दशकों पहले खुद को एक खत
दशकों पहले खुद को एक खत
मैंने दशकों पहले खुद को एक पत्र लिखा था जब मैं एक वेबसाइट पर इस अद्भुत विषय के साथ आया था। तभी से मेरे मन में ये विचार हर रोज आता था। की में क्या लिखती उस दौर में पहले थोड़ा ताजुब हूवा फिर अपने आप ही कलम चलने लगीं जैसे पहले ही सब कुछ तैयार था। ख़ुद के बारे में हमेशा दूसरों के मुंह से तारीफ़ या खड़े बोल सुनती आयि हूं वैसे भी ख़ुद के बारे में कोन ये बोलता है बहुत कम ही होंगे जो बोलते होंगे और ये पत्र तो बहुत दूर की बात है। ऐसी कुछ बातें दिल दिमाग में आ रहीं थी पर हां अगर वक्त मिलता और कुछ लिख पाती तो वो कुछ ऐसा होता।
प्रिय भाग्यश्री, बहुत दिन हुए तुमसे बात हुई ही नहीं में तो और ही कामों में व्यस्थ थी तुमसे तो बात तो हुई ही नहीं तो आज सोचा थोड़ा बात कर लूं कुछ नहीं बस यूं ही वही दिन अच्छे थे जरूरतें कम थी दिल और दिमाग पे बोझ भी कम था। सभी सुकून से जीते थे। कोई अनबन नहीं ना कोई परेशानी तब लोग सिर्फ़ आज के ही बारे में सोचते थे हां थोड़ी सोच पुरानी थी फिर भी ज़िंदगी आसान लगती थी। आज पता नहीं बरसों पड़ा खत पढ़ेना का मन किया खुद में फिर से एक बार झाक के देखना चाहती थीं। इतने बरसों बाद कुछ बदला है भी या नहीं हा बहुत कुछ नहीं पर थोड़ा बहुत बदला ज़रुर है तब ज़िम्मेदारी कम हूवा करती थी ठीक से खाना पिता होता था ख़ुद के बारे में सोचना होता था ज़िंदगी मानों मेरे हिसाब से चल रहीं थी।
किसी पर निर्भर होना पड़ता नहीं था तब ये भ्रमण ध्वनी भी नहीं होता था। तो हद से ज्यादा किसी से लगाव भी होता नहीं था अपनी पढ़ाई आपना घर आपने सपने बस यहीं ज़िंदगी थी आज़ का आज ही सोचते थे। बहुत कुछ सोचना भी होता नहीं था तब अपने लोग दूर हो कर भी दिल के क़रीब होते थे याद आइ तो खत वगैरा लिखा जाता था। एक दूसरे दिन जाना आना होता था। और सभी चीजों में दिलजस्पी होती थी खुद को और दूसरों को जानने का मौका मिलता था तब दिखावे के लिए नहीं सच में लोगों में अपना पन और प्यार होता था।
अब सब कुछ बदल गाया है जैसी जिन्दगी जा रही हैं वैसे ही जाने दे रहें हैं लोगों की ईच्छा उनकी फिकर पूरी कर रहे हैं खुद से ज्यादा दूसरों का अधिक ध्यान दे रहे हैं आधी ज़िंदगी तो भ्रमण ध्वनी में ही जा रही है कभी दो मिनिट शांति से बैठ कर खुद को कभी पूछा ही नहीं की कैसे हो तुम?? तब कोई पूछता नहीं था फिर भी खयाल होता था तब खुद से ज्यादा और कोई बढ़ा होता ही नहीं था। जो मिलता वक्त खुद में लगाते थे कुछ नया सिखाते पढ़ते थे और खुद को काबिल बनाते थे जो कुछ कर रहे होते थे वो खुद के लिए होता था। अब भी सब कुछ होता हैं फिर भी लोग क्या कहेंगे इसी पर ही गाड़ी मानो रुक सी जाती हैं। तब सिर्फ़ खुद के लिए जीते थे चेहरे पर मुस्कान रहती थीं और उस मुस्कान के पीछे सिर्फ़ खुशियां ही होती थी।
सपने भी छोटे हु़वा करते थे और उससे ज्यादा खुशी सुख चैन और मन को शान्ति मिलती थी तब हर कोई खुद कुछ करने का प्रयास करता था बरसों बाद इस शब्द सुनते ही बचपन याद आ गया छोटीशी ज़िंदगी छोटेसे सपने देखने में मज़ा भी बहुत आता था जैसे मानो वही ज़िंदगी है आज में जीना और मजे लेते रहना तब परियोंकी कहानी हुवा करती थी कोई राजकुमार और रानी आती थी तब सिर्फ़ आज में जीते थे वहीं शाला से आना रोज का दिया हूवा पाठ याद करना और भी बची हुई पढ़ाई खत्म करना और बाहर जाकर खेलना कूदना नए दोस्त बनाना और सच्ची वाली दोस्ती निभाना मन में कोनसा भी कपट या फिर किसी के बारे में अच्छा ही सोचना नई नई चीजें सिखाना बड़े लोगों का आशीर्वाद लेना भगवान के सुबह शाम को माथा टेकना और अच्छे अच्छे सपने देख बढ़े होना और ज़िंदगी की हर परीक्षा को पार करना कभी हार नही मानना और तब की और में बहुत मुश्किल से रोना आता था। तब सिर्फ़ खुद के लिए रोते हंसते थे तब किसी को मुझसे बात करो या कोई नया रिश्ता बनाने के लिए रोना या मायूस होना पड़ता नहीं था तब रात को निंद भी अच्छी आती थी मन में सिर्फ अच्छे विचार और अच्छे संस्कार हुवा करते थे तब कोई भी मतलब के लिए रिश्ता जुड़ता नहीं था तब प्यार और जस्बातो को एमिहित दी जाती थी तब कोई फसता नहीं था। इसीलिए बचपन अच्छा था। तब ज़िम्मेदारी कम थी बस आज में जीना मायने रखता था।