Alok Singh

Drama Fantasy Romance

5.0  

Alok Singh

Drama Fantasy Romance

दिल्ली से शिमला

दिल्ली से शिमला

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सही कहा था किसी ने ....ज़िन्दगी जीने के लिए एक लम्हा बहुत है ...आज तुम कितने दिनो बाद मिल रहे हो ....सारे गीले शिकवे मै भूल रही हूँ जैसे ....बेचैनी मेरी दिल की रफतार से तेज है ....आज तुम्हारी आवाज मुझे ज़्यादा मधुर लग रही है ....ऐसे ही तो एक दिन तुम मिले थे जब तुम मेरे पीछे वाली सीट पर बैठे हुये थे ....कितने अजनबी थे हम दोनों .....मै अकेले सफर कर रही थी ...तुम भी अपने दोस्त से मिलने जा रहे अकेले ....मेरे पास वाली सीट पर एक अंकल बैठे थे ....शायद वो थोड़ा नसे में थे ....य़ा होश मे ही थे ...जो मुझे बार बार अनकमफर्ट फील करवा रहे थे .....उनके हाथ उनके उम्र से ज्यादा जवान हो रहे थे ...मैने कई बार उनको चेतावनी दी ...पर जब वो न माने तो मैने उनको एक चपत लगा दी थी ...पूरे बस मे सन्नाटा छा गया था ....बस पूरी भरी थी .इसलिए कोई सीट भी नही बदल सकती थी ....और मेरे झन्नाटे वाले तमाचे की वजह से मेरे पास की सीट पर कोई बैठने को भी तैयार न हो रहा था ...फिर तुमने उस अंकल से सीट बदल ली थी ....क्या सोचा था तुमने....तुमको डर नही लगा था ..कि कहीं ये लड़की मुझे भी कुछ न सुना दे .....

मै देलही से शिमला जाने की बस का इंतजार कर रहा था कश्मीरी गेट बस अड्डे पर ...वहीं एक लड़की ...शायद एक पत्नी अपने पति से फ़ोन पर पूँछ रही थी ...मै सिर्फ उसकी बातों को सुन रहा था .....

वह लड़की बहुत खूबसूरत थी ....लगभग 5फीट 4इंच लम्बी ....गुलाबी गाल ....हाथ मे गुलाब का फूल ....जो शायद ...उसकी खूबसूरती के आगे फीका लग रहा था ...हाथो मे चूड़ींयां बता रही थी कि कुछ ही दिन हुये हों शादी के ...आँखों मे काजल ऐसा लग रहा था कि ..अमावस की रात उसकी कजरारी आँखों से ही काली रात के लिए काला रंग चुराती हों और फिर उसको ही पूरे आसमान में बिखेर देता हो ....उसकी जुल्फें खुली हुयी थी .और हलकी हलकी हवा से उसके चेहरे पर आजाती थी ...जिनको वह ...अपने हाथों की ऊंगलियों से सुलझाने की कोशिश करती थी .....होठों की लाली ..और सफेद दांत ....और उसके काले बाल ....ये सब ऐसा प्रतीत करवा रहे थे कि मानो सुबह का सूरज अमावस की रात को काट कर निकलने की कोशिश कर रहा हो .....

वह इधर तो कभी उधर चल चल कर बात कर रही थी ....

फ़ोन के दूसरे तरफ से आवाज आयी ..कि पता नही ...मुझे कहाँ से इतनी ताकत आगयी थी ....कि मैने सोचा कोई नही ....जब तुम असहज महसूस कर रही थी उस अंकल की वजह से तो चलो मै बैठ जाता हूँ ... और मेरा कोई गलत ईरादा नहीं था ..और हो भी नही सकता था ...तुम्हारा वह रूप देखकर मै थोड़ा सहम सा गया था ....

वह लड़की जोर से हसने लगी ....फिर अपनी हंसी को समेटते हुये बोली ....बच कर रहना .....इन हाथों ने बंदूख चलाना छोडा है ....चलाना नही भूले ....फिर खिल खिला कर हंस पडी वह ...

