kavi manoj kumar yadav

Others

2  

kavi manoj kumar yadav

Others

एक मुट्ठी ईमान

एक मुट्ठी ईमान

3 mins
3.1K


सतीश अपने समाज के पढ़े लिखे सभ्य लोगों में गिना जाता था। समाज में उसकी बात काटने की हिम्मत आज तक किसी ने नहीं दिखाई थी। लेकिन बचपन से ही अभावों में पले बढ़े सतीश को महंगी चीजों का बड़ा शौक था। वह जीवन में हर महंगा शौक करके देखना चाहता था। किंतु किस्मत ने आज तक उसे ऐसा मौका नहीं दिया था। घर परिवार की जिम्मेदारियां निभाते निभाते वह इतना थक चुका था कि आखिर में मन मसोस कर रह जाना पड़ता। चुनाव आने वाले थे। इस बार ठाकुर गजेन्द्र सिंह ने इलाके में डुगडुगी बजवा रखी थी कि जो भी उसके खिलाफ जाएगा उसका हश्र अच्छा नहीं होगा। ठाकुर की खिलाफत करने की हिम्मत किसी में न थी। ठाकुर ने सतीश को अपनी ओर मिलाने का बहुत प्रयास किया किंतु सतीश उसके सामने नतमस्तक न हुआ। और होता भी कैसे अभी साल भर पहले ही ठाकुर ने उसकी बहन को अगवा किया था और दस दिन बाद उसकी लाश खेतों में क्षत विक्षत अवस्था में मिली थी। इस बात से पूरे समाज में रोष व्याप्त था। सबने मन ही मन फैसला कर रखा था कि इस बार ठाकुर को किसी भी हालत में जीतने नहीं देना है। सारा वोट बैंक सतीश के कब्जे में था। जिसे सतीश बोल दे उसे ही वोट किया जाएगा।

ठाकुर को ख़िलाफत की बू साफ साफ नजर आ रही थी। आखिरकार उसने सतीश को हवेली पर बुलाने का फैसला किया। सतीश सकते में था आखिर ठाकुर ने उसे क्यों हवेली में बुलाया है। संकोच करते करते आखिर वह बिना किसी को बताए हवेली पहुंचा। ठाकुर ने उसे देखते ही गले से लगा लिया। इससे पहले सतीश कुछ समझ पाता उसे अपने साथ झूले में बिठा लिया। इस बीच ठाकुर के कारिंदे उसके ऊपर पंखे से हवा भी कर रहे थे। आखिर ठाकुर ने बात शुरू की "देखो सतीश हम जानते हैं कि तुम हमसे बहुत नाराज़ हो। लेकिन अब पुरानी बातें लेकर बैठने से क्या फायदा। हम चाहें तो मिलकर लाखों कमा सकते हैं। तुम इस चुनाव में मुझे जितवा दो तुम्हारे घर को महल बनवा दूँगा। जिंदगी में कभी किसी चीज की कमी नहीं रहेगी। जिंदगी भर ‌ऐश करोगे ऐश।" सतीश सोच में पड़ गया। बोला मुझे सोचने का मौका दें। आपको कल बताता हूं। सतीश उस रात सो न सका। बहुत सोच विचार किया और फिर अगले दिन ठाकुर की हवेली जा पहुंचा। ठाकुर के ठाठ बाट उसे बहुत आकर्षित कर रहे थे। मन ही मन सोच रहा था आखिर ये सब मेरे पास ये सब क्यों नहीं। आखिर कब तक झूठे संस्कारों का बोझ लेकर जिंदगी काटूंगा।

ठाकुर ने एक मुट्ठी बादाम सतीश के हाथ में रखते हुए पूछा "तो क्या निर्णय लिया तुमने।" सतीश मना न कर सका। उसने सहमति में सिर हिला दिया। सुनहरे भविष्य के सपने उसकी आंखों में तैर रहे थे। एक मुट्ठी बादाम में सतीश अपना ईमान बेच चुका था।



Rate this content
Log in