दामाद का कर्तव्य
दामाद का कर्तव्य
एक बेटी को हमेशा यही सिखाया जाता है, कि वह शादी के बाद अपने ससुराल की सारी जिम्मेदारियों को निभाए, और सब को उचित मान सम्मान दें।
और ससुराल में पहुंचते ही, उसको सारे कर्तव्य गिना दिए जाते हैं, कि उसका ससुराल में क्या कर्तव्य और क्या जिम्मेदारियां हैं।
सभी को अपना परिवार समझे,
सभी की सेवा करें,
सभी की बातें माने,
सबके खाने के बाद में खाए,
सुबह जल्दी उठे और रात में सबसे बाद में सोए,
बिना नहाए रसोई में ना घुसे,
अगर उसकी कोई चीज किसी को पसंद आ गई तो वह उसे तुरंत उठा कर दे दे,
किसी से लड़ाई झगड़ा ना करें,
सबसे मिल जुल कर रहे,
सुबह उठकर सभी का पैर छुए,
सर पर पल्लू रखें,
और भी तमाम सारे कर्तव्य उसको गिना दिए जाते हैं, और सलाह खुद की बेटी से लिए जाते हैं, वही बेटी के लिए कोई नियम नहीं होता, और ना ही बेटों के लिए भी कोई नियम बना होता है,
वह अपने बेटों को यह नहीं सिखाती की उसका अपने ससुराल के प्रति क्या कर्तव्य है।
उसको सिर्फ यही सिखाया जाता है कि वह दामाद है, और सर उठा कर रहे।
उसको नहीं सिखाया जाता कि सास-ससुर के पैर छुए,
कोई नहीं सिखाया जाता की छोटी साली को बहन समान माने,
उसको यह नहीं सिखाया जाता कि वह अपने ससुराल में अपने आप को जमाई ना समझ कर, एक बेटा बन कर जाए ।
उसको यह नहीं सिखाया जाता कि ससुराल वालों को अपने परिवार का सदस्य माने,
क्या कर्तव्य सिर्फ औरतों यानी की ( बहू )के लिए बने हैं ?
बेटों के लिए नहीं और दामाद के लिए नहीं, अपनी खुद की बेटी के लिए भी नहीं ।
ऐसी मानसिकता रखने वाले लोग आज भी समाज में है, पता नहीं कब खत्म होगी या मानसिकता लोगों की,
मुझे तो लगता है यह मानसिकता होनी चाहिए। आप लोगों की क्या राय है?
