गीत (पार्ट - १)
गीत (पार्ट - १)
मेरे बेटे ने हमेशा की तरह उस रात भी कहानी सुनाने का अनुरोध किया।मै काफी थका हुआ था इसपर दूरदर्शन से टेेलिकास्ट होनेे वाली खबरों ने मन और मस्तिष्क और भी बोझिल करदिया। लगता था पूूूरी दुनिया बारूद के ढेेर पर बैठी है। एक जरा माचिस दिखाने की देेर है बस। क्या इनसान पुुन: आदिकाल की ओर लौट रहा हैै?मन बेचैन और मस्तिष्क उलझा हुआ था। मैने बेेेटे को पुचकारते हुए कहा,
'' आज नहींं बेेटा ! आज पापा बहुत थक गए हैं। हम तुम्हे कल सुनाएंगे एक अच्छी सी कहानी।''
बेटे की जिद के आगे मैने थक- हारकर कहा, " ठीकहै, हम कहानी सुुुनाएंगे मगर तुुम बीच मे कोई प्रश्न नहींं पूूूूूूछोगे।"
"नहींं पूछूूूंगा ।" उसने हामी भरी पुरानेे जमाने की बात है..." मैनेे कहानी शुरु की।
"कितनी पुरानी ?" वह बीच में बोल पडा ।
"ऊँँ...हूँ...। मैैैंन कहा था ना, तुम कोई सवाल नहीं पूछोगे।"
"ओ हो... साॅरी पापा !" उसने कसमसाते हुुए क्षमा माँगी।
" वैसे बात बहुत पुरानी भी नहीं है ।" मैने कहानी जारी रखते हुुए कहा । यही कोई पचास बरस हुए होगे । ... याहो सकता है सौ- दो सौ बरस पुरानी हो।... अधिक से अधिक हजार - बारह सौ बरस पुरानी भी हो सकती है या फिर इससेेे भी ज्यादा...।
कहते हैं उस ऊची पहाडी के पीछे बस्ती थी। बस्ती, सचमुच बहुत पुरानी थी। बस्ती मेें ऊँचेे - ऊँचे मक़ान थे।मकानो केे आँगनो में फ़ूलों की क्यारिया लगी थी जिनमे रँग बिरंगे फूल खिलते थे और हवाओं में हर पल भीनी - भीनीखुशबू रची रहती थी । बस्ती के बाहर बाग़ों का सिलसिला था , जिन में तरह-तरह के फलदार पेेड थे। पेडो पर परिंदेसुबह - शाम चहचहाते रहते। बस्ती के पास सेे एक नदीगुजरती थी जिससे आस-पास की धरती जल संपन्न होती
रहती । मनुष्य तो मनुुुष्य ढोर - डंगर तक को दानेे - चारेकी कमी नहीं थी। गायेें बहुत - सारा दूूध देतींं। बस्ती के लोग प्रसन्नचित , मिलनसार और शाांतिप्रेमी थे। पुरुषदिनभर खेेत- खलिहानो और बागो मे काम करते। पशु चराते लकडियाँ काटते और औरते चूूल्हा - चक्की सँभालती उनमे जो शक्तिवान थे कश्तियाँ लडते , लाठी - बल्लम खेलते। चित्रकार चित्र बनाते और कवि गीत गाते थे। खुुुुशिया रोज उस बस्ती की परिक्रमा करती और दुख भूले से भी कभी उधर का रुख न करते।
कहते हैं बस्ती के पास ही एक घनेे पेेड पर एक परी रहती थी। नन्ही - मुन्नी , मोहनी मूरत और मासूम सूूूूरतवाली, बडी - बडी आँखो, सुनहरे बालों और सुर्ख़ गालोवाली। परी गाँववालो पर बहुुत मेेेहरबान थी। वह अकसर अपने चमकदार परो केे साथ उडती हुई आती और उनके रोते हुए बच्चो को गुुुदगुदाकर हँसा देती। लडकियोके साथ सावन के झूूलेे झूलती, आँखमिचौली खेलती। लडको के साथ पेेडो पर चढती, नदी - नालो मे तैरती। कभी