उधर से भी हसने की आवाज आरही थी ....

फिर उधर से लड़के की आवाज आयी तुम पहुच गयी कश्मीरी गेट ....हाँ बोलने से ज्यादा उसने हामी भरते हुये सर हिलाया जैसे वह सामने ही हो ....तुम कहाँ पहुंचे ...? बस ...देखो ..मै भी आगया ....अरे ....इधर ......हाँ दिख गये तुम ...चलो आओ ..जल्दी से ...चले ..बस का भी समय हो रहा हैं....

लड़के ने पहले उसको गले लगाया ...फिर बैग लेकर स्वाचालित सीडियों की तरफ दोनो चल पडे ......

स्वचालित सीडियों से दोनों शिमला बस के लिए काउंटर नंबर २० की तरफ चल पड़े ....मेरी भी बस का समय हो रहा था ...तो मैं भी शिमला के लिए निकल पड़ा..१० बजे की बस थी मेरी ...सीट नंबर १२ विंडो सीट.....बस चलने वाली थी कि अचानक वो दोनों बस में दाखिल हुए...कंडक्टर चिल्ला रहा था ..कि समय पर चढ़ने में क्या दिक्कत होती है आप लोगो को...यही सामने खड़े थे पर ये नहीं की अंदर आजायें और अपनी सीट पर बैठ जाएँ .....वो दोनों आकर अपनी सीट पर बैठ गए..मानो उनको कंडक्टर की आवाज सुनाई ही न दी हो ...मेरे आगे वाली सीट उन दोनों की थी .....

बस चलने लगी .....मेरे पास की सीट पर भी एक लड़की बैठी थी ...एक महक मेरे दिमाग में छा रही थी...पता नहीं वो उसके बदन की महक थी या सेंट की ...पर जो भी थी...बहुत अच्छी थी ...चेहरे पे शांति ...हाथो में मोबाइल...कान में इअर फ़ोन ....कोई रोमांटिक सांग उसके कानो के रस्ते उसके दिल तक पहुंच रहा था ...और बीच बीच में उसकी आवाज उसी गाने के साथ अपने अलग राग छोड़ रही थी....

अरे स्वीटू ..कुछ खाने को लाये हो क्या...यार भूख लग रही है ...हाँ..ऊपर बैग में रखा है ....अपने हाथो से कचोड़ी बना कर लायी हूँ .....वाह....क्या बात ...मेरी सासू माँ ने कुछ बना कर न दिया क्या? ज़ोर से वह लड़का हँसा .....और बैग उतारने लगा....

बस भी अपनी रफ़्तार से दिल्ली की सड़कों को जल्द से जल्द छोड़ने के लिए उतावली हो रही थी ....शायद इतना प्रदुषण जो है ...सोच रही होगी की कितनी जल्दी अच्छी हवा में साँस लेने को मिले...

वह दोनों आपस में कुछ बातें कर रहे थे ...शायद अपनी पुराणी बाते ..कभी कभार ऑफिस की बातें ...यही सब चल रहा था ...और २ घंटे के बाद बस खाने के लिए रुकी ....

खाने की टेबल पर वो सामने बैठे थे....नज़रों नज़रों में ही नमस्कार हो गया ......

बस में फिर बैठे...और अपनी बातों का सिलसिला सुरु हो गया ....कहाँ से हो...क्या करते हो...एक ही सांस में उस लड़के ने मुझसे कई सवाल दाग दिए ....

मैंने भी पुछा ..आप कहाँ से हो...जी मैं तो यही दिल्ली से ही हूँ...पिछले साल ही शादी हुयी ये मेरी वाइफ है ....बहुत अच्छा है ....

