मेरे सिद्धांतों के खिलाफ
मेरे सिद्धांतों के खिलाफ
"मीता तू कल चल रही है न ज्वैलरी सेल में?"कम्मो चहकी
" नहीं यार।अभी मेरा हाथ ज़रा तंग है। अमन ने जो खर्ची दी थी वह तो इस बार घर में कुछ एक्स्ट्रा खर्चे के कारण फिनिश हो गई। "
"मैं बार-बार अमन को तंग नहीं कर सकती।"
"ओए होए.... क्या बात,यार इस युग की पतिव्रता नारी... "
और हँसी का ठहाका...
मीता चुप। कुछ अच्छा नहीं लगा उसे।
अमन सही कहते थे उससे कि-"किट्टी पार्टी अमीर और फिजूलखर्च महिलाओं के चोंचले हैं।तुम जैसी प्योर हार्टेड भावुक स्त्रियों के लिए वहाँ कोई जगह नहीं।"
हालात को भाँप कर सरू उठी और मीता के गलबहियाँ डालकर उस के गाल थपथपाकर बोली-"बुरा मान गई क्या डियर ?"
मीता ने 'न' की मुद्रा में सिर हिलाया।
" तू ही बता मैं कहाँ से मनी अरेंज करूं ?" मीता चिन्तित मुद्रा में बोली।
" अरे यार सबसे बड़े खज़ाने पर हाथ साफ कर" सरू मुस्कुराई।
"हाँ - हाँ सरू सही कह रही है" समवेत स्वर में किट्टी की सारी सदस्याओं ने कहा।
" क्या ??"
और वह खज़ाना है "पति का बटुआ। " सरू ने फरमाया।
" नहीं ! कतई नहीं !" मीता बोल उठी
"यह अपराध है, पाप है। "
" क्यूँ भई पंडित, धर्म शास्त्र और कानून कहता है कि पति की आय पर पत्नी का पूरा अधिकार है। "
सरू ने मीता को समझाने की कोशिश की।
"और फिर पति का बटुआ भी तो पति की आय से ही भरता है फिर उसमें से रूपये लेने में हिचक कैसी ??"
मीता ने साफ शब्दों में कहा -" देखो तुम सब सुन लो कि मेरा यह सिद्धांत है कि बटुए पर पति का पूरा हक है और उसमें से उनको बिना बताए रुपये निकालना मैं हक नहीं बल्कि चोरी करना मानती हूँ।"
" माफ़ करना सखियों। मैं अपने सिद्धांत पर अडिग हूँ और इसके लिए मुझे किसी की सलाह या साथ की आवश्यकता नहीं है। "
