सब्जियां
सब्जियां
एक लघु कहानी
जब मैं छोटा था तो मेरी माँ, घर के लिए सब्जियाँ, एक सब्जी बेचने वाली से खरीदती थीं, जो रोज हमारे घर सब्जी बेचने आती थी।
रविवार को वह सब्जी बेचने वाली पालक के बंडल लेकर आई। उनकी कीमत उसने एक रुपये प्रति बंडल बोली। मेरी माँ की कीमत प्रस्ताव उसकी बोली हुई कीमत से ठीक आधी थी: हालाँकि माँ ने उससे वादा किया था कि वह उस कीमत पर उससे चार बंडल खरीदेगी। कुछ देर तक दोनों अपनी-अपनी कीमत पर अड़े रहे। सब्जी वाली ने विनम्रता से कहा की वह उस कीमत पर अपनी लागत भी नहीं वसूल कर पायेगी। उसने सिर पर टोकरी लादी और चली गई।
चार कदम आगे बढ़ने के बाद, सब्जी वाली पीछे मुड़ी और चिल्ला कर बोली," चलिए इसे 75 पैसे बंडल का तय कर देते हैं।" मेरी माँ ने ना में अपना सिर हिलाया और अपने मूल प्रस्ताव 50 पैसे बंडल पर अटकी रही। सब्जी वाली चली गई।
वे दोनों एक-दूसरे की रणनीतियों को भली-भांति जानते थे। सब्जी वाली मुड़ी और हमारे घर तक वापस आई। मेरी माँ दरवाजे पर उसका जैसे इंतज़ार ही कर रही थी। उनके चेहरे पर एक विजयी मुस्कान थी।
यह सौदा मेरी माँ के प्रस्ताव बोली पर ही हुआ था। सब्जी वाली वहाँ स्थिर बैठ गई जैसे कि वह एक समाधि में हो। मेरी माँ ने प्रत्येक बंडल को अपने हाथ से धीरे धीरे उछालकर वजन और गुणवत्ता की पैनी जाँच की।
बंडलों की प्रारंभिक छंटनी के बाद उन्होंने अंततः अपनी संतुष्टि के चार बंडल छांट लिए और छोटे सिक्कों से उनका पूरा भुगतान कर दिया।
सब्जी वाली ने बिना गिने पैसे ले लिए। जैसे ही वह उठी, वह चक्कर आने के कारण लड़खड़ा गई। मेरी माँ ने उसका हाथ पकड़ कर पूछा कि क्या उसने सुबह से खाना नहीं खाया क्या? सब्जी वाली ने कहा, "नहीं, आज की कमाई से ही, मुझे कुछ चावल खरीदना है और घर जाकर खाना बनाना है।"
मेरी माँ ने उसे बैठने के लिए कहा। माँ जल्दी से अंदर चली गई और कुछ चपातियों और सब्जियों के साथ तेजी से वापस आई और सब्जी वाली को खाने को दी। माँ ने पानी की बोतल भी उसे दी और उसके के लिए चाय बनाने लगी। सब्जी वाली ने भूख और कृतज्ञता पूर्वक खाना खाया, पानी पिया और चाय पी। उसने मेरी माँ का तहे दिल से शुक्रिया अदा करते हुए, अपनी सब्जी की टोकरी सिर पर रखी और अपने काम पर चली गई।
मैं हैरान था। मैंने अपनी माँ से कहा, आप दो रुपये के सामान के लिए मोल भाव करने में होशियारी दिखा रही थीं, लेकिन उस सब्जी वाली को महंगा भोजन देने में उदार थी, ऐसा क्यों?
मेरी माँ मुस्कुराई और बोली, "मेरे प्यारे बच्चे, व्यापार में कोई दया नहीं होती और दयालुता में कभी कोई व्यापार नहीं होता।