shivi_♥ writer

Children Stories Classics Inspirational

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Children Stories Classics Inspirational

दादी के फूल

दादी के फूल

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सूरज की किरणें उन सफेद केंशों पर पड़ रहे थे, और वह ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सफेद बर्फ की चादर पर सूरज की रौशनी टकरा कर सीधे मेरी आँखों को चूम रहे हो यकीन करो मेरा वह नजारा बहुत सुकूनदायक था। चेहरे की झुर्रियां साफ साफ बता रही थी कि अब वह कितनी थक चुकी हैं ।हल्की, ठंडी और गुलाबी सी सुबह थी। अपनी आँखों में एक अजब सी चमक लिए आंगन में बैठी बूढ़ी दादी पौधौं को बडे़ प्यार से निहार रही थी।

मैं उसी वक्त सो कर उठी थी, मेरी तो आँखें भीं अच्छे तरह नहीं खुली थी पर फिर भी मैं दादी को साफ साफ देख पा रही थी। मेरे धैर्य का बाँध टूट गया, और मैंने अपने नींद भरे आवाज में पूछा। दादी...! आप इन पौधौं को क्यों देखरही हो? दादी मुस्कूराते हुए बोली -उठ गई मेरी नटखट परी? आओ बैठो कहकर गोद में बिठा लिया। मैंने फिर पूछा बताओ ना दादी आप इन पौधौं को क्यों देखरही हो? और क्या सोच रहे हो बताओ ना....!

हाँ - हाँ बताती हूँ। यह कहते हुए दादी मुझे अपनी गोद से नीचे उतार देती है और कहती है इन पौधों को देखो क्या तुम बाता सकती हो कि ये कौन सा पौधा उदास है? और कौन सा पौधा खुश है ?मैंने कहा दादी मै ये कैसे बता सकती हूँ, मुझे नहीं पता दादी। आप ये क्यू पूछ रही हो? इधर आओ कहते हुए दादी ने मुझे फिर अपनी गोद में बिठा लिआ और कहने लगी, मै तुम्हें सब बताउँगी पर अभी नहीं। अभी तुम जाओ और नहा लो और नास्ता करो। मैंने दादी की बात सुनी और मैं चली गई। 

दिन कब बीत गया पता ही नहीं चला। पर दादी की अधूरी बातेंमानो मुझे उनकी ओर बार - बार खींच रही थी। शाम होते ही मैं फिर दादी के पास गई, दादी मुझे देखते ही जान गयी थी कि सुबह की अधूरी बात मुझे उनके पास खींच लाई है । दादी मुझे देखकर मुस्कुराई और बोली मुझे मालूम है, तुम मेरे पास किस लिए आई हो। आओ बैठो मेरे पास! दादी के इतना कहते ही एक अजब सी खुशी महसूस हुई मुझे। मेरा चेहरा सूरजमुखी के फूल की तरह खिल गया ।दादी मुझे प्यार से सहलाते हुए बोली तुम बिलकुल मेरी जैसी हो।

क्या सच में दादी ? मुझे यह सुनकर बहुत खुशी हुई ।ऐसा कहते हुए मैं दादी के और पास जाकर बैठ गई और पूछने लगी पर दादी मेै आपके जैसी किस तरह से हूँ? दादी हसने लगी और बोली क्यों कि जब मैं छोटी थी तब मुझे भी तुम्हारी तरह हर बात को जानने की उत्सुकता रहती थी। तो क्या दादी आप भी अपनी दादी से सारी बातें पूछा करती थी? मेरे ऐसा कहते ही दादी की आँखें नम हो गई। दादी नम आँखों के साथ ही बोली - नहीं मैं अपनी दादी से अपने पापा से सारी बातें पूछती थी।

मेरे छोटे से दिमाग में कई सवाल उठ रहे थे। दादी को मेरे शक्ल से ही पता चल गया था कि अब उनके सामने बहुत से नन्हें नन्हें प्रश्न आने वाले हैं। दादी खुद को मांसिक तौर पर तैयार कर रही थी ताकि वह मेरे हर उल्टे - पुल्टे, आढ़े - टेढ़े सवालों का जवाब बिना किसी परेशानी के दे सके। तभी मै बोल पड़ी - तो क्या दादी आपके पापा आपके सभी सवालों के जवाब दिया करते थे। दादी मुझे गले से लगाते हुए बोली - हाँ मेरे पापा मेरे हर एक सवाल का जवाब उदाहरण के साथ दिया करते थे। ऐसा सुनते ही मैं दादी से उछल कर पूछी, तो क्या दादी आप भी मेरे हर सवाल का जवाब उदाहरण के साथ दोगी? दादी बड़े ही प्यार से बोली - हाँ! 