अच्छा एक बात पूछनी थी ...क्या? पूछिए...आपने उस दिन बस में क्या सोच कर इस लड़की के पास वाली सीट पर बैठने की हिम्मत की ? हाहाहाहाहा...आपको कैसे पता.....उसकी वाइफ भी तुरंत पलट गयी ....अरे आप को कैसे पता ? हमने कहा जब आप बात कर रहे थे..हम वही पर बैठे थे तब पता चला..ओह...दूसरों की बाते चोरी छुपे सुन्ना ..अच्छी बात नहीं...मेरी पास वाली सीट भी अपना फ़ोन साइड कर चुकी थी...उसकी मुस्कान बता रही थी थी वह भी मेरी बातें सुन रही है ...मैंने तुरंत कहा ...मैडम ये बात आप पर भी लागू होती है ...आपकी मुस्कान बता रही है की आप भी हम लोगो की बातें चोरी चोरी सुन रही हैं....नहीं जी ऐसा कुछ नहीं है...अब अपने कान तो बंद नहीं कर सकते न ....

मैंने आगे वाली सीट पे बैठी मैडम की तरफ इशारा किया....मिल गया जवाब आपको....

भाई अब बताओ आप...जो पुछा .....

भाई...बस यूँ समझ लो ...किस्मत कनेक्शन था ..शायद हम लोगो को एक होना था इसलिए समय ने साथ दिया ...और हमारे विचारों ने दिल की बात मान ली ....और दिमाग को आदेशित कर दिया..चलिए..आपकी मंजिल शायद इंतज़ार कर रही है ......

उसकी बीबी भी बोली....डर नहीं लगा था .....अरे डर किस बात का ..कोई हम छेड़ने के लिए थोड़े न बैठे थे पास में ....वैसे आप हिम्मत भी नहीं कर सकते थे..................और वह है पड़ी ....

भाई..बस उस दिन दिल का मान लिया..और बैठ गए...फिर यूँ ही थोड़ा बहुत बात सुरु की इसने .......येजनाब ..मैंने ? या आपने? ....अरे किसी ने भी किया हो...शुरुआत तो हुयी थी न बात की....हाहाहाहा....और क्या...आम खाने से मतलब...गुठली गिनने से नहीं...मेरे पास वाली सीट से आवाज आयी.....

अब हम ४ लोग बातें कर रहे थे.....और इस कमी को भी महसूस कर रहे थे की सीट आपने सामने ...एक दूसरे का चेहरे देखने वाली भी होनी चाहिए..जिस से बात करने में आसानी हो...खैर..ये तो हो नहीं सकता था...पर हम लोग कोशिश कर रहे थे..सर घुमा घुमा कर बात करने की....

चलिए फिर आज आप लोग अपनी कहानी बता दीजिये...की क्या हुआ हुआ था उस दिन ....

जनाब आपको बहुत मजा आरहा इन दोनों की कहानी में....अरे.........इसमें मजा आने की क्या बात...शायद ये मैडम भी जानना चाह रही थी...की क्या बात थी...पर कन्धा हमारा मिल गया...बंदूक तो चलनी ही थी ....

पता है आपको.उस दिन ये जनाब काफी समय तक चुप बैठे रहे पहले तो...फिर बोले कहाँ तक जाना है आपको? मैंने कहा ये बस कहाँ जा रही है ? फरीदाबाद .....तो....वही ही जाउंगी...तुम्हारे घर थोड़े न जाउंगी?

हाहाहाहा मन में तो मैंने यही सोचा...चल पगली घर ही चल......क्या पता था भाई....मन की आवाज ये सुन लेगी....और एक दिन घर ही आजयेगी....हमेशा के लिए मेरी होकर....फिर उसी सवाल जवाब से हमारी बाते शुरू हुयी थी...वैसे भाई मैं तो इरिटेट हो गया था,...इसके जवाबों से..पर ५ मिनट बाद ट्रैफिक सिग्नल होने पर इसने कहा ....आज बहुत ट्रैफिक है...अब तो डेली का हो गया है....इतना ट्रैफिक ...है न? फिर क्या था....एक सवाल आया नहीं की....मैंने जवाबों की झड़ी लगा दी.....हाँ.....मौका तो ताड़ते ही हो तुम लड़के...

