परवाह
परवाह
मादा कबूतर ने नर कबूतर को पास बुलाकर कान में धीरे से गुंटूर गूं कहा- "मैं प्रेग्नेट हूँ, तुम पिता बनने वाले हो, मैं तुम्हारे बच्चों की माँ।" सुनते ही नर कबूतर के कान में ऐसी आनंद की लहर दौड़ी कि तन-मन खिल उठा। मुस्कुराकर बोला- "फिर तो हमें जल्दी घोंसला बनाना होगा।"
मादा कबूतर ने सिर हिलाकर हामी भरते हुए कहा- "हाँ।" तब नर कबूतर ने उत्साह से कहा- "तो मैं अभी तिनके चुनकर लाता हूँ।"
इतना कहकर नर कबूतर खुशी -खुशी तिनके लेने के लिए उड़ गया। तिनका चोंच में दबाकर हाँफता हुआ लौटा तो मादा कबूतर ने तुरंत चोंच से तिनका अपनी चोंच में ले लिया। नर कबूतर ने स्नेह से कहा- "लो, अपने घोंसले का निर्माण करो।" मादा कबूतर ने तिनका डाली पर डालकर प्यार से कहा- "तुम्हें मेरी कितनी फ्रिक है, आई लव यू।" नर कबूतर ने स्नेह भरी निगाहों से देखा और कहा-" लव यू टू।"
नर कबूतर ने एक के बाद एक तिनके चुनकर मादा कबूतर को देता गया और मादा कबूतर ने डाली पर तिनके जमा कर सुंदर घोंसला बना लिया।
कुछ दिनों बाद मादा कबूतर ने चार अण्डों को जन्म दिया तो नर कबूतर की खुशी का ठिकाना न रहा। मादा कबूतर अपने शरीर से अण्डों को सहला रही थी तो नर कबूतर, मादा कबूतर से चोंच लड़ाकर स्नेह कर रहा था।
तभी अचानक एक आदमी ने पेड़ काटने के लिए पेड़ पर कुल्हाड़ी मारी तो नर और मादा कबूतर जान बचाकर उड़े। थोड़ी ही देर में बड़ा सा पेड़ जमीन पर आ गिरा। नर और मादा कबूतर की आँखों के सामने अण्डे जमीन पर गिरते ही टूट गये। घोंसले के तिनके -तिनके बिखर गये। मादा कबूतर अपने अण्डाें का हाल देख कर फूट-फूट कर रोने लगी तो नर कबूतर ने खुद को संभालते हुए मादा कबूतर के आँसू पोंछकर गुंटूर गूं बोला- "चुप हो जा, ये हमारी मजबूरी है, हम प्रकृति से तो लड़ सकते हैं पर मनुष्य से नहीं, वे खुद अपने बच्चों की भ्रूण हत्या करने से नही चुकते हैं तो हमारी परवाह क्या करेंगे।"
