Sapna K S

Others

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श्रध्दांजली....

श्रध्दांजली....

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अक्सर औरतों को अपने पतियों से कहते देखा और सुना हैं कि,

" हाँ ... मैं ही हूँ जो निभा रहीं हूँ,

कोई और होती तो कब के तुम्हें छोड़ के चली जाती ....


क्यूँ कहती हैं वो ऐसा ?

क्यूँ हरपल वो मर्द को ताने कसती हैं ?

घर पर किसी चीज की कमी पड़ जाये तो, लग जाती हैं रोने...

या फिर पड़ोसन की नयी चीजों को देखकर माथा पिटने .....के उसके किस्मत में ही ऐसा पति मिला हैं जो उसके लिए कुछ नहीं कर सकता...


एक तरफ से देखो तो इस में गलती उस औरत की होती ही नहीं हैं....

क्यूँ कि उसने बचपन से घर पर एक पति को नहीं, बाप को देखा होता हैं,

जो अपने बच्चों के खुशी के सब कुछ ला देता हैं ,

जिस लिए अगर घर पर गरीबी हो तो भी,

दुखों का कम ही लोगों को एहसास होता हैं,

 बाकी अमीर तो अमीर ही होते हैं, उनको भी खुशी के अलावा किसी भी चीजों की कमी नहीं होती,

और इसी कारन वो अपनी खुशीयों को चीजों से नापने लग जाते हैं , 

हाँ , और अक्सर इसी प्रजाती का नाम होता है पड़ोसी .....


और बाकी की कमियाँ को पूरी कर ही देती हैं रोमांटीक फिल्में,

जहाँ दो घंटों के लिए एक नायक अपने नायिका के लिए,

दुनिया की वो हर खुशी देता हैं ,जो उसकी नायिका चाहती है...

ये भी एक तो कहानी की माँग होती या फिल्मों को बनाने वालों की,

क्यूँ के असल जिंदगी से नायक का इन बातों से दूर -दूर तक कोई नाता हीं नहीं होता.......


इन सबसे हटकर जो हमारा नायक होता हैं ना, उसका क्या?

उसे तो फिर भी सिर्फ यहीं सुनना होता हैं ना कि,

" अगर तुम्हारी औकात नहीं थीं, तो शादी क्यूँ की ...

हमारे घरवालों ने, ना जाने कौन सी दुश्मनी निभाई हैं,

जो तुम्हें हमारे मथ्थे बाँध दिया हैं,

ना हम सुकुन से जी सकते हैं ना मर ... "


( हमें इस बात पर बस इतना कहना हैं कि,

"बहन अगर तुम्हारे घरवालों की ही इतनी औकात होती तो,

वो तुम्हें अंबानी के घर ना ब्याह देता....यूँ इस बेचारे को इतना सहना ना पड़ता...)


और ऐसी बातों से परेशान होकर मर्द साला मर मराकर ओवरटाइम कर ले तो उसमें में भी इनको परेशानी ...

 ये कॉल करेगी ये पूछने को के आपने खाना खाया ? 

उस वक्त मर्द शायद काम में होगा तो वो कॉल लेकर बस कह देगा के,

 हाँ, खा लिया ... या ना खाया हो तो कहेगा के थोड़ी देर में खा लूँगा....

और कॉल कट कर देता हैं....

फिर यहाँ तो , मैड़म ने कॉल किया था ना,

उनको जो चिंता थी पति की ...

और पति को देखो तो कितना घमंड़ी के कॉल कट दिया बेचारी का...


यहीं शुरू होती हैं असली "महाभारत"


फिर इनका कहना कि,

तुम्हारा बाहर किसी से चक्कर चल रहा हैं,

जो काम का नाम लेकर अब घर वक्त पर नहीं आते ...

पुरा दिन तुम्हारे लिए मर मरा लो, और रात को यूँ इंतजार करते रहों,

फिर भी इनको बाहर की मौज पसंद हैं,

ये नहीं के घरपर कोई भूखी इनका इंतजार कर रहीं हैं.....

तुम को अगर इतना ही उसके साथ रहना अच्छा लगता हैं तो, छोड़ क्यूँ नहीं देते मुझे...

मैं अपने बच्चों को लेकर अपने माँ बाप के पास चलीं जाऊँगी....


( यहाँ पर भी बस इतना कहना हैं हमें के, 

बहन अगर तुम्हें अब वे स्वीकार कर लेंगे तो काहे को लड़की हैं इस बात पर बोझ समझ कर ब्याह दिया तुम्हें)


यहाँ पर भी मर्द बस इतना ही कहता हैं कि,

तुम्हें जो सोचना हैं सोच लो,

मैं अपना काम नहीं छोड़ सकता ...

( क्यूँ कि उसे अच्छे से पता होता हैं कि,

अगर काम छोड़ देगा तो उसके परिवार का क्या होगा...)


क्यूँ कि, कभी - कभी खाना तो छोड़ो,

एक वक्त की चाय भी उसे नसीब नहीं होती...

अगर हाथ में पैसे हो चाय पीने का तो वक्त नहीं होता,

अगर पैसे ना हो तो,

पैसों को कैसे कमाएँ ये चिंता होती हैं क्यूँ कि,

घर का भाड़ा, स्कुल की फीस, राशन, दवाइयाँ, कपड़े ..इन सबका इंतजाम नहीं कर पायेगा......


इसी दौरान वो एक ही सहारा अपनाता हैं 

वो हैं "शराब "

सोचता हैं,

दो चार पैग पीकर सो लेगा शांति से,

फिर पहले जो सहारा होती हैं, वो ही उसकी लत बन के उसे धीरे -धीरे अंदर से खाने लगती हैं...


इस पर भी और नया नाम उसे मिल जाता हैं ,

"शराबी"


मर्द हैं ना तो साला शिकायत करें भी तो किस सें,

अगर शिकायत करें तो अबला पर जुल्म,

और ना करें तो भी,

अबला को धोका दे रहा हैं.....


कई मर्द इन सब बातों से हारकर अपनी जान भी हार जाते हैं,

सोच लेते हैं कि ऐसे रोज मरने से अच्छा हैं कि,

एक बार ही मर जाना .....


क्या मिला इनको एक मर्द बनकर.....

एहसासों को छुपाकर,

साला रोज,

नहीं....

हर पल मरना ही पड़ता हैं.....


बात कड़वी पर सच्ची हैं...

ऐसे हर मर्दों के जीते जी ही....

हमारी और से उनके लिए,

" श्रध्दांजली ""


क्यूँ कि, उनके कंधे से कंधा मिलाकर साथ देना इस समाज को पसंद नहीं आयेगा,

तो प्रशंसा की बात ही छोड़ो यार.......



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