सार्थक राह
सार्थक राह
"बड़के भैया को प्रणाम" ...इतनी उत्सुकता में एक रूढ़िवादी इलाके के निम्न वर्गीय रामदास ने इलाके के प्रधान मानी सेठ (ठाकुर) को अपनी चप्पलों को हाथ में लेकर ,सिर झुकाकर सहृदयता से अभिवादन किया और प्रत्युत्तर क्या मिला ,"ए कुत्ते ,ए लीचड़ जीते जी नरक करवायेगा क्या ,चल हठ साले ,तुम्हारी बिरादरी से ही हमें दिक्कत है। काहे नहीं मर जाते सब सल्फास लेकर" ठाकुर ने भयंकर रौब झाड़ते हुए कहा । बेचारा रामदास दुखी हो गया उसे लग रहा था मानो किसी ने उसके हृदय पर जमकर आघात कर दिया हो ,वह शांतचित्त और रुआँसा होकर अपने घर की ओर लौट गया ।
वक़्त के पहिये घूम ही रहे थे दिन भी बदलाव के आने वाले थे । कुछ दिन बाद ठाकुर को भयंकर कोढ़ की बीमारी हो गयी और दूर दूर तक कोई वैध नज़र नही आया ।जो वैध मिले तो उनसे कोई विशेष परिणाम नहीं मिल पा रहा था ।ठाकुर की स्थिति अब डांवांडोल हो गई थी ,उसे अपनी मौत के बादल मंडराते हुए दिखाई दे रहे थे। हर जगह जो भी प्रसिद्ध वैध थे सबको बुलाया पर अंततः कुछ नहीं हुआ ।
फिर किसी ने एक नव जानकर वैध का घर बताया ,जहाँ बहुत लोगों की बीमारी का इलाज सकुशल हुआ ,ठाकुर ने भी वहीं जाने का मन बनाया और जिंदा रहने की उम्मीद को बरकरार रखने के लिए वो उस घर पर गया ।वैध के यहाँ ठाकुर का भली भांति उपचार हुआ और कुछ ही दिन बाद इस भयंकर बीमारी से ठाकुर को निजात मिली। वो वैध के प्रति कर्तव्यनिष्ठ हो गया ,क्योंकि मौत के मुंह से बाहर लाने में वैध ने अपना हर सम्भव प्रयास किया और अंततः जटिल बीमारी से छुटकारा दिला ही दिया ।
कुछ दिन बाद रामदास ठाकुर के यहाँ उनकी खैरियत पूछने के लिए आया ,लेकिन ठाकुर ने फिर अपमानित स्वर में रामदास को ज़लील किया।उसी वक़्त ठाकुर के नौकर ने ठाकुर को बताया कि जिसका आप तिरस्कार कर रहे हो उसी के बेटे नवीन ने आपको बीमारी से निजात दिलवाया है ,यह सुनकर ठाकुर के पैरों तले ज़मीन खिसक गई ।उसने जिस भाव से रामदास का अपमान किया था वो बिल्कुल ही अनुचित और निन्दाकारी है ख़ुद में ही ठाकुर बहुत शर्मिंदा हुआ ,उसने रामदास के पैरों में पड़कर माफी मांगी औऱ रामदास से कहा "मैं भूल ही गया था कि मैं भी वसुधैव कुटुम्बकम का सिद्धांत प्रतिपादित करने वाले भारत वर्ष का बेटा हूँ, जो रूढ़िवादी क्षेत्र में अपनी सोच को गंदे दलदल में फंसा रहा था ,उसने रामदास को गले से लगाया और फिर साथ में बैठकर चाय पीने लगे।
