घर का चांद
घर का चांद
लाला गिरधारी लाल के पोते की अभी नयी नयी शादी हुई थी पांच पीढ़ियों से लाला जी के यहां लड़की का जन्म नहीं हुआ था गिरधारी लाल जी के पिता जी की भी कोई बहन नहीं थी। हर साल पंडित आकर रक्षाबंधन पर राखी बांध जाता था। मन में बड़ी कसक थी कि हे भगवान ऐसा मेरे खानदान से क्या पाप हो गया जो हमारा खानदान कन्या जन्म के लिए तरस गया।
एक दिन गिरधारी लाल जी को सपने में अपना गांव वाला पैतृक निवास दिखाई दिया और उसके आंगन में एक छोटी सी कन्या खेलती दिखाई दी। सपने में ही गिरधारी लाल जी बहुत खुश हो गये कि साक्षात लक्ष्मी का आगमन हो गया हो। पर थोड़ी ही देर में क्या देखते है कि वह कन्या मिट्टी से लथपथ जोर जोर से सांस ले रही है और उसने उनके आगे ही दम तोड़ दिया। तभी गिरधारी लाल जी हड़बड़ा कर उठे। और सपने की फाल (मतलब) निकालने लगे। उन्होंने अपने गुरुदेव के आश्रम में जाकर उन्हें अपने सपने के विषय में बताया तब गुरुदेव बोले, "भाई ,मुझे तो इस सपने से यही समझ आता है कि आप के यहां किसी कन्या की हत्या की गयी है।" सेठ जी एकदम सकते में आ गये कि कौन होगा जिसने कन्या की हत्या की हो। वे अपने पैतृक गांव पहुंचे वहां जाकर उन्होंने जहां वो लड़की मिट्टी से लथपथ दिखाई दी थी वहां जा कर आंगन की खुदाई करवाई। सेठ जी आश्चर्य चकित रह गये आंगन में जिस कोने में वो लड़की मरते हुए दिखी थी वहां एक दस बारह साल के बच्चे का नरकंकाल मिला हां सेठ जी को ये पता था कि उनकी बड़ी पीढ़ी में उनकी परदादी के बहुत सी लड़कियां थी बड़ी मुश्किल से उनके दादा जी सात बहनों के बाद हुए थे। पर जब उनके दादा जी पैदा हुए उससे एक साल पहले उनकी एक बहन अचानक से गायब हो गयी थी। ये सब दादा जी छोटे गिरधारी लाल जी को बताया करते थे। सेठ जी को माजरा समझते देर नहीं लगी कि कहीं परदादी ने बेटे के लालच के लिए अपनी ही बेटी की बलि तो नहीं दे दी। गिरधारी लाल जी ने बड़े ही सम्मान से उस नरकंकाल की अंत्येष्टि की और हाथ जोड़कर नाक रगड़ कर माफी मांगी, कि मेरे पूर्वज से जो ग़लती हुई है उसका मैं क्षमा प्रार्थी हूं। ये सब करके सेठ जी गांव से शहर आये तो खुशखबरी मिली कि पोते की बहू मां बनने वाली है। बेटी की आस में सारा परिवार नौ महीने गुजार देता है नौ महीने आठ दिन बाद बहू को लेबर पेन शुरू हुआ बेटा, पोता और बहू तीनों साथ गये अस्पताल पीछे से गिरधारी लाल जी बस यही दुआ करते रहे ,"हे मां। अब तो अपना सलोना सा रूप इस घर आंगन में भेज दो। दोपहर को पता चला बहू ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया है। लाला जी ने दो दिन तक बैण्ड बाजा बजवाया और जब अस्पताल से घर ला रहे थे तो सारे रास्ते फूलों की वर्षा करवाई। सेठ जी ने पहली बार जब पोती को हाथ में लिया तो यही कहा ,"तू मेरे घर का चांद है चल मेरे साथ अपनी चांदनी से मेरे घर को रोशन कर दे।" लाला जी की आंखों से आंसू अविरल बह रहे थे।