किसी के खलिहान को अनाजो से भर देती, कभी किसीके आँगन में रंग - बिरंगे फूल खिला देती।
दिन गुुजरते रहे। समय का पंछी काले-सफेद परो के साथ उडता रहा और मौसम का बहुरूपीया नये रूप बदलता रहा । फिर पता नहींं क्या हुुआ, कैसे हुआ कि एक दिन किसी ने उनके खेतों में शरारत का हल चला दिया ।बस, उस दिन से उनके खेत तो फैलते गए, मगर मन सिकुुुडने लगे। गोदाम अनाजों से भर गए मगर नीयतों में खोट पैदा हो गई । अब वे अपनी निजी जमीनों के अतिरिक्त दूूूूूूूूसरो की जमीनों पर भी नजर रखने लगे। नतीजे के तौर पर खेतो में मक्कारी की फसल उगने लगी और पेड छल-कपट के फल देने लगे। लालच ने उनमें स्वार्थ का विष घोलदिया । पहले वह मिल बाँटकर खाते थे, मिल-जुलकर रहते थे मगर अब हर चीज विभाजित होने लगी। खेेेत - खलिहान, बाग-बगीचे, घर - आँगन यहाँ तक कि उन्होंने अपने पूूूूजा घरों तक को आपस मेें बाँट लिया और अपने - अपने खुदाओं को उनमें कैैैद कर दिया । उनकी आँख़ों की कोमलता और दिलों की उदारता हथेली पर जमी सरसों की तरह उड गई। तस्वीरों के रंग अंधे और गीतों केे बोल बहरे हो गए । अब न कोई तस्वीर बनाता था; न कोई गीत गाता था। हर घडी़ , हर कोई एक-दूसरे को हानि पहुँचाने की फिक्र में रहता।
बस्तीवालों के ये बदले हुुुए रंग - ढंग देखकर वह नन्हीं परी बहुुत दुखी हुई । वह सोचने लगी, आख़िरबस्तीवालों को क्या हो गया हैं ? ये क्यों एक - दूसरे के बैरी हो गए हैं ? मगर उसकी समझ मेें कुछ नहींं आया । वह अब भी बस्ती में जाती, बच्चोंको गुदगुदाती और औरतों के साथ गीत गाती , उनके खेेेत - खलिहानों के चक्कर लगाती, आँगनो में घूमती - फिरती । मगर अब, वह सब उसकी तरफ बहुत कम ध्यान देेते । बस्तीवालों की उपेक्षा के कारण
नन्हीं परी उदास रहने लगी। आखिर उसने बस्ती मेें आना -जाना कम कर दिया ।फिर एक दिन ऐसा आया कि उसने बस्ती मेें आना - जाना बिलकुल बंद कर दिया ।
स्तीवाले आपस में झगडे - टंटों में इतने उलझे हुए थेे कि शुरू में उन्हें उसकी अनुुुपस्थिति का आभास ही नहीं हुआ । मगर जब सुहागिनों के गीत बेेेेसुरे हो गए और कुआँरियो ने पेड़ो की टहनियोंं सेे झूले उतार लिए और बच्चे खिलखिलाकर हँसना भूल गए तब उन्हे एहसास हुआ कि उन्होंने अपनी कोई अनमोल वस्तुु खो दी है। बस्ती वालेचिंंतित हो गए। उसे कहाँ ढूँढे़, कहाँ तलाश करेें ?
पहले तो उन्होने उसे अपने घरों केेे आँँगनो में तलाश किया । मैदानों में भटके, पेेडों पर और गुफाओं में देखा , मगर वह कही नहीं थी। अब उनकी चिंता बढने लगी। मगर बजाय इसके कि वे मिल - बैठकर , सर जोडकरउसके बारे में सोचते । वे एक - दूसरे पर आरोप लगाने लगे कि परी उनके कारण रूठ गई है। अब तो उनके दिलों की नफरत और भी गहरी हो गई।
क्या परी वापस आई ? क्या बस्तीवाले फिर मिल जाएंगे ?जानने केे लिए इसका अगला पार्ट पढिए।
