Anita Lodhi

Children Stories Fantasy

4.3  

Anita Lodhi

Children Stories Fantasy

गीत ( पार्ट - २ )

गीत ( पार्ट - २ )

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अब तक आपने पढ़ा :- [बेटे ने पिता को कहानी सुनाने की जिद की - पिता ने एक बहुत पुरानी बस्ती और उनके साथ रहने वाली परी की कहानी सुनाई - कैसे बस्ती वाले प्यार से रहते थे और वहाँ की खुशहाल जिंदगी कैसे नफरत में बदल गई - जिससे परी को बहुत दुख हुआ और वह बस्ती से चली गई। ]

अब :-   

उन्होंने एक - दूसरे के खेत - खलिहानों को नष्ट करना और पशुओं को चुराना शुरू कर दिया। धोखा, फरेब , लूटमार ,हत्या , विनाश रोज का नियम बन गया।

  ‌‌‌‌    जब पानी सर से ऊँचा हो गया और बचाव का कोई उपाय न रहा तब बस्तीवाालों ने तय किया कि इस प्रतिदिन के उपद्रव से अच्छा है इस किस्से को हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाए।

इस निर्णय के बाद वे दो गुटों में बँट गए। सारे युवक हाथों में बल्लम और तलवारें लिए मैदान में एक दूसरे के सम्मुख आकर खड़े हो गए। उनकी आँखों से क्रोध और नफरत की चिंगारियाँ निकल रही थीं और उनकी मुट्ठियां बल्लम और तलवारों की मूठों पर मजबूती से कसी हुई थीं। एक - दूसरे पर झपट पड़ने को तैयार खड़े थे।

     तभी एक अनहोनी हो गई। फिजा में एक महीन - सा सुर बुलंद हुआ। जैसे किसी परिंंदे का कोमल पर(पंख) हवा में काँप रहा हो। कोई गा रहा था। उन्होने आवाज की ओर देखा। पहले तो उन्हे कुछ दिखाई नहींं दिया मगर जब उन्होने बहुत ध्यान से देखा तो उन्हें नन्हीं परी एक पेड़ की डा़ल पर बैठी दिखाई दी। उसके बाल बिखरे हुए और गाल

आँसुओं से भीगे हुए थे। पर नुचे हुए और कपड़े फटे हुए थे, जैसे वह घनी काँटेदार झाड़ियों के बीच से गुजरकर आ रही हो। उसके पाँव नंगे और तलवे जख्मी थे वह पेड़ से उतरकर मैदान के बीच में आकर खड़ी हो गई। उसने दोनों हाथ फिजा में बुलंद कर रखे थे जैसे उन्हें एक दूसरे पर हमला करने से रोकना चाहती हो। तलवारों की मूठो और बल्लमोंं पर कसी हुई मुट्ठियाँ तनिक ढ़़ीली हुई।

      वह गा रही थी। उसकी आवाज में ऐसा दर्द था कि उनके सीनों में दिल तड़प उठे। आवाज धीरे - धीरे बुलंद होती गई , इतनी बुलंंद जैसे सितारों को छूने लगी हो। उसकी आवाज चारों दिशाओंं में फैलने लगी। फैलती गई । 

इतनी फैली कि चारो दिशाएँ उसकी आवाज की प्रतिध्वनि से गूँजने लगी। लोग अचरज से आँखें फाड़े , मुँह खोले उसका गीत सुनते रहे, सुनते रहे। 

      यहाँ तक की उनके हाथों में दबी तलवारें फूलों की छड़़ियों में परिवर्तित हो गई और बल्लम मोरछल बन गए ।

गीत के बोल उनके कानों में रस घोलतेे रहे और धीरेे - धीरे वह सब एक - दूसरे से एक अनदेखी - अनजान डोर से बँँधते चले गए । जैसे वह सब एक ही माला के मोती हों जैसे वह एक ही माँ के जाये हो। उधर गीत समाप्त हुआ और वह अपनी मैली आस्तीनों से आँसू पोंछते हुए एक - दूसरे के गले लग गए।                               जब आँसुओं का गुबार कम हुआ तो उन्होंने अपनी प्यारी परी को तलाश करना चाहा मगर वह उनकी नजरों से ओझल हो चुकी थी। बस्ती वालों ने उसे बहुत ढूँढा, वादी - वादी, जंगल - जंगल आवाजें दी, मिन्नतें कीं मगर वह दोबारा जाहिर नहीं हुई। तब बस्तीवालों ने उसकी याद में एक मूर्ति बनाई , उसे बस्ती के बीचोंबीच मैदान में स्थापित कर दिया।

    कहते हैं ; आज भी बस्ती के लोगों में जब कोई विवाद होता है, सब मैदान में उस मूर्ति के गिर्द इकट्ठे हो जाते हैं और उस गीत के कारण शांति चैन से जिंदगी बिता रहे हैं।

जैसे उनके दिन फिरे, भगवान हम सब के भी दिन फेरे।’’

 मैंने कहानी खत्म करके अपने बेटे की तरफ देखा । चेहरा बिलकुल सपाट था। मैंने जम्हाई लेते हुए कहा, ‘‘ चलो, अब सो जाओ , कहानी खत्म हो गई ।’’

        उसने कहा, ‘‘ पापा, आपने कहा था, कहानी सुनाते समय कोई प्रश्न नही पूछना ।’’

    ‘‘हाँ... मैंने कहा था और तुमने कोई प्रश्न नहीं पूछा । तुम बड़े अच्छे बच्चे हो। अब सो जाओ ।’’

‘‘मगर पापा कहानी खत्म हो गई। मैं अब तो प्रश्न पूछ सकता हूँ ना ?’’ मैं थोड़ी देर चुप रहा। फिर बोला, ‘‘ चलो पूछो, क्या पूछना चाहते हो ।’’ ‘पापा ! वह कौन - सा गीत था जिसे सुनकर गाँव वाले दोबारा गले मिलने पर मजबूर हो गए ।’’  मैंने चौंककर उसकी ओर देखा । थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला । ‘‘मुझे वह गीत याद नहींं है बेटा !’’

 ‘‘नहीं पापा’’ उसने मचलतेे हुए कहा, “मुझे वह गीत सुनाइए, वरना मैं समझूँगा कि आपकी कहानी एकदम झूठी थी।” मैं थोड़ी देर चुप रहा , फिर दबे स्वर में बोला , “हाँ, बेटा यह कहानी झूठी है । कहानियाँ अकसर काल्पनिक होती हैं।” वह मुझे उसी तरह अपलक देख रहा था। मैंने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा, “मगर तुम इस झूठी कहानी को सच्ची बना सकते हो।” “वह कैसे ?” उसने हैरानी से पूछा। “बड़े होकर तुम वैसा गीत लिख सकते हो जैसा उस परी ने गाया था।” बेटे की आँखों में चमक पैदा हुई, “सच पापा ! ”

“ एकदम सच ।”

उसने मेरे गले में बाँँहें ड़ाल दींं । “यूू आर सो ‌स्वीट पापा ।”

  उसने आँखें बंद कर लींं । वह जल्द ही सो गया । मगर मैं रात में बहुत देर तक जागता रहा। बार - बार मेरे मन में एक ही विचार कुलबुला रहा था कि क्या मेरा बेटा वैसा गीत लिख सकेगा ?

            



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