मातृभाषा का महत्व
मातृभाषा का महत्व
शहर के प्रसिद्ध उद्योगपति विशंभर नाथ के घर में जन्मी लाडली बेटी कविता को बचपन से ही किसी चीज की कमी नहीं थी। अच्छा खाना-कपड़ा और अच्छे स्कूल में पढ़ाई सब सुविधाएं उसे मुहैया थी। जैसे हर मां-बाप की कोशिश होती है कि उसके बच्चों को कभी किसी चीज की कमी महसूस न हो। कविता के मां- बाप ने भी उसकी परवरिश में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। शहर के प्रसिद्ध स्कूल में पढ़ने वाली कविता फर्राटे दार अंग्रेजी बोलती थी। वैसे तो वो अभी दसवीं कक्षा में पढ़ती थी लेकिन बड़ी कक्षाओं की किताबें भी पढ़ने का शौक रखती थी। उसकी बस एक ही कमी थी अपनी मातृभाषा हिंदी को अन्य विषयों से कमतर आंकना। कविता की इसी भूल ने उसका इतना बड़ा नुकसान कर दिया जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती। हाईस्कूल की वार्षिक परीक्षा में मात्र कुछ ही दिन बचे थे इसलिए कविता रात-दिन परीक्षा की तैयारी में जुटी थी। वह रोज दस से बारह घंटे पढ़ती थी। वह अन्य विषयों की तैयारी पर तो पूरा ध्यान दे रही थी लेकिन हिंदी की तैयारी पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही थी। उसके दिमाग में एक बात घर कर गई थी की हिंदी तो हमारी बोलचाल की भाषा है इसमें क्या तैयारी करना लेकिन वह नहीं जानती थी कि उसकी यही सोच उसका कितना बड़ा नुकसान कर देगी। धीरे-धीरे समय बीतता गया और बोर्ड परीक्षा का समय भी आ गया। कविता बड़ी
तन्मयता से परीक्षा में शामिल हुई। उसे पूरा विश्वास था कि वह इस बार परीक्षा में विद्यालय के टॉप टेन विद्यार्थियों की सूची में अवश्य शामिल होगी। लेकिन जब बोर्ड परीक्षा का परिणाम आया तो परिणाम देख कविता के होश उड़ गए। परीक्षा के अन्य विषयों में अस्सी प्रतिशत से भी अधिक अंक प्राप्त करने वाली कविता अपनी मातृभाषा हिंदी के प्रश्न पत्र में मात्र पासिंग मार्क अंक ही प्राप्त कर सकी। विद्यालय के टॉप टेन विद्यार्थियों की सूची में शामिल होने का उसका सपना धरा का धरा ही रह गया। वह शोक के गहरे सागर में डूब गई और सोचने लगी काश मैंने अपनी मातृभाषा के महत्व को समझा होता तो आज टॉप टेन विद्यार्थियों की सूची में अवश्य शामिल होती।