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Charumati Ramdas

Children Stories

4  

Charumati Ramdas

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मज़ाक का माद्दा

मज़ाक का माद्दा

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एक बार मैं और मीश्का होमवर्क कर रहे थे। हमने अपने सामने नोट-बुक्स रख लीं और किताब में से लिखने लगे। साथ ही साथ मैं मीश्का को लंगूरों के बारे में भी बता रहा था, कि उनकी बड़ी-बड़ी आँखें होती हैं, जैसे कंचे, और ये कि मैंने लंगूर की तस्वीर भी देखी है, कैसे उसने बॉल-पेन पकड़ रखा था, खुद तो बहुत छोटा-छोटा था और बड़ा प्यारा था। 

फिर मीशा ने कहा:

 “लिख लिया?”

मैंने कहा:

“कब का।”

”तू मेरी नोट-बुक जाँच ले,” मीश्का ने कहा, “और मैं – तेरी।”

और हमने नोट-बुक्स बदल लीं।

और जैसे ही मैंने देखा कि मीश्का ने क्या लिखा है, तो एकदम हँसने लगा।

देखता क्या हूँ – मीश्का भी हँस-हँस के लोटपोट हुआ जा रहा हि, हँसते-हँसते वह नीला पड़ गया।

 “ मीश्का, ये तू लोट-पोट क्यों हो रहा हैि?”

और वह बोला:

 “मैं इसलिए लोट-पोट हो रहा हूँ, क्योंकि तूने गलत-सलत लिख लिया है! और तू क्यों हँस रहा है?”

मैंने जवाब दिया:

 “मैं भी इसीलिए, बस, तेरे बारे में। देख, तूने लिखा है : “बफ गिरने लगी”। ये - “बफ” कौन है?”

 मीश्का लाल हो गया:

 “बफ – शायद , बर्फ है। और देख, तूने लिखा है: ‘सर्दियाँ आ पची।’ ये क्या है?”

 “हाँ,” मैंने कहा, “ – ‘पची’ नहीं, बल्कि ’पहुँची’। कुछ नहीं कर सकते, फिर से लिखना पड़ेगा। ये सब लंगूरों की वजह से हुआ।”

और हम दुबारा लिखने लगे। और जब पूरा लिख लिया तो मैंने कहा:

 “चल सवाल पूछते हैं!”

 “चल,” मीश्का ने कहा।

इसी समय पापा आए। उन्होंने कहा :

 “हैलो, कॉम्रेड स्टुडेंट्स।।।”

और वो मेज़ के पास बैठ गए।

मैंने कहा:

 “लो, सुनो, पापा, मैं मीश्का से कैसा सवाल पूछता हूँ : मान ले, मेरे पास दो एपल्स हैं, और हम तीन लोग हैं, तो उन्हें तीनों में बराबर-बराबर कैसे बाँटना चाहिए?”

मीश्का ने फ़ौरन गाल फुला लिए और सोचने लगा। पापा ने गाल नहीं फुलाए, मगर वो भी सोचने लगे। वे बड़ी देर तक सोचते रहे।

फिर मैंने कहा:

 “हार गया, मीश्का?”

मीश्का ने कहा:

 “हार गया!”

मैंने कहा:

 “ हम तीनों को बराबर-बराबर हिस्सा मिले इसलिए इन एपल्स का स्ट्यू बनाना चाहिए।” और मैं ठहाके लगाने लगा : “ये मुझे मीला बुआ ने सिखाया था!।।।”

मीश्का ने और भी गाल फुला लिए। तब पापा ने अपनी आँखें सिकोड़ीं और कहा:

 “डेनिस, अगर तो इतना चालाक है, तो चल, मैं तुझसे सवाल पूछूँगा।”

 “पूछो, पूछो!” मैंने कहा

 “तो, सुन,” पापा ने का, “ एक लड़का क्लास पहली ‘बी’ में पढ़ता है। उसके परिवार में पाँच लोग हैं। मम्मा सात बजे उठती है और कपड़े पहनने में दस मिनट खर्च करती है। फिर पाँच मिनट पापा ब्रश करते हैं। दादी दुकान जाकर आने में उतना समय लगाती है जितना मम्मा कपड़े पहनने में प्लस पापा ब्रश करने में लगाते हैं। और दादा जी अख़बार पढ़ते हैं – उतनी देर, जितनी देर दादी दुकान में लगाती है, मायनस, जितने बजे मम्मा उठती है।    

जब वे सब इकट्ठे होते हैं तो वे इस पहली ‘बी’ क्लास के लड़के को उठाना शुरू करते हैं। इस पर उतना समय लगता है जितने में दादा जी अख़बार पढ़ते हैं , प्लस दादी दुकान जाकर आती है।

