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खुली चिट्ठी

खुली चिट्ठी

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कभी कभी दिल इतना भारी हो जाता है कि उसे कागज़ पर उतारे बिना सांस भी नहीं ली जाती...

प्रिय..🌹,

.. कैसे हो? अच्छे होंगे और मज़े में भी..।
 मुझे पता है..दूर जाना था मुझसे... चले गए.. और मैंने जाने दिया ।

क्यों.. ?  

क्यों कि बहुत हो गया था.. अपने लिए किसी के सामने गिड़गिड़ाऊ  ये आदत नहीं है मेरी .. फिर भी मैंने रोकने की कोशिश कि थी .. पर जब मुझे लगा मै 
जबरदस्ती कर रही हूं ... तब मैंने जाने दिया ।

जबरदस्ती करके किसी के साथ कोई भी रिश्ता रखा नहीं जाता..।

तकलीफ़ बहुत हूई थी आज भी होती है .. आप को 
एक नज़र देखने के लिए आज भी हरपल ये दिल तड़पता है--    पर वह भी दूर से .. करीब अब कभी नहीं आउंगी.. सोच लिया.. मन को भी समझा लिया है..।
सही तो है क्या ही रखा है ऐसे रिश्तों में ..।

बस आप खुश रहो..  मुझसे दूर... ।

आप को लगा होगा मैं बदल गई हूं..
कोई बड़ी बात नहीं है.. एक  न  एक दिन सब  बदल ही जाता है....सबकुछ हमेशा एक जैसा नहीं रहता ..
 
कभी आप बदले थे .. शायद आज मै आपके लिए बदल गई हूं।  और क्यों ऐसा हुआ ? 

इस सवाल का जवाब देने कि जरूरत मुझे नहीं लगती ।

कभी कभी सोचतीं हूं.. जो भी हुआ अच्छा ही हुआ 
अभी नहीं तो बाद में आप दूर  जाते.. 

 ये शायद मेरा ही नसीब  है कि आजतक कोई भी मुझसे खुश नहीं रहा।
 
जो कोई भी मेरे करीब आया सब के सब मुझसे धीरे धीरे नफ़रत ही किया है.. शायद मै हूं ही ऐसी 
शायद मै हूं ही नहीं किसी के प्यार के काबिल..तभी न..।

आजकल तो कभी कभी  खुद से नफ़रत होने लगती है ।
सोचतीं हूं भगवान ने मुझे ऐसा क्यों बनाया 
न रूप है न कोई गुण ... सिर्फ एक बोझ बन कर रह गई हूं.. मन करता मर जाएं.. लेकिन मरना भी कहां आसान है..।
 आप ने जब मुझसे प्यार का इजहार किया था 
बहुत खुश हूई थी.. लगा कोई तो है जो मुझसे प्यार करता है.. भुल गई थी.. यह सब बस कुछ दिनों के लिए है..
मेरे नसीब में किसी का प्यार  ज्यादा दिन तक टिकता ही नहीं..
और टिके भी  क्यों  ?

मुझ मे आखीर हैं ही क्या .. बहुत ही साधारण सी तो हूं ...
और सच कहूं तोअब  बस एक जिंदा लाश बनकर रह गई हूं.. 
         मेरी प्रिय डायरी..🌹♥️



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