शेर और टपका
शेर और टपका
एक गॉंव था, छोटा सा, उनींदा सा। गाँव के पीछे पहाड़ी पर एक शेर रहता था। जब भी वह दहाड़ता गाँव के लोग डर के मारे काँपने लगते।
एक दिन शेर शिकार की खोज में भटकता भटकता एक खेत में आ निकला और बारिश तूफ़ान में फँस गया। बारिश से बचाव के लिए वह एक झोपड़ी की ओट में दुबक गया ।उस झोपड़ी की छत टपक रही थी।अचानक झोपड़ी के अंदर एक छोटा बच्चा रोने लगा ।वह लगातार रोता जा रहा था ,शेर ने झोपड़ी से आती आवाज़ सुनी। मॉं बच्चे को चुप कराने की कोशिश कर रही थी ।वह कह रही थी-"चुप रहो,देखो लोमड़ी आ रही है। कितना बड़ा मुँह है, कितना डर लगता है उसे देखकर। " लेकिन बच्चे का रोना बंद नहीं हुआ। मॉं ने फिर कहा-"लो, वह भालू आ गया। भालू खिड़की के बाहर है, बंद करो रोना।"
लेकिन बच्चे का रोना बंद नहीं हुआ, डराने का कोई असर नहीं हुआ ।
खिड़की के नीचे बैठा शेर सोच रहा था —"कैसा बच्चा है यह ! न यह लोमड़ी से डरता है ,न भालू से।"
शेर को बहुत ज़ोर से भूख लग आई थी,वह उठकर खड़ा हो गया। बच्चा अभी भी रोये जा रहा था।
तभी मॉं की आवाज़ आई-" देखो - देखो..शेर आ गया शेर। वह रहा खिड़की के नीचे। लेकिन बच्चे का रोना फिर भी बंद नहीं हुआ।
यह सुनकर शेर को इतना ताज्जुब हुआ और इतना डर गया कि वह वहीं गिरकर बेहोश सा हो गया। शेर ने सोचा कि-" वह कैसे जान गई कि मैं यहॉं हूँ ?"ज़रा देर बाद वह संभला और खिड़की के अन्दर झॉंका। बच्चा अभी भी रो रहा था । लगता नहीं था कि शेर का नाम सुनकर उसे ज़रा भी डर लगा।
शेर ने आज तक कोई ऐसा नहीं देखा था जो उससे नहीं डरता हो। वह तो यही समझता था इसका नाम सुनकर ही दुनिया के सारे जीव डर से काँपने लगते हैं । लेकिन इस बच्चे ने कोई परवाह नहीं की। उसे किसी चीज़ का डर नहीं है ,शेर का भी नहीं।शेर को अब चिन्ता होने लगी।
तभी मॉं की आवाज़ फिर सुनाई दी-" लो .. अब चुप रहो। परेशान कर दिया इस टपके ने , क्या इससे कोई बचाव नहीं?" उसने टीन का बक्सा जोर से खिसकाया तो वह खाट से टकराया। फिर उसने लकड़ी का छोटा सा बक्सा खींचकर दीवार से लगा दिया, तो दीवार हिल गई।
शेर बाहर दीवार के साथ दुबका हुआ था। उसने मॉं का चिल्लाना सुना-"यह टपका टिप टिपवा मार डालेगा मुझे। "
बच्चे का रोना फ़ौरन बन्द हो गया। बिलकुल सन्नाटा छा गया। शेर घबरा गया और हैरान भी हुआ । उसने सोचा-" यह टपका कौन है ? यह कोई भयानक जीव होगा टपका। आवाज़ कितनी अजीब है !" शेर को चिंता भी हुई और डर भी लगा।
उसी समय कोई भारी चीज़ उसकी पीठ पर धम्म से गिरी।शेर ने सोचा कि उसकी पीठ पर कूदने वाला टपके के सिवा और कोई नहीं हो सकता।
असल में उसकी पीठ पर एक चोर कूदा था जो उस घर से गाय भैंस चुराने आया था। अंधेरे में शेर को गाय समझ कर वह छत पर से उसकी पीठ पर कूदा था।
डरा तो चोर भी। चोर की तो जान ही निकल गई जब उसने जाना कि जिस जानवर की पीठ पर वह सवार है वह गाय नहीं , शेर है।
शेर बहुत तेज़ दौड़ा जिससे टपका नीचे गिर पड़े ।लेकिन चोर शेर की पीठ को कसकर पकड़े रहा क्योंकि वह जानता था कि ज्यों ही वह नीचे गिरेगा, वह शेर का भोजन बन जायेगा।
शेर अपनी जान को डर रहा था , और चोर अपनी जान को। पौ फट गई। भाग्य से चोर ने एक पेड़ की लटकती हुई डाल देख ली। वह उसे पकड़कर पेड़ पर चढ़ गया और डालों के बीच छिप गया। शेर की पीठ से छुटकारा पाकर उसने चैन की साँस ली।
शेर ने भी चैन की सॉंस ली। उसने भगवान् को धन्यवाद दिया अपनी जान बचाने के लिए ।उसने मन ही मन में कहा कि टपका सचमुच बड़ा भयानक जीव है। वह वापिस पहाड़ी पर अपनी गुफा में चला गया।
कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि अपने मन की कल्पना से ही प्राणी डरता रहता है बिना ठीक से चीज़ों को जाने समझे। साहस रखना चाहिये और परिस्थिति को ठीक से समझ बूझकर तब काम करना चाहिये।