जिंदगी सांप सीढ़ी का खेल ही है
जिंदगी सांप सीढ़ी का खेल ही है
नेहा की मांँ का आकस्मिक निधन हो गया था इसीलिए वो उदास रहने लगी। नेहा अपने स्कूल की होनहार छात्रा थी और हमेशा क्लास में प्रथम आती थी पर माँ के जाने के बाद उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता था इसका सीधा असर उसके परीक्षा परिणामों पर दिखाई देने लगा।इस बार नेहा के12वीं की परीक्षा थी उसकी माँ की बहुत इच्छा थी कि वो 12वीं में टॉप करें और उसे किसी अच्छे इंजीनियर कॉलेज में एडमिशन मिले।नेहा के क्लास टेस्ट में खराब परफॉर्मेंस देख उसके सभी टीचर्स को चिंता होने लगी क्योंकि सबको नेहा से बहुत उम्मीदें थीं।वो चाहते थे कि नेहा उनके स्कूल का नाम रोशन करे।
नेहा के पिता रमेश को भी स्कूल से शिकायत मिली कि नेहा ठीक से पढ़ाई नहीं कर रही।वो बेचारे बहुत दुखी हुए।एक तरफ जीवनसाथी का यूं बीच मंझधार में छोड़ जाना तो दूसरी तरफ बेटी का भविष्य दांव पे लगना दोनों बातों ने उन्हें अंदर से तोड़कर रख दिया।
रमेश ने खुद को तो जैसे तैसे संभाल लिया पर बेटी को संभालना या फिर उसे कुछ भी समझाना उसके लिए बहुत मुश्किल हो रहा था।उसे ये समझ नहीं आ रहा था कि कैसे नेहा को समझाएं कि उसके लिए पढ़ाई बहुत जरूरी है?क्योंकि जैसे ही वो नेहा से कुछ बात करता तो वो फिर माँ को यादकर रोने लगती और ये सब रमेश सह नहीं पाता।ये समय रमेश के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम न था।ऐसे में उसने धैर्य बनाए रखना ही उचित समझा इसलिए कुछ समय के लिए नेहा से पढ़ाई के बारे में बात करना बंद कर दिया और सही समय का इंतजार करने लगा।बेटे को यूं बेबस लाचार देख नेहा की दादी चिंतित हो उठी..बहु के जाने का दुख उन्हें भी था..पर वो यही सोच रही थी,कि यदि ऐसे ही चलता रहा तो नेहा कैसे बारहवीं की परीक्षा पास कर पाएगी?
संडे का दिन था नेहा उदास सी बैठी थी उसकी दादी के मन में ना जाने क्या सूझी कि वो सांप सीढ़ी का खेल लेकर आई और नेहा से बोली -"बेटा,मेरा सब काम हो गया है मैं बोर हो रही थी आओ चलो सांप सीढ़ी का खेल खेलते हैं।" ये सुनकर नेहा के चेहरे पे अनायास ही हँसी आ गई।मुस्कुराते हुए बोली -"अरे दादी,आज ये आपको बच्चों वाला खेल खेलने की क्या सूझी ?और कोई गेम नहीं मिला आपको खेलने के लिए?"
