मरखनी गाय

मरखनी गाय

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हमारे यहाँ एक गाय थी, मगर वह इतनी अजीब, इतनी मरखनी थी, कि मुसीबत! हो सकता है, इसीलिए, शायद, वह दूध भी कम देती थी। माँ और बहने उससे बेज़ार हो गई थीं।

अक्सर ऐसा होता कि उसे झुण्ड़ में चरने के लिए खदेड़ते, और वो या तो दोपहर को वापस आ जाती, या खेत में मिलती – जाओ, जाकर उसे निकालो ! ख़ासकर, जब उसका बछड़ा होता – तब तो उसे रोकना नामुमकिन होता, एक बार तो उसने अपने सींगों से पूरे बाड़े को तहस-नहस कर दिया था, बछड़े के पास भागी थी। उसके सींग लम्बे-लम्बे और एकदम सीधे थे। पापा ने कई बार उसके सींग काट कर छोटे करने की सोची, मगर टालता रहा, जैसे उसे कुछ पूर्वाभास हो गया था।             

और कितनी चंचल और जोशीली थी! कैसे अपनी पूछ उठाती, सिर नीचे करती, और उछलती – घोड़े पर सवार होकर भी उसे नहीं पकड़ सकते थे।

एक बार गर्मियों में शाम को वह चरवाहे के पास से काफ़ी पहले ही भाग गई : घर में बछड़ा था। मम्मा ने गाय को दुहा, बछड़े को छोड़ा और बहन से – जो करीब बारह साल की थी – बोली "फेन्या, इन्हें नदी पे ले जा, किनारे पर चरने दे, मगर देखना, कि खेत में न घुस जाए। रात होने में अभी काफ़ी वक्त है, यहाँ बेकार क्यों खड़े रहें। 

फ़ेन्या ने डंडा उठाया, बछड़े और गाय को हाँका, किनारे तक ले गई, और ख़ुद विलो के पेड़ के नीचे बैठकर बैंगनी फूलों का मुकुट बनाने लगी, जिन्हें उसने रास्ते में आते-आते तोड़ा था: मुकुट बना रही है और गाना गा रही है। फ़ेन्या ने सुना कि झाड़ियों में कुछ सरसराहट हो रही है, नदी के दोनों तरफ़ घनी झाड़ियाँ थीं। 

फ़ेन्या ने देखा कि कोई भूरी-सी चीज़ घनी झाड़ियों के बीच से आ रही है, और बेवकूफ़ लड़की को ऐसा लगा कि ये हमारा कुत्ता, सेर्को है। ये तो सबको मालूम है कि भेड़िया कुत्ते से बहुत मिलता है, सिर्फ गर्दन आसानी से मुड़ती नहीं है, पूछ डंडी जैसी, थोबड़ा झुका हुआ और आँखें चमकती हैं। मगर फ़ेन्या ने तो कभी भी भेड़िये को करीब से देखा नहीं था।

फ़ेन्या कुत्ते को बुलाने लगी , “सेर्को, सेर्को!” – देखती क्या है कि – बछड़ा, और उसके पीछे-पीछे गाय उस पर पागलों की तरफ़ झपट पड़े। फ़ेन्या उछली, विलो के पेड़ से चिपक गई, समझ में नहीं आ रहा था, कि क्या करे, बछड़ा उसकी ओर भागा, और गाय ने अपने पिछले हिस्से से दोनों को पेड़ से दबाए रखा, सिर झुकाया, गरजी, सामने वाले खुरों से ज़मीन खोदने लगी, सींगों को सीधे भेड़िये की तरफ़ मोड़ा।

फ़ेन्या बेहद डर गई, उसने दोनों हाथों से पेड़ को कस कर पकड़ लिया, चिल्लाना चाह रही थी – मगर आवाज़ ही नहीं निकली। और भेड़िया सीधे गाय पर लपका, मगर उछल कर पीछे हट गया – पहली नज़र में ऐसा लगा कि गाय ने उसे सींगों से दबा दिया है। देखा भेड़िये ने कि चालाकी से काम नहीं बनेगा और वह कभी इधर से, तो कभी उधर से लपकने लगा, ताकि एक ओर से किसी तरह गाय से लिपट जाए, या बछड़े को पकड़ ले – मगर हर तरफ़ सींग उसके सामने आ जाते।

फ़ेन्या अभी भी समझने की कोशिश कर रही थी कि माजरा क्या है, वह भागना चाह रही थी, मगर गाय जाने ही नहीं दे रही थी, वैसे ही पेड़ से दबा रही थी।

अब लड़की चिल्लाने लगी, मदद के लिए पुकारने लगी। हमारा कज़ाक वहीं पहाड़ी पर जुताई कर रहा था, उसने सुना कि गाय गरज रही है, और लड़की चिल्ला रही है, उसने अपना हल छोड़ा और चीख की तरफ़ भागा। कज़ाक ने देखा कि क्या हो रहा है, मगर वह खाली हाथों से भेड़िये पर हमला नहीं कर सकता था – भेड़िया काफ़ी बड़ा था और तैश में था, कज़ाक ने अपने बेटे को बुलाया जो वहीं खेत में जुताई कर रहा था।

जैसे ही भेड़िये ने देखा कि लोग भागते हुए आ रहे हैं – वह ढीला पड़ गया, एक दो बार चिल्लाया और झाड़ियों में भाग गया।

फ़ेन्या को कज़ाक मुश्किल से घर ले आए, लड़की इतनी डर गई थी।

पापा इतने ख़ुश हो गए, कि उन्होंने गाय के सींग नहीं काटे थे।



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