शेयन
शेयन
आजादी से पहले की बात है। उस समय देश में जंगली जानवर कोई भी पाल सकता था। कोई पाबंदी नहीं, ना ही किसी कागजात, ना ही सरकार की कोई आदेश की जरूरत।
जहां तक याद है, मैं कक्षा 7 का विद्यार्थी था। खुशी से सड़क पर झूमता नाचता चला आ रहा था। विद्यालय के परीक्षा में अच्छे अंक से पास किया था। तभी मेरी नजर अपनी कैम्पस के बाहर लगे गुलमोहर के पेड़ पर बैठे एक बाज पर पड़ी, जो कौओं के बीच स्पष्ट दिखाई दे रहा था। मेरे हाथ में एक थैला था, जिसमें कसाई के दुकान से काटा हुआ मुर्गे का मीट था। मैंने एक मीट का टुकड़ा बाज को दिखाकर नीचे गिरा दिया, फौरन पेड़ से उड़कर बाज नीचे आया और मीट को खाने लगा। वैसे उड़े तो कौए भी थे, पर कुछ मेरे होने का डर और कुछ बाज का डर, के कारण कौए दूर ही मंडराते रहे। कुछ देर बाद एक और मीट का टुकड़ा फेंका और बाज के बच्चे ने उसे भी खा लिया। फिर मैं अपने हाथों से एक एक टुकड़े को उसके सामने रखता गया और वह भी बड़े प्यार से उसे खाते गया। वह आकार में बहुत छोटा था। लग तो रहा था जैसे चूजा हो क्योंकि वह लड़खड़ाते हुए मांस का टुकड़ा खा रहा था। एक एक टुकड़ा देते हुए पता भी न चला, कब मेरी पूरी थैली खाली हो गई? अब अपनी जेब खर्च के पैसे से चॉकलेट के बजाय अगले दिन भी एक मुर्गे की बलि दी। आज भी उतनी ही प्यार से पेड़ से उड़कर बाज नीचे आया और मेरे हाथों से एक-एक टुकड़ा लेकर खाने लगा। कई दिन बीते और एक दिन बाज को घर ला दिया।
घर के लोग अचंभित हो गए कि यह पगला क्या ला दिया? इसकी देखभाल कौन करेगा? बाकी जानवरों और पक्षियों के साथ बाज कैसे रह पाएगा? बहुत गुरु गोविंद सिंह बन रहा है, मां गुस्से में बोलते जा रही थी।
पर मुझे इस बेजुबान से लगाव हो गया था। शांत हो कर बोला- जैसे बाकी जानवरों को रखा है, इसकी भी देखभाल मैं ही करूंगा। इस बाज के अलावा मेरे पास खरगोश, बिल्ली, गौरैया ,मोर, देसी विदेशी कुत्ते के साथ कई पशु पक्षी भी थे । मैंने उस बाज का नाम श्येन रखा। संस्कृत में बाज को श्येन कहा जाता है। वह बड़ा ही प्यारा था। एक आवाज लगाने पर उड़ कर वापस आ जाया करता था। अब घर वालों से भी श्येन घुल मिल गया था, यहां तक कि गौरैया और मोर के साथ भी खेला करता था।
एक दोपहर श्येन बाकी के पक्षियों के साथ दूर के पेड़ पर खेल रहा था और खरगोश घर के लाॅन में घास खा रहा था। लोग घर के अंदर आराम कर रहे थे।तभी बाहर के कोलाहल चिड़ियों की चहचहाहट से घर के लोग बाहर आए। कारण कुछ समझ नहीं आ रहा था, तभी श्येन को झाड़ी के पास छटपटाते देखा, श्येन अपनी चोंच में एक नाग के फन दबोचें था। नाग मर चुका था, पर मरने के पहले लगता है विषदंत चुभा चुका था। रामू डंडे से नाग को अलग किया। तभी श्येन लुढ़कते मेरे पास आया खरगोश अहसानमंद हो अपने दोनों पंजों से श्येन को सहला रहा था। मेरे आंखों से दो बूँद आंसू श्येन के उपर आ टपका, वो खुशी से पंख फैलाना चाह रहा था पर कर ना सका और मेरे ही हाथों में चिर निद्रा में सो गया।