"बेटा,बात तो तू ठीक कह रही है..खेल तो और भी बहुत सारे हैं पर ये खेल हमें बहुत कुछ सिखाता है इसलिए सोचा आज इस गेम के जरिए ही तुझे कुछ सिखाती हूं।"
"वो कैसे दादी?"नेहा आश्चर्य से बोली।
"बेटा,हमारी जिंदगी भी एक तरह से सांप सीढ़ी का खेल ही है जैसे इस खेल में कभी हम सांप के काटने से नीचे आ जाते हैं तो कभी सीढ़ी मिल जाने से ऊपर पहुंच जाते हैं वैसे ही हमारे जीवन में भी गम और खुशी रूपी उतार चढ़ाव आते रहते हैं।जिस प्रकार सांप सीढ़ी के खेल में सांप के काटने पर भी खिलाड़ी हार नहीं मानते और खेल जारी रखते हैं इस आशा पर कि शायद अगली चाल पर उन्हें सीढ़ी मिल जाए और वो ऊंचाई को प्राप्त होकर सफल हो जाएं।ऐसे ही जीवन में कितने भी गम रूपी सांप काटें हमें हार ना मानकर अपनी कोशिश जारी रखनी चाहिए अर्थात पासे (खेल खेलने वाली गोटी)फेंकते रहने चाहिए क्या पता कब खुशियों रूपी सीढ़ी मिल जाए जिसके सहारे हम ऊंचाइयों को प्राप्त कर लें।"कहते कहते दादी भावुक हो गई।
दादी को इस तरह भावुक होता देख नेहा सोचने को मजबूर हो गई,कि उसने यदि अपनी माँ को खोया है तो उसकी दादी ने भी अपनी बहु को खोया है फिर भी जीवन को लेकर उनकी सोच कितनी सकारात्मक है।अपना दुख भुलाकर वो उसे जीने की प्रेरणा दे रही हैं और एक वो है जो सिर्फ अपने ही बारे में सोचती रहती है..उसे बहुत आत्मगिलानी हुई।दादी को गले लगाते हुए बोली -"दादी आप बहुत अच्छी हो।मम्मा के जाने के बाद मैं अपने गम में ही डूबी रही।मम्मा के बिना जीना मुझे रास नहीं आ रहा था इसलिए मैंने पढ़ाई लिखाई से भी ध्यान हटा दिया।मैंने आपकी और पापा की तकलीफ के बारे में कभी सोचा ही नहीं...कि मेरी दादी पापा भी हैं उन्होंने भी अपनी बहु और पत्नी को खोया है..उन्हें भी किसी के सहारे की जरूरत होगी...उनके भी मुझको लेकर कुछ अरमान होंगे?दादी अब से मैं आपको और पापा को कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगी।मैं अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दूंगी..क्योंकि मुझे आप दोनों के साथ साथ मम्मा का सपना भी तो पूरा करना है।"
दादी ने नेहा के सर पर प्यार से हाथ फेरकर उसे खूब लाड किया।
दादी की बातों का नेहा पर गहरा प्रभाव पड़ा वो अब अपनी पढ़ाई में पूरी तरह से मन लगाने लगी फलस्वरूप उसे हर टेस्ट में सर्वाधिक अंक प्राप्त होने लगे।ये देखकर नेहा के सभी टीचर्स बहुत खुश हुए।उनकी आंखें फिर से आशा की किरण से चमक उठीं।उनके मन में ये उम्मीद जगने लगी कि नेहा ही है जो उनके स्कूल का नाम रोशन करेगी।
नेहा दिन रात मेहनत करने लगी क्योंकि पहले ही उसका काफी समय बर्बाद हो गया था।रमेश भी नेहा की जरूरतों का पूरी तरह से ख्याल रखता उसे किसी चीज की कमी नहीं होने देता।
नेहा की मेहनत और दादी व रमेश का प्यार रंग लाया।नेहा ने 12वीं की परीक्षा में टॉप करके अपने माता-पिता और स्कूल का नाम रोशन किया।रमेश बहुत खुश हुआ।रिश्तेदार और अड़ोसी पड़ोसी सभी घर पर बधाई देने आए और नेहा की बहुत प्रशंसा की।रमेश अपने को बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहा था क्योंकि बेटी के साथ साथ उसने भी अपने धैर्य से जीवन की अग्निपरीक्षा पास कर ली थी।
परीक्षा परिणाम के दिन नेहा ने सबसे पहले ईश्वर का फिर अपनी दादी का शुक्रिया अदा किया।बोली -"दादी,यदि आप सही समय पर सांप सीढ़ी के खेल के माध्यम से मेरा मार्गदर्शन नही करतीं तो शायद आज मैं 12वीं की परीक्षा में टॉप करना तो दूर पास होने का भी नहीं सोच सकती थी।ईश्वर आप जैसी दादी सबको दे जो अपना गम भुलाकर पोती पोतों का जीवन खुशियों से भर देती है।"
रमेश ने भी अपनी माँ का आभार प्रकट किया प्यार से नेहा को गले लगा लिया।