चाय की चुस्कियां
चाय की चुस्कियां
कुछ बातें चाय की।
आश्चर्य की बात ये है हिंदी के अलावा,अरबी उर्दू, फारसी और रूसी में भी इसे चाय बोलते हैं। यहां तक बुल्गारिया, तुर्की, अल्बानिया, चेकोस्लोवाकिया, मकदूनिया में भी लोग इसे चाय हीं कहते हैं।पुर्तगाली और सोमाली लोग इसे शाह बुलाते हैं।ग्रीस में शाय।बंगाली ही नहीं चीनी, कोरियाई और तिब्बती लोग भी इसे चा बुलाते हैं।
जापानी लोग तो चाय का नाम उपसर्ग लगाकर बहुत अदब से लेते हैं। ओ- चाय। जापानी में ओ का मतलब आदरणीय होता है। महाराष्ट्रा में लोग इसे झटके से चहा बोलते हैं।
हम मैथिल लोग इसे चाह बोलते हैं, मानो ये सबकी चाहत हो गयी हो। वैसे मैथिल के अलावा थाई लोग भी इसे चाह बोलते हैं।वैसे चाय को पेय पदार्थ की संज्ञा नहीं दे सकते क्यूंकि इसके फायदे और नुकसान के ऊपर वैज्ञानिक लोगों में मतभेद है।हमें बचपन में चाय पीने से मना किया जाता था। जब कहीं जाते तो तारीफ की कीमत पर चाय पीने से मना कर देते। तारीफ ये कि वाह अच्छा बच्चा है चाय नहीं पीता। जैसे चाय कई तरह की होते हैं, वैसे हीं चाय के कप को पकड़ने का अंदाज भी सबका अलग अलग होता है। कुछ लोगों का सन्तुलन तो इतना जबरदस्त होता है कि वो चलती बस में भी बिना छलकाए चाय ले सकते हैं। चाय पीना अपने आप मे एक कला है। एक्सपर्ट की राय ये है कि जैसे हीं चाय हाथ में आये उसके ऊपरी सतह को फूँक मारते रहिये नहीं तो अगर मलाई की परत मोटी हो गयी तो उसे संभालने में मुश्किलात हो सकती है। ढाबे पर चाय परोसने की कला स्टंट जैसा होता है। इसमें गर्म चाय को लगभग दो फुट उपर से कप में गिराया जाता है। इस प्रक्रिया में धारा के साथ कुछ हवा नीचे गिरकर सतह पर सुंदर बुलबुला बना देती है। चाय की खासियत ये है कि अगर ये अच्छी न भी हो तो भी लोगों के साथ बैठ कर पीने पर अच्छी हीं लगती है। चाय हमें जोड़ती है। सुबह की चाय बड़ी निराली होती है। नींद से उठने के बाद हर कोई मासूम हीं होते हैं और उस वक्त पूरा परिवार एक साथ बैठ कर चाय पीते हैं तो इसमें संस्कार और संस्कृति की झलक मिलती है। छोटे बच्चों को भी दूध या जूस देकर गुट में शामिल कर लिया जाता है।
कुछ लोग चाय को यूं हीं लेना पसंद करते हैं। तो कुछ लोग इसके साथ बिस्किट, नमकीन इत्यादि।चाय और बिस्कुट का संगत सबसे अधिक लोकप्रिय है।
जब हम बिस्कुट को चाय में डुबोकर पीते हैं तो तो सामान्य बिस्कुट का स्वाद भी दश गुना बढ़ जाता है। हम बिस्कुट की तारीफ करने लगते हैं और चाय के त्याग को भूल जाते हैं। चाय की तारीफ तो दूर उल्टे हम उसमे लगातार बिस्कुट गिरा गिरा कर उसे बर्बाद कर देते हैं। कुछ लोग तो चाय के इतने मुरीद हैं कि सर्दी, बुखार, सरदर्द यहां तक कि पेट दर्द में भी त्वरित चाय सेवन की सलाह दे डालते हैं। अगर आप एसिडिटी के कारण चाय सुख से वंचित हैं तो अदरख डालकर पी सकते हैं।स्वादलाभ के साथ स्वास्थ्यलाभ।जब गर्म चाय मेज पर रखी हो तो वह किसी व्यक्तित्व जैसा लगता है, जब हम उसे हाथ में लेकर बैठे होते हैं तो आभूषण जैसा लगता है और जब होटों से लगाते हैं तो प्यार। चाय को हम बड़ी नजाकत से पीते हैं। स्वाद भी लेना है और जी भी ना जले। जैसे एक शेरनी अपने बच्चों को दांतों से उठाती है। बच्चे को दांत भी ना चुभे और बच्चा नीचे भी ना गिरे।