जब पहली ‘बी’ क्लास का लड़का उठता है, तो वह उतनी देर अलसाता रहता है, जितने में मम्मा कपड़े पहनती है प्लस पापा ब्रश करते हैं। और वह नहाता उतनी देर है जितनी देर दादा जी अख़बार पढ़ते हैं डिवाइडेड बाइ दादी दुकान जाकर आती है। स्कूल में वह इतना लेट पहुँचता है, जितना समय अलसाने में लेता है प्लस नहाता है माइनस मम्मा का उठना मल्टिप्लाईड बाय पापा का ब्रश करना।

सवाल ये है: ये पहली ’बी’ क्लास का लड़का कौन है और अगर उसका काम इसी तरह चलता रहा तो उसे किस बात का ख़तरा है? बस!”

यहाँ पापा कमरे के बीच में खड़े हो गए और मेरी ओर देखने लगे। और मीश्का ज़ोर से ठहाका मारते हुए हँसने लगा और वह भी मेरी ओर देखने लगा। वे दोनों मेरी ओर देख रहे थे और ठहाके लगा रहे थे।

मैंने कहा:

 “ये सवाल मैं एकदम से नहीं हल कर सकता, क्योंकि हमने अभी तक ऐसे सवाल किए नहीं हैं।”

इसके अलावा मैंने एक भी लब्ज़ नहीं कहा और कमरे से निकल गया, क्योंकि मुझे फ़ौरन इस बात का अन्दाज़ा हो गया था कि इस सवाल के जवाब में निकलता है एक आलसी लड़का और उसे जल्दी ही स्कूल से भगा दिया जाएगा। मैं कमरे से निकल कर कॉरीडोर में आया और हैंगर के पीछे चला गया और सोचने लगा कि अगर ये सवाल मेरे बारे में है, तो ये सही नहीं है, क्योंकि मैं हमेशा फ़ौरन उठ जाता हूँ और बस थोड़ी ही देर अलसाता हूँ, बस उतना ही, जितना ज़रूरी है। और मैंने ये भी सोचा कि अगर पापा को मेरे बारे में इस तरह कहानियाँ बनानी हैं, तो, ठीक है, मैं घर से चला जाऊँगा – सीधे बंजर धरती पर। वहाँ हमेशा काम मिल जाता है, वहाँ लोगों की ज़रूरत रहती है, ख़ासकर नौजवानों की। मैं वहाँ प्रकृति को सँवारूंगा।, और पापा अपने डेलिगेशन के साथ अल्ताय प्रदेश में आएँगे, मुझे देखेंगे, और मैं एक मिनट रुक कर कहूँगा:

 “नमस्ते, पापा,” और आगे चल पडूँगा ज़मीन सँवारने।

और वो कहेंगे:

 “मम्मा तुझे प्यार भेजती है।।।”

और मैं कहूँगा:

 “थैंक्यू।।। कैसी है मम्मा?”  

और वो कहेंगे:

 “ठीक है।”

और मैं कहूँगा:

 “शायद वह अपने इकलौते बेटे को भूल गई है?”

और वो कहेंगे:

 “क्या बात करता है, उसका वज़न सैंतीस किलो कम हो गया है! इतना याद करती है!”

और आगे मैं उनसे क्या कहूँगा, मैं सोच नहीं पाया, क्योंकि मुझ पर एक ओवरकोट गिरा और पापा अचानक हैंगर के पीछे घुसे। उन्होंने मुझे देखा और बोले:

 “आह, तो तू यहाँ है! ये तेरी आँखों को क्या हुआ है? कहीं तूने इस सवाल को अपने ऊपर तो नहीं ले लिया?”

उन्होंने कोट उठाकर जगह पर टाँग दिया और आगे कहा:

 “ये सब तो मैंने बस सोचा था। ऐसा बच्चा तो इस पूरी दुनिया में है ही नहीं, तेरी क्लास की तो बात ही नहीं है!”

और पापा ने हाथ पकड़ कर मुझे हैंगर्स के पीछे से बाहर निकाला।

फिर उन्होंने एक बार और एकटक मेरी ओर देखा और मुस्कुराए:

 “इन्सान में मज़ाक का माद्दा होना चाहिए,” उन्होंने मुझसे कहा और उनकी आँखों में प्यारी-प्यारी मुस्कुराहट तैर गई। “ मगर, था ये मज़ाहिया सवाल, है ना? तो! अब हँस भी दे!”

और मैं हँस पड़ा।

और वो भी।

और हम कमरे में गए।


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