मोहन की व्यथा
मोहन की व्यथा
जीवन में अपेक्षाएँ समुद्र की ज्वारभाटाओं के समान उपस्थित होती हैं। मानव शायद ही किसी क्षण अपेक्षाओं से निर्मित मोह से स्वतंत्र रहता हैं। सुःख -दुःख, इन्हीं अपेक्षाओं की पूर्ति-आपूर्ति का नाम हैं, ऐसा मेरा मानना है। इसी मोह में डूबा हुआ 'मोहन' चिंता की चिता पर जलता हुआ भूत और भविष्य को टटोल रहा है। मोहन स्वयं से प्रश्न करता है- 'सफलता क्या है?', 'किस पथ द्वारा प्राप्त हो?' मोहन के प्रश्न सामान्यप्रद प्रतीत होते हैं किन्तु संतुष्टपूर्ण उत्तर प्राप्त करने की यात्रा समाप्त ही नहीं होती क्यूँकी उत्तर की रूपरेखा क्या हो! यह उसका अवचेतन मन पहल से ही निर्धारित कर चुका है। अवचेतन मन द्वारा स्वीकृत रूपरेखा, परिश्रम मार्ग से परिचित होते हुए भी सरल मार्ग अर्थात् मोहन की शब्दावली वाले 'शॉर्टकट' की सत्ता को परिकल्पित करता है। यही आलस्य का उद्भव है।
यही आलस्य, परिश्रम के मार्ग से हटाता हुआ 'मोटिवेशनल स्पीकरों ' द्वारा प्रदत्त सफलता के यू-ट्यूब मार्ग पर मोहन को अग्रसर करता है। इसी मार्ग पर उपस्थित परम सम्मानित, ज्ञान के भंडार एवं मोटिवेशनल स्पीकिंग के प्रखाण्ड पंडित मंदीप कमलेश्वरी जी मोहन के समक्ष उपस्थित होते हैं। हे राम! फिर वहीं प्रश्न किन्तु इस बार उत्तर स्वयं खोजने की कठिनता को त्याग मोहन कमलेश्वरी जी की शरण में उपस्थित है। कमलेश्वरी जी भली परिचित शब्दावली द्वारा मोहन को संबोधित किया, जैसे - 'जीवन', 'सु:ख - दुःख', 'हार्ड- वर्क', 'स्मार्ट-वर्क' व 'सफलता' आदि। मोहन के लिए शब्दावली विचित्र नहीं हैं किन्तु कमलेश्वरी जी द्वारा उत्तर प्रस्तुत करने की कला नवीन व रूचिकर हैं। इनकी यहीं शैली मोहन को संतुष्ट करती है। उनके द्वारा प्रस्तुत वाक्य जैसे- 'खुद को जानो' , 'अपने अंदर के कलाकार को जगाओ', मोहन के हृदय में नवीन तरंगों का सृजन इस प्रकार करते हैं जैसे उसके अपार प्रश्नों के उत्तर उसे प्राप्त हो गए हो। बात सत्य भी है, कमलेश्वरी जी ने अपनी शैली का उचित और न्यायपूर्ण ढ़ंग से प्रयोग किया है, यहाँ कोई छल नहीं हैं।
आखिर कमलेश्वरी जी ने न जाने कितने ही दार्शनिकों की बौद्धिक सामग्रियों को एकत्र कर मोहन के प्रश्नों पर विचार प्रस्तुत किया है। यह भली- भाँति विश्व के हर मोहन को ज्ञात हैं। हाय! लेकिन उमंग की इस वर्षा का अंत कुछ प्रहर बाद ही हो जाता है और पुन: प्रश्नों का वहीं चक्र अग्नि के समान धक्-धक् प्रज्ज्वलित होता हुआ मोहन के चित्त को भस्मा करते हुए प्रतीत होता है।
क्या इस वेदना का अंत नहीं? क्या मोहन गंतव्य तक पहुँचने योग्य नहीं है? सब साधन प्राप्त हैं, मार्ग का नाम परिश्रम भी ज्ञात है ।