संतृप्ति
संतृप्ति


'ले यह भगोना भी साफ कर ,पिछले दो दिन से गंदा रखा है, तुझे तो समाज सेवा से ही फुर्सत नहीं ।' कावेरी ताई ने सुधा की ओर भगोना गुस्से से सरकाया और मुहँ बिगाड़ कर चली गई।सुधा की शादी को अभी दो वर्ष हुए थे , समाज सेवा और असहायों की सहायता करने में उसकी रुचि थी ,इसलिए उसने आशा सहयोगिनी का कार्य शुरू किया ,पर कावेरी ताई को बहू का यह काम रास नहीं आया, आए दिन वह सुधा को खरी खोटी सुनाकर अपने गुस्से का शिकार बनाती , मायूस सी सुधा को उसके पति का सहारा था ,पति का सकारात्मक दृष्टिकोण कि यह समाज सेवा है, तुम्हारी सहायता से गांव की प्रसूताओं को समय पर उचित सुविधा के साथ प्रसव के लिए पहुंचा पा रही है, तुम किसी की चिंता मत करो बस अपना कार्य मन लगाकर करो । यह सब उसे नई ऊर्जा देता और वह दुने उत्साह से कार्य में निमग्न हो जाती । अचानक कराहने की आवाज सुन बर्तन नीचे रख पल्लू को सम्भालती हुई सासु माँ के कमरे की ओर भागी ...क्या हुआ दीदी? बड़ी ननद को प्रसव हेतु उनके घर लाया गया था आज ही नौंवा महीना शुरू हुआ था , कावेरी ताई अपनी बेटी पर सुधा की छाया तक नहीं गिरने देती थी। अरे दूर हट...:तू क्या समझेगी ,तू बस सबके दर्द देख ।'कहकर कावेरी अपनी बेटी को पुचकारने लगी ।'बहुत दर्द हो रहा है माँ लगता है अभी कुछ हो जाएगा ।'इस महामारी के दौर में समय पर कोई डॉक्टर नहीं मिला तो ,सोच कर कावेरी ताई पसीने में भीग गई ।तभी सुधा ने ननद को ढांढस बँधाया ...दीदी आप चिंता मत करो अपने अस्पताल की डॉक्टर से बात करती हूँ ,वह जानती है मुझे शायद कुछ हो जाए ..."हैलो मैड़म ....मैं आशा सहयोगिनी सुधा बोल रही हूँ, एक अर्जेन्ट केस है आप देख लिजिए ना,दीदी है मेरी।"फोन पर अनुनय विनय के बाद डॉक्टर मान गई और कुछ विलम्ब बाद उत्तर सुनकर ..."ठीक है मैड़म अभी पहुंचते हैं।" सुधा कुछ तसल्ली से बोली ...."माँ जी डॉक्टर तैयार है अब जल्दी चलने की तैयारी करो ।पर कावेरी निशब्द और स्तब्ध थी और दौड़ भाग कर रही अपनी बहू को देखकर सोच रही थी यह मेरी बहू है जिस पर मैं दिनरात बड़बड़ाती हूँ ..आज यही मेरे काम आ रही है ,इतना सुनाने के बाद भी मेरे साथ खड़ी है अपनी बहू को मन ही मन धन्यवाद दे रही थी पर शर्म के मारे कावेरी से कुछ बोला नहीं गया ।घर का बिखरा काम और बर्तनों का ढ़ेर,आधे धूले बर्तनों को देखकर निकलती हुई कावेरी ताई आज संतृप्त थी।