तो दादी बताओ ना तुम सुबह पौधों को देखकर आप क्या सोच रही थीं। दादी बोली ठीक है तो सुनो मै वहाँ पौधों को इसलिए देख रही थी क्यों कि पौधों से मेरी बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं। मै कहाँ रुकने वालियों में से थी। मै उत्सुक होकर बोल पड़ी, कैसी यादें दादी? दादी बोली कुछ खट्टी - मीठी सी यादें क्या तुम अपनी दादी की यादों में शैर करना पसंद करोगी? मै खड़ी होकर बोली यह भी कोई पूछने वाली बात है दादी? अब जल्दी से बताओ ना! दादी मुझे बैठोते हुए बोली -ठीक है पहले तुम शांति से बैठो तो ! मै बैठ गई।,फिर सुरु हुई दादी की यादों का सफर।

दादी ने एक लंबी साँस ली और बोली मुझे पौधे बहुत पसंद है, ऐसा इसलिए क्यों कि मेरी माँ को भी पौधों से बहुत लगाव था। मैं और मेरी माँ दोनों ही पौधे लगाया करते थे, और उन पौधों का खयाल भी रखते थे कई बार तो मुझे उन पौधों के कारण डाट भी पड़ती थी।

मैं दादी की बातों के बीच ही तुरंत बोल पड़ी, दादी आपको डाट क्यों पड़ती थी, आपको तो पौधों से बहुत लगाव है दादी। दादी मुझे सहलाते हुए बोली - सब नजरिये का खेल है। तुम बताओ मुझे एक पौधे को अच्छे से बड़ा करने के किन - किन चीजों की आवस्यकता होती है? मैंने बिना सोचे ही कह दिया पानी और खाद , बस इतना ही चाहिए होता है एक पौधे को अच्छे से बड़ा करने के लिए।

 दादी हस पड़ी, पर मै आश्चर्यचकित रह गयी यह सोच कर की मैंने तो सही जवाब दिया है फिर दादी हस क्यूँ रही है भला? दादी हसते हुए ही बोली तुम अपनी जगह बिलकुल सही हो और मै तुम्हारे दिये जवाब पर नही हस रही हूँ, बल्कि तुम्हारे बोलने के अंदाज पर हस रही हूँ। मैंने कहा क्या दादी आपने तो मुझे डरा दिया था मुझे लगा मेरा जवाब गलत है। दादी बोली तुम्हारा जवाब सही है परंतु एक पौधे को पानी और खाद के साथ थोड़ा सा प्यार और जतन की भी जरूरत होती है।

मुझे कुछ भी नहीं समझ आया ,मैंने दादी से पूछा पौधों को प्यार और जतन की क्या जरूरत है दादी? दादी बोली क्योंकि उनमें भी भावनाएं होती है । वो भी हमारी तरह बातों को सुन सकते हैं, और हमारी भावनाओं को समझ सकते हैं। मैंने कहा दादी वो भला कैसे समझ सकते हैं हमारी भावनाओं को? दादी ने कहा अच्छा ठीक है तुम मेरे बागीचे में से कोई भी दो पौधे लेकर कुछ दिनों तक उनका ख्याल रखना।पर एक पौधे में केवल पानी व खाद डालना तथा दूसरे पौधे में पानी और खाद देने के बाद उनसे बातें करना, थोड़ा सा उसके पत्तों को सहलाना और कभी उसके फूलों को चूम लेना। एक हफ्ते में ही तुम्हें फर्क दिखने लगेगा।

मैंने हाँ ठीक है कहते हुए सर हिला दिया। दादी बोली तो आज के लिए बस इतना ही, अब तुम एक हफ्ते बाद मेरे पास आना कहती हुई दो पौधे हाथों में थमा गई।

मैं दादी के दिए हुए पौधों को ले आई। और जैसा उन्होंने कहा था ठीक वैसे ही मैं पौधों की अलग - अलग तरीके से उन दोनों पौधों की परवरिश करने लगी। एक हफ्ते पूरे होने को बस एक दिन ही बच गए थे। मुझे फर्क दिखने लगा था। दादी की बातों समझ आने लगी थी। एक पौधा सिर्फ बड़ा हो रहा था, वहीं दूसरा पौधा खिलने लगा था। सुबह होने तक का भी इंतजार मुझसे नहीं हो रहा था। रात भर नींद ही नहीं आई, रात भी यही सोच रही थी कि दादी से क्या कहुँगी और कैसे कहुँगी?

सूर्य की पहली किरण के साथ सुबह की शुरुआत हो चुकी थी। दादी जी तब भी अपने बगीचे में नहीं आई थी। मैं बहुत उत्सुक थी उन्हें सब बताने के लिए इसलिए मैं खुद ही दादी के कमरे में चली गई। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि दादी अभी तक सो रहीं हैं। मैं वहां से निकल कर बाहर आ गई। दोपहर हो गई पर दादी अभी तक सो रही थी। मां और पापा को चिंता होने लगी। वह दोनों दादी को उठाने गए मगर दादी हमेशा के लिए सो चुकी थी।

मां और पापा को रोते देख कर मैं उनके पास गई। मैंने पूछा, आप दोनों क्यों रो रहे हो, क्या हुआ दादी को , क्या उनकी तबीयत खराब है? माँ बोली बेटा अब तुम्हारी दादी नहीं रहे। मुझे बहुत दुख हुआ । दादी को उस दिन मैंने आखिरी बार देखा, बहुत रो रही थी मैं। उस दिन दादी हमें छोड़कर जाने के साथ-साथ एक सीख भी छोड़ गई।


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