मुझे कोई भी अनुभव नहीं हुआ। मैं तो आपकी सेवा में आने पर भी कोरा ही रह गया हूँ। गुरुदेव मुझ पर दया करें।" महात्मा जी ने उसे सांत्वना देते हुए कहा- वत्स ऐसी बात नहीं है, अभी तुमने अपने को जाना नहीं है।
"अच्छा तुम प्रातः काल वन में जाना, कोई अच्छा छायादार वृक्ष देखकर वहां अपनी साधना करना।"
वह गुरु महाराज की आज्ञा के अनुसार वन में गया। एक वृक्ष के नीचे सफाई कर ध्यान किया तथा ध्यान के पश्चात लौटकर महात्मा जी के आश्रम में आया। महात्मा जी के चरण स्पर्श किए और वहीं बैठ गया। महात्मा जी ने पूछा कि- "क्या तुम वन में गए थे? उस शिष्य ने कहा-" गुरुवर मैं वहीं से आ रहा हूं।"
" ध्यान किया था? "गुरु महाराज ने पूछा।
"हां, गुरुदेव आपके द्वारा बतलाई साधना की थी",शिष्य ने कहा।
"वहां क्या देखा ?" गुरु ने पुनः पूछा।शिष्य ने कहा- "प्रभु वहां तो वन था, कुछ विशेष तो वहाँ नहीं था।हाँ जिस वृक्ष के नीचे मैंने ध्यान किया था उस वृक्ष पर एक काक पक्षी का जोड़ा था। दोनों खूब शोर कर रहे थे लेकिन जब मैं ध्यान में बैठा था तो दोनों शांत हो गए। मैंने अपनी साधना की और वापस आ गया।"
"ठीक है कल फिर जाना और वहीं बैठ कर ध्यान करना", गुरु महाराज ने कहा। वह साधक प्रातकाल पुनः वन में गया उसी वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान किया और आश्रम लौट आया। गुरु जी ने पूछा- "आज तुमने क्या देखा?" साधक ने कहा- "गुरुवर कल जो पक्षी का जोड़ा बैठा था आज वहां एक हंस का जोड़ा बैठा था। गुरु महाराज ने कहा- ठीक है कल फिर जाना। वह साधक फिर वहां गया। जब लौटकर आश्रम में आया, तो गुरु जी ने पूछा- आज क्या देखा? तो साधक ने कहा-" गुरु महाराज आज तो बड़ी विचित्र घटना हुई मैंने वहां ध्यान किया, ध्यान समाप्त कर जब चलने को था कि स्वर्ग से बड़ा दिव्य विमान उतरा तथा उस वृक्ष से एक अति सुंदर स्त्री पुरुष का जोड़ा उतरा। उसने कृतज्ञता पूर्ण दृष्टि से मुझे देखा, मुझे प्रणाम किया और वह विमान में बैठकर स्वर्ग लोके को चला गया।"
तब महात्मा जी ने स्पष्ट किया कि तुम्हारे एक दिन के सत्संग से चांडाल पक्षी युग्म हंस का जोड़ा बना और दूसरे दिन के सत्संग से उनकी मुक्ति हो गई।
कहा भी है- "पल भर केेे सत्संग से कोटिन पाप मिट जायें।"