सैंटा गरीब हो गया
सैंटा गरीब हो गया
मनीष यूं तो एक साधारण मध्यमवर्गीय हिंदू परिवार का नौजवान था। किंतु उसने अपने बच्चों को हर जाति और धर्म को समान रूप से देखने की शिक्षा दी थी। उसने हर वर्ष होली, दीवाली के साथ साथ ईद और क्रिसमस भी बिना किसी भेद भाव के अपने परिवार और दोस्तों के साथ मनाया था। सारी दुनियां कोरोना के बाद आ रहे क्रिसमस को जोरदार तरीके से मानने की तैयारियों में जुटी थी। मनीष के बच्चे भी इस त्यौहार को लेकर काफी खुश और उत्साहित थे। हर साल उन्हें सैंटा क्लॉज से भर भर के मनचाहे गिफ्ट जो मिलते थे। इधर मनीष मन ही मन परेशान था। कोरोना के बाद आए रिसेशन ने उसकी भी नौकरी छीन ली थी और वह बेरोजगारी के दंश को झेल रहा था। बच्चों ने हर बार की तरह इस बार भी सैंटा से मांगने वाले गिफ्ट की लिस्ट बना ली थी। उन्हें पिता की मनोस्थिति का जरा भी भान न था। मनीष ने भी मन ही मन निश्चय किया कुछ भी हो जाए किंतु उसकी परिस्थितियों का प्रभाव उसके परिवार पर नहीं पड़ने देगा। उसने बाजार जाकर अपनी सबसे महंगी घड़ी चंद पैसों में बेच कर परिवार की खुशियां खरीदने का मन बना लिया। क्रिसमस ट्री के साथ साथ सजावट का सामान और पार्टी के लिए कपड़े आदि सब खरीद कर घर ले आया। हर साल की भांति इस बार भी सोते समय बच्चों के तकिए के नीचे चॉकलेट्स रखीं।मनीष मन ही मन प्रसन्न था कि उसने बच्चों की हर इच्छा को पूरा किया। अगले दिन जब बच्चे सोकर उठे तो सबसे पहले अपने अपने गिफ्ट देखे। बच्चे बहुत खुश हुए। फिर अचानक बेटा बोला पापा इस बार सैंटा थोड़ी छोटे साइज की चॉकलेट देकर गया है। क्या उसके पास बड़ी चॉकलेट्स नहीं बची थीं या वो गरीब हो गया है। यह सुनकर मनीष बोला हां बेटा इस बार कोरोना की वजह से सैंटा भी गरीब हो गया होगा। और फिर सब मिलकर हंसने लगे।