फिर तुम लोगो की शादी भी हो गयी कैसे? मेरे पास वाली मैडम बोली...जिनकी आँखों में चमक सबसे ज़्यादा थी.....मंद रौशनी में भी चमक रही थी आँखें.....

हाँ थोड़ा दिक्कत हुआ....क्योंकि जाति को लेकर हमारा समाज बहुत आगे है ....पता नहीं क्यों नहीं समझते लोग..हमेशा भगवान् नहीं पूछता की किसके घर भेजा जाये.....यहाँ जैसे ऊपर की जाति में बच्चे पैदा होते हैं उसी माध्यम से नीची जाति वाले भी होते हैं....ये ऊँचा ये नीचे ...जाति के आधार पर ही फिक्स है सब...फिर कर्म से इंसान चाहे जितना गिरा हुआ हो...एक झटके में बोलती चली गयी वो लड़की....हमने कहा क्या हुआ? बोली मैं श्रीवास्तव ये ठाकुर .....पर मानना पड़ेगा लड़के को....५ साल तक घर वालों को मनाया सिर्फ मेरे लिए...और अंत में घर वाले मान ही गए ....

पड़ोस की लड़की में तो जैसे ऊर्जा आगयी हो....वाह क्या बात है...प्यार हो तो ऐसा......हमे लगा ..जैसे हम लोग तो कीड़े हैं प्यार के नाम पर ...हम लोगो को तो प्यार करना न आता है ....शायद मुश्किलों का सीना चीरते हुए जो पाया जाता है उसकी अहमियत ज़्यादा होती है ..बेवजह हम मुसीबतों से घबरा जाते हैं ....लड़ने की कला ही ज़िंदगी की परिभाषा को पूरा करती है...

हिमाचल में आपका स्वागत है .........जो धन्यवाद्.....बोर्ड को देख कर मेरे पास वाली मैडम बोली...

हमने कहा आप हिमाचल से नहीं हो? शिमला घूमने या किसी काम से जा रहे हो? मैडम बोली..मिल गया मौका...और लगाने को तैयार चौका ....हाहाहा ....नहीं जी ऐसा कुछ नहीं है...मैं शादीशुदा हूँ ...चौका मारने का इरादा नहीं है फ़िलहाल तो ....बस यूँ ही पुछा ..अरे आप तो बुरा ही मान गए ....हमने कहा हाँ थोड़ा थोड़ा...अरे मानिये तो पूरा मानिये....थोड़े से क्या होगा...फिर बोलोगे आप..ये दिल मांगे मोरे.....अपने सफ़ेद दांत दिखने लगी फिर वह

हाँ मैं किसी काम से जा रही हूँ शिमला ...आप शिमला से हो क्या? नहीं जी...मेरी शक्ल लगती है क्या की मैं शिमला से हूँ? शक्ल का क्या है? सब एक जैसी होती हैं........नहीं जी..मैंने कहा.

सबकी शक्ल एक जैसी तो नहीं होती ....देखिये हमारी आप की शक्ल कितना अलग...हीहीही ...अच्छा ...कहो आपने ये न कहा ..कि ये शक्ल कहीं देखी सी लग रही ........

आप क्या करते हैं ? जी मैं नौकरी करता हूँ ? अरे वो तो करते ही होंगे..शिमला में ऐसे तो रहते नहीं होंगे...पापी पेट को भरने के लिए क्या करते हैं वहां? 

जी सरकारी नौकरी ......मैंने कहा .......ओहो ...नौकरी...वो भी सरकारी...मौजा ही मौजा

कितना कमा लेते हो ? .....उसने पुछा ......ये सवाल तो मेरी धर्मपत्नी ने भी न पूछा आज तक....फिर इस सवाल का क्या जवाब देता मैं ...चलिए घर चलिए...सैलरी स्लिप ही दिखा दूंगा ....आराम से देख लीजियेगा.... 

