सत सत चित आनंद
सत सत चित आनंद
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा का महत्व प्रत्येक शिष्य को होना चाहिए। कहते है इस दिन व्यास पूजा करने की पद्धति प्राचीन काल से प्रचलित है। महर्षि व्यासजी इस संस्कृति के महा शिल्पकार महाज्ञानी महाभारत के रचयिता थे। उनकी याद में ही यह दिन मनाया जाता है इसीलिए समाज में यह सबसे पावन दिन माना गया है।
व्यास जी ने महाभारत जैसा ग्रंथ लिखकर दुनिया में लोभ मोह करुणा ममता की धरोहर संजोकर रखी है।
महर्षि व्यास जी ग्रंथों में धर्मशास्त्र नीति शास्त्र व्यवहार ज्ञान तथा मानसशास्त्र का अद्भुत वर्णन किया है। सभी ग्रंथों में सर्वश्रेष्ठ ज्ञान ग्रंथ लिखा है। इससे मुक्ति पंथ का मार्ग सरल होता है।
इतना विस्मयकारी महाभारत ग्रंथ ज्ञान का महा भंडार महर्षि व्यासजी के मस्तिष्क की उपज आज हर एक इंसान को मुग्ध कर देता है। हर पंक्ति में हजारों पंक्तियों का अर्थ छुपा होता है। धर्म अर्थ मोक्ष काम इस महाकाव्य की कलात्मकता, मनोरंजकता, रसिकता बेजोड़ कोहिनूर हीरे की तरह आज भी चमक रही है तथा करोड़ों जन मन पर राज कर रही है।
सबसे पहले महर्षि व्यासजी की पूजा बड़ी श्रद्धा भाव से लोग करते है तथा अपने अपने आराध्य गुरुदेव की पूजा पूर्णमासी पूर्णिमा को करके लाभ लेते है। इस दिन अपने गुरु के दर्शन करने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। मन का अंधकार दूर होकर ज्ञान का प्रकाश जीवन में भर जाता है तथा विकसित ऊर्जा से हम नया काम कर जाते है।
सदगुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का यह दिन है।
ज्ञान का विशाल सागर गुरु चरणों में छिपा होता है। ज्ञान प्रकाश का अंजन अगर थोड़ा सा भी लगा लिया तो हमारा जन्म सुधर जाता है। जिन्हें गुरु मिलते है वह अति भाग्यशाली लोगो मे गिने जाते है। गुरु के अनंत उपकार हमे काली अंधेरी दुनिया से बाहर लाते है।
गुरु विष्णु गुरुर ब्रह्मा गुरु देवो महेश्वरा
गुरु साक्षात पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः
जो व्यक्ति सदगुरु के बताए मार्ग पर चलता है उसे सुख शांति की कमी नहीं होती। गुरु ईश्वर का ही दूसरा नाम है।
अर्वाचीन काल में गुरु और शिष्य के संबंधों का आधार गुरु का ज्ञान ही था। गुरुदेव निस्वार्थ भाव परम उदारता का प्रतीक माना गया है। गुरु पर दृढ़विश्वास, समर्पण, अनुशासन, श्रद्धा, आज्ञा पालन करना यह एक अच्छे शिष्य के गुण होने चाहिए।
सदगुरु एक तेजपुंज है सदगुरु भय का नाश करने वाला है। सदगुरु वह एक बहने वाला निर्झर जलस्रोत संगम है।
सत् चित् आनंद का हृदय रस अमृत कलश है। कुबेर का अक्षय खजाना है। जो पीता है सदा के लिए उसकी प्यास खत्म हो जाती है। जय सत चित आनंद सद्गुरु देव की जय।
