इस प्यार को क्या नाम दूँ
इस प्यार को क्या नाम दूँ
खिड़की के बाहर देखती सुगंधा का मन बहुत बेचैन था। बार-बार उसे अपने गुस्से पर और भी गुस्सा आ रहा था क्यों ? उसने राजीव का फोन नहीं उठाया क्यों उसने उसके मैसेज का जवाब नहीं दिया बार-बार उसके फोन करने पर भी मैंने कॉल रिसीव नहीं की क्यों। दो दिन बात नहीं करते हुए ऐसा लग रहा जैसे सालों हो गए क्यों बार-बार मन तड़प रहा है। कुछ खालीपन महसूस हो रहा, एक एहसास हो रहा खालीपन का।
सब कुछ है पर बस एक कमी है उनसे बात ना कर पाने का, मेरी खुशी कहीं गुम हो गई है। आज जो खुशी बात करने के बाद होती थी वो नहीं मिली । सुबह से शाम इस इंतजार में गुजर जाती थी घर पहुंचते ही बात हो जाएगी.. यह दो दिन किस तरह गुजरे नहीं जानती पर क्यों क्या रिश्ता है ?दोस्ती तो है पर इतनी अकेली क्यों? इतनी बेचैनी, क्यों? बार-बार मन बात करने को क्यों होता है ? बात ना करो तो चैन नहीं पड़ता हर पल खाली खाली सा लगता है। कुछ कमी सी खलती है। क्या हो गया? अगर वह काम में बिजी होने के कारण फोन नहीं कर पाया। मैं क्यों इतना गुस्सा हो गई और दो दिन में फोन नहीं उठाई ?
आज तक मुझे उसकी जरूरत महसूस होती रही है लेकिन यह एहसास कुछ और है। आखिर क्या है? उम्र के इस दौर में इसे क्या नाम दूँ ? राजीव हां मेरा दोस्त जिससे हर मन की बातें कर लेती हूँ। पचास के उम्र में पहुँचकर एक ही तो साथी है मेरा जिससे हर मन की बात बेझिझक कर लेती हूं। ना कोई अपना ना कोई पराया है, बस एक यही दोस्त तो मैंने पाया है। फिर क्यों मैंने अपना गुस्सा निकाला और सजा खुद को मिल रही है? मन बार- बार राजीव की तरफ जा रहा है। खिड़की पर बैठी सुगंधा पुरानी यादों में खो गई।
बीस साल की थी शादी कर के आई थी वो पति का प्यार पाकर अपनेआप को खुश नसीब मानती थी। एक साल बाद बेटे को भी पाकर ख़ुशियों से जैसे मेरी झोली ही भर गई थी। एक साल बीते दो साल पर कहते हैं न ख़ुशियों को नजर लगाने वालों की कमी नहीं होती। मेरी भी ख़ुशियों को नजर लग गई शिव बीमार पड़ गए, ऐसा की वो उठ ही नहीं पाए और हमेशा के लिए मुझे बेटे के साथ छोड़कर इस दुनिया से विदा ले ली। ससुराल में अगर पति न हो तो क्या हाल होता है मैं अच्छे से समझ चुकी थी।सास के नजर में मनहूस बन गई और देवरानी जेठानी सबकी नजर में नौकरानी बन कर रह गई। जिंदगी का यही तो खेल है, अगर अपने साथ हो तो बहुत मेल है नहीं तो बस जिंदगी इसी तरह बिगड़ जाती है।
पति का साथ छूट गया मैं परिवार के लिए कुछ नहीं थी। ससुराल मेरा घर नहीं था? मुझे इज़्ज़त सम्मान क्यों नहीं मिली? नहीं पति के बाद यह मेरा घर ..घर ना रहा मैं बेटे को लेकर मायके आ गई। नौकरी करने लगी और व्यस्त रहने लगी पर जिंदगी इतनी आसान कहां थी इतनी खूबसूरत कहां थी। शायद मेरे नसीब में ही जिंदगी खूबसूरत नहीं लिखी थी। बेटे दस साल की उम्र में उसे भी एक बीमारी ने जकड़ लिया जो उसकी जान ले कर छोड़ा। मैं पूरी तरह टूट गई। पति के बाद बेटे का जाना वह दर्द मैंने किस तरह झेला मैं ही जानती हूं मेरे दर्द को कोई नहीं समझ सकता था, लेकिन बेटे की बीमारी में एक रिश्ता मेरे साथ जुड़ चुका था राजीव के साथ।
हॉस्पिटल से घर आना जाना बीमारी में मुझे सबसे ज्यादा सहारा दिया राजीव ने। बेटे को लेकर हर चीज में उसने मेरी मदद की उसकी मदद उसका सहारा देना मेरे दिल को कहीं छू गई थी। मैं धीरे-धीरे उसके करीब आ गई थी। अब मैं उसकी जरूरत बन गई थी या वह मेरी जरूरत बन गया था पता नहीं। बेटे के जाने के ग़म में मैं पूरी तरह टूट चुकी थी... बिखर चुकी थी... लेकिन राजीव ने मुझे सहारा दिया। सुबह एक बार हाल-चाल ज़रूर पूछता। ऑफ़िस से आने के बाद घंटों बातें होती और यह बातें कब नजदीकियाँ बन गई पता भी नहीं चला, उसकी आदत सी बन चुकी थी अब बात करने की उसके साथ मेरी आदत ऐसी की उसके बगैर मुझे नींद कहां आती थी।
अगर समय पर उसका फोन नहीं आता गुस्सा निकाल देती थी यही तो कल हुआ ..यही तो दो दिन पहले हुआ.. राजीव काम की व्यस्तता के कारण फोन नहीं कर पाया तो मैंने बाद में फोन ही नहीं उठाया बार-बार वह फोन करता रहा और मैं गुस्सा दिखाती रही। फोन नहीं उठाया मैंने दो दिन हो गए जैसे मैंने खुद को सजा दी हो ऐसा एहसास हो रहा, आखिर राजीव के साथ इतनी नज़दीकी क्यों? क्यों मैं उसके साथ इतना जुड़ चुकी हूं? उम्र के इस पड़ाव में मुझे उसकी आदत क्यों पड़ गई है? क्यों मैं उसके बगैर नहीं रह सकती उसकी बातों के बगैर नहीं रह सकती? हां.. कोई तो रिश्ता होगा मैं क्या नाम दूँ इस रिश्ते को,आज भी नहीं समझ पा रही। उसका परिवार है..बच्चे हैं.. मैं उसके साथ कभी रह नहीं सकती, लेकिन एक जुड़ाव है ... कहीं तो एक लगाव है... जो मैं उसके बगैर भी नहीं रह सकती आखिर इस रिश्ते को क्या नाम दूँ ? कुछ समझ नहीं पा रही लेकिन जरूरत समझो या वक्त की मार, पर मुझे है उससे लगाव या झुकाव। मैं उसके बगैर नहीं रह सकती और शायद कहीं ना कहीं वह भी मेरे बगैर नहीं रह सकता। दोस्ती कहो या कुछ और मालूम नहीं पर इस रिश्ते को क्या नाम दूँ, मुझे भी नहीं मालूम। आखिर कहीं ना कहीं हम दोनों के रिश्ते में प्यार तो है.. जो एक दूसरे को खींचा चला जा रहा है, एक दूसरे के साथ रहने की तमन्ना भी नहीं है, और एक दूसरे के बिना भी नहीं रह सकती...इस प्यार को क्या नाम दूँ।