आप गुस्सा बहुत जल्दी होते हैं? ....इतना गुस्सा अच्छा नहीं होता .....उसने कहा ...हिदायत देते हुए...

जी..बताने के लिए धन्यवाद् ...आगे से ध्यान रखूँगा .....

लग रहा आगे वाली सीट के लव बर्ड्स सो गए ........

कहो तो जगा दूँ ..मैंने मन ही मन में कहा ....बेचारे सो रहे तो इनको दिक्कत ...खुद को सोना हो तो जाओ...बेवजह मुझे क्यों इर्रिटेट कर रही है ..

पहाड़ी रस्ते जितना दिखने में अच्छे लगते हैं ..कुछ लोगों के लिए उतना सही नहीं होते ....पेट के अंदर का खाया पिया भी घूमता है .......जो अभी तक खुद बोल रही थी ..बोली बंद हो रही थी .....अजीब सा लग रहा है ...जैसे उलटी हो जाएगी...वो बोली...

वोमेटिंग बैग ले लो...सीट में ही रखा है....या कुछ टॉफी राखी हो तो खा लीजिये...शायद थोड़ा सही लगे....बैग में हाथ डाला...२ सेंटरा फ्रेश निकले और एक मेरी तरफ बढ़ा दिया ....ले लीजिये...ऐसा क्या ज़हर खुरानी होने का डर .....शिमला ही जायेंगे...टिकट देख लो चाहे.......और न होतो अपनी वाइफ को बोल दो .....मेरी फोटो भेज दो..की इस लड़की ने कुछ खिलाया है...अगर कुछ होता है तो कम्प्लेन कर देगी....

हे भगवान ..शांत रहो थोड़ी देर ....लाओ मैं ही दोनों खा लेता हूँ.......मन में सोचा ......फिर एक ले ली...लाओ खा लें...वरना आप बुरा मान जाएंगे ....

हम,...खा लो...मेरा हस्बैंड लेकर दिया था ...बैग में रख लिया था...क्या पता था...इस पर आपका नाम लिखा है ....

सुबह होने को थी ,...बस से हम उतरे...पास वाली मैडम बोली ....चलें घर हम भी....या अकेले जाने का इरादा है ? हमने कहा नहीं..आप भी चलिए...आपके बिना मेरा घर अधूरा है ...या कहूँ मेरी लाइफ ही अधूरी है .....टैक्सी कर ली है ....चलो आगयी बैठिये चला जाए घर .........

आप सोच रहे होंगे ...कि ये कैसी लड़की थी...शादी शुदा समझ कर भी मेरे साथ मेरे घर चल पड़ी....अरे जनाब...मेरी बीबी ने बिना बताये अपना भी टिकट करवा लिया था.....वो अपने घर से आ रही थी ...और मेरा दिल्ली में कुछ काम था सो शिमला से दिल्ली गया था...और मैडम लखनऊ से दिल्ली आयीं..फिर मेरा सारा डिटेल्स लेकर ...मेरे पड़ोसन की ही सीट करवा ली थी ...बस में...

चलिए...मैं तो घर पहुंच गया...कॉफ़ी पे रहे अब बैठ कर दोनों..................... 



#आलोक सिंह #गुमशुदा


परिचय - मेरा नाम आलोक सिंह है ...आकाशवाणी रायबरेली,उत्तर प्रदेश में अभियांत्रिकी सहायक पद पर कार्यरत हूँ


नाम - आलोक सिंह " गुमशुदा"


शहर/जिला - महमूदाबाद ( सीतापुर) उत्तर प्रदेश


फ़ोन नंबर - 9415103722


ईमेल- nitkalok.singh07@gmail.com


शिक्षा- एम् .टेक ( गोल्ड मेडलिस्ट) नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी,कुरुक्षेत्र, हरियाणा


हिंदी साहित्य में "गुमशुदा" के नाम से कविता /ग़ज़ल/ नज़्म /गीत/लेख लिखता हूँ


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