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Sujata Khichi

Children Stories Inspirational

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Sujata Khichi

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राजा और ऋषि कि कहानी

राजा और ऋषि कि कहानी

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ढोलकपुर नाम के साम्राज्य में एक जाने-माने ऋषि रहते थे, जो लोगों का भाग्य बताने के लिए प्रसिद्ध थे। उस राज्य का हर व्यक्ति उन प्रसिद्ध ऋषि व उनके कौशल के बारे में जानता था। एक दिन उस ऋषि के बारे में वहां के राजा को भी पता चला।

राजा के मन में भी अपने भविष्य को जानने की इच्छा होने लगी। इसी के चलते उसने अपने सैनिकों को ऋषि के पास भेजा और पूरे सादर-सम्मान से उन्हें महल लेकर आने का आदेश व आमंत्रण दिया।

राजा की आज्ञा के अनुसार सैनिक ऋषि के पास गए और ऋषि को राजा का आमंत्रण सुनाते हुए उनसे महल चलने की प्रार्थना करने लगे। ऋषि भी सैनिकों के साथ महल चलने के लिए तैयार हो गए।

जब ऋषि महल पहुंचे, तो राजा ने बड़े ही उत्साह से उनका स्वागत-सत्कार किया और उन्हें अपने दरबार में सम्मान के साथ बैठाया। जब ऋषि ने थोड़ा आराम कर लिया, तो राजा ने ऋषि के सामने अपने मन की इच्छा रखी और उनसे अपने भविष्य के बारे में पूछा।

ऋषि ने राजा से उसकी जन्मकुंडली मंगाई और उसे ध्यान से देखने लगे। कुछ देर तक राजा की कुंडली देखने के बाद प्रसिद्ध ऋषि ने राजा को बताया कि भविष्य में उनका भाग्य आशीर्वाद भरा हुआ है और जीवन में सबकुछ अच्छा ही होगा। इस तरह ऋषि ने राजा के भाग्य में बारे म

ें अच्छी-अच्छी बातें बताई।

राजा खुद से जुड़ी अच्छी भविष्यवाणी सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने खुश होकर ऋषि को सोने और चांदी का उपहार दिया।

इसके बाद राजा ने ऋषि से अपने भविष्य से जुड़े दुर्भाग्य के बारे में पूछा। राजा के पूछे अनुसार ही ऋषि ने राजा के दुर्भाग्य से जुड़ी बातें भी बता दीं। उन्हें सुनकर राजा बहुत क्रोधित हो गया। वह गुस्से में ऋषि पर चिल्लाने लगा और धमकाते हुए कहा कि इतनी बेतुकी बातें करने की आपकी हिम्मत भी कैसे हुई।

राजा ने गुस्सा होते हुए अपनी तलवार निकाली और ऋषि की तरफ इशारा करते हुए कहा कि अब मुझे मेरी मृत्यु का समय बताओ।

ऋषि समझ चुका था कि राजा अपना दुर्भाग्य सुनकर उसपर क्रोधित हो गया है। राजा की मृत्यु वाली बात सुनते ही वह शांति से कुछ गणना करने लगा। इसके बाद शांत स्वर में कहा, ‘मेरी गणना और कौशल के अनुसार, आपकी मृत्यु मेरी मृत्यु के ठीक एक घंटे बाद होगी।’

राजा ऋषि की यह बात सुनकर हैरान हो गया। अब उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा। उसने तुरंत अपनी तलवार नीचे रखी और ऋषि के साथ किए गए अपने दुर्व्यवहार के लिए उनसे माफी मांगी। बाद में राजा ने ऋषि को ढेर सारा धन दिया और उन्हें वापस कुटिया में आदर व सम्मान के साथ भेज दिया।


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