ज्ञानी पुरुष और निंदा।
ज्ञानी पुरुष और निंदा।
एक व्यापारी एक नया व्यवसाय शुरू करने जा रहा था लेकिन आर्थिक रूप से मजबूत ना होने के कारण उसे एक हिस्सेदार की जरूरत थी। कुछ ही दिनों में उसे एक अनजान आदमी मिला और वह हिस्सेदार बनने को तैयार हो गया। व्यापारी को उसके बारे में ज्यादा कुछ मालूम नहीं था। अत: पहले वह हिस्सेदार बनाने से डर रहा था किन्तु थोड़ी पूछताछ करने के बाद उसने उस आदमी के बारे में विचार करना शुरू किया।
एक दो दिन बीतने के पश्चात व्यापारी को उसका एक मित्र मिला जो की बहुत ज्ञानी पुरुष था। हाल समाचार पूछने के बाद व्यापारी ने उस आदमी के बारे में अपने मित्र को बताया और अपना हिस्सेदार बनाने के बारे में पूछा। उसका मित्र उस आदमी को पहले से ही जानता था जो की बहुत कपटी पुरुष था वह लोगों के साथ हिस्सेदारी करता फिर उन्हें धोखा देता था।
चूंकि उसका मित्र एक ज्ञानी पुरुष था। अत: उसने सोचा दूसरों की निंदा नहीं करनी चाहिए और उसने व्यापारी से कहा -" वह एक ऐसा व्यक्ति है जो आसानी से तुम्हारा विश्वास जीत लेगा।" यह सुनने के बाद व्यापारी ने उस आदमी को अपना हिस्सेदार बना लिया। दोनों ने काफी दिन तक मेहनत की और बाद में जब मुनाफे की बात आयी तो वह पूरा माल लेकर चम्पत हो गया।
इस पर व्यापारी को बहुत दुःख हुआ। वह अपने मित्र से मिला और उसने सारी बात बतायी और उसके ऊपर बहुत गुस्सा हुआ इस पर उसके मित्र ने कहा मैं ठहरा शास्त्रों का ज्ञाता मैं कैसे निंदा कर सकता हूँ । व्यापारी बोला- वाह मित्र ! तुम्हारे ज्ञान ने तो मेरी लुटिया डुबो दी।
मोरल : यदि आप के ज्ञान से किसी का अहित होता है तो किसी काम का नहीं है ।