समाज में बच्चों का शोषण और कुपोषण
समाज में बच्चों का शोषण और कुपोषण
जैसा कि आपने शीर्षक से अनुमान लगा लिया होगा कि मेरा लेख किस संदर्भ में है परन्तु फिर भी में इसे पूर्णतः स्पष्ट कर देता हूं।
मैं अपने बड़े भैया के साथ घूमने के लिए आज खाटू जा रहा था। हम जयपुर के रास्ते होते हुए खाटू जा रहे थे। हम प्रातः 5:30 बजे जयपुर पहुंच गए। सिंधी कैंप जयपुर के वहां मैंने एक दृश्य देखा। "एक मां अपने दो बच्चों के साथ भीख मांग रही थी।" एक बच्चा लगभग एक वर्ष का होगा और दूसरा लगभग चार वर्ष का। वो महिला मेरे पास आयी और भीख मांगने लगी। मैंने उसे रुपए देने से साफ इनकार कर दिया। इस एवज में उस महिला ने कहा-"साब पैसे नहीं देवों तो कोई बात नहीं, मेरा बच्चा भूखा है। इसे कुछ खाने-पीने का सामान ही दिलवा दो। यह सुनकर मेरा मन सहसा रुका और यह विचार करने को विवश हो गया कि क्या सच में इसका बच्चा भूखा है?
मेरे पास भी ज्यादा पैसे नहीं थे क्योंकि कोविड-19 के कारण शिक्षण संस्थान बन्द पड़े हैं और मै निजी विद्यालय में शिक्षक हूं जो आजकल बेरोजगार हैं क्योंकि विद्यालयों द्वारा उन्हें काम पे बुलाया नहीं जा रहा। फ़िर भी मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उस महिला को आधा लीटर दूध दिलवा दिया। इस दृश्य को देखकर मेरे भैया भी शायद मुझ पर गुस्सा कर रहे होंगे मन ही मन कि 1-2 रुपया ही दे देता, दूध दिलवाने की क्या आवश्यकता आन पड़ी? परन्तु उन्होंने मुझसे कहा कुछ भी नहीं। क्या पता वो भी मेरी ही तरह सोच रहे हों इसका मुझे अनुमान नहीं था।
मैं उस महिला को दूध दिलाकर उसे देखता रहा और कहा कि इस दूध की थैली को वापस बेचोगी नहीं बल्कि मेरे सामने अपने बच्चों को पिलाओ। अक्सर भिखारी लोग ऐसे लोगों द्वारा दी गई वस्तुओं को पुनः बेचकर पैसे ले लेते हैं। परन्तु इस महिला ने ऐसा नहीं किया। मेरे सामने उसने अपने बच्चों को दूध पिलाया।
मुझे इस बात की तो संतुष्टि हुई कि कम से कम इस महिला ने झूठ नहीं बोला। जिस जगह वह महिला अपने बच्चों की जठराग्नि को शांत कराने के लिए भीख मांग रही थी वहां पर चाय का ठेला था जिस पर कम से कम 15 लोग चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे परन्तु किसी ने भी उसे चाय के लिए नहीं पूछा कि भीख में पैसे तो नहीं देंगे, पर हां! हम चाय पी रहे हैं और तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को चाय पिलवा सकते हैं। ऐसा साहस दिखाने की मानवता रूपी हिम्मत वहां किसी में न थी।
अंततः उस महिला ने बच्चों को दूध पिला दिया। मैंने दूध चाय के ठेले वाले से लिया था। उस दूध की वास्तविक कीमत 28 रूपए थी और उस ठेले वाले ने मुझसे इस आधा लीटर दूध के पूरे के पूरे 40 रूपए वसूल किए। मुझे उस ठेले वाले पर बड़ा विचार आया बल्कि न सिर्फ उस एक ठेले वाले पर बल्कि उसके स्वभाव वाले अन्य सभी व्यक्तियों पर विचार आया कि लोग किस तरह से अनैतिक रूप से किसी की मजबूरी का फ़ायदा उठाते हैं।
मैं अपने इस संस्मरण के माध्यम से सिर्फ ये पूछना चाहता कि govt. system में इन परिवारों और बच्चों के लिए कोई सहायता नहीं? सरकार की अधिकांश योजनाएं सिर्फ कागजों में सिमटी पड़ी है। इसका मूल कारण है- कर्तव्य के प्रति निष्ठा नहीं होना।
सरकार RTE के माध्यम से बच्चों की शिक्षा की बात करती है परंतु ये बच्चे पुस्तकों से शिक्षित नहीं हो रहे बल्कि कटोरा रूपी भीख मांगने के कार्य में शिक्षित हो रहे हैं।
सभी जिम्मेदारियां सिर्फ सरकार की नहीं है बल्कि हम आम आदमी को भी इन पिछड़े बच्चों को मूल धारा से पुनः जोड़ना होगा।
अगर किसी को कोई भीख मांगता बच्चा या कोई महिला दिखे या मिले तो उसे भीख में पैसे नहीं खाद्य-पेय सामग्री दे। बच्चे को हाथ में कटोरा नहीं पुस्तक थमाने का हर संभव प्रयास करें और यह कार्य आगंतुक नहीं कर सकते बल्कि स्थानीय लोग कर सकते हैं।
वो अपने आसपास में भीख मांगने वाले बच्चों को school का रास्ता दिखा सकते हैं तथा स्थानीय प्रशासन की मदद से उनके अभिभावकों को कुछ न कुछ कार्य दिलवा सकते हैं जैसी उनकी मानसिक और शारीरिक योग्यता हो।
मैं स्वयं भी अपने क्षेत्र में इस संबंध में प्रयासरत हूं और आप सभी से भी करबद्ध निवेदन करता हूं कि आप भी अपने क्षेत्रीय निवास में ऐसा कोई वाद देखने या सुनने को मिले तो उस पर न सिर्फ संवेदना प्रकट करें बल्कि अपना मानव धर्म निभाते हुए उनकी मदद अवश्य करें।
ये बच्चे हमारे देश के भावी कर्णधार हैं। इन्हें सही दिशा देना हर मानव का कर्तव्य है।
धन्यवाद।