बूढ़ी
बूढ़ी
एकबार रमा ने अपनी माँ से पूछा कि, "माँ, लोग कैसे मर जाते हैं।" माँ ने कहा, "बेटा, मूँद गईं आँखें और बीत गईं लाखें।" रमा ने सोचा कि वे भी मर के देखेंगे। गाँव के बाहर जाकर एक गड्ढा खोद कर उसी में आँखें बन्द करके लेट गये।" थोड़ी देर बाद जब रात हो गई, उस रास्ते से दो चोर बातें करते जा रहे थे कि अगर एक और साथी होता तो अच्छा रहता। एक घर के पीछे रहता, एक बाहर और तीसरा घर के अन्दर चोरी करने जाता। रमा ने कहा, "मैं तो मर गया हूँ, अगर ज़िंदा होता तो तुम्हारी मदद कर देता।" एक चोर ने कहा कि," तुम, बाहर निकल के हमारी मदद कर दो फिर आके मर जाना। ऐसी मरने की जल्दी क्या है।" रमा को ठंड लग रही थी और भूख भी। सोचा कि इसमें बुरा ही क्या तो वे निकल के चोरों की मदद करने आगये। यह तय हुआ कि रमा अन्दर चोरी करने जायेंगे। घर के अन्दर पहुँच कर
रमा कुछ खाने पीने की चीज़ ढ़ूँढ़ने लगे। रसोई में उन्हें दूध, चीनी और चावल मिल गये तो उन्होंने खीर बनाना शुरू किया। रसोई में एक बुढ़िया फर्श पर सोई हुई थी। जैसे जैसे उसे आँच लग रही थी, उसके हाथ फैल रहे थे। रमा ने सोचा कि बुढ़िया खीर माँग रही है। उन्होंने कहा, "बुढ़िया, इतनी सारी खीर बना रहा हूँ, मैं अकेले ही थोड़े ही खाऊँगा, तुझे भी दूँगा।" लेकिन बुढ़िया का हाथ फैलता ही रहा। रमा ने झुँझला के गरम गरम खीर उसके हाथ पर डाल दी। बुढ़िया चीखती, चिल्लाती हड़बड़ा के उठ के बैठ गई और रमा पकड़े गये। उनहोंने बताया कि मुझे पकड़ के क्या करोगे, असली चोर तो बाहर हैं। मैं तो केवल अपने खाने का इन्तज़ाम कर रहा था।
लोगों की भीड़ जमा हो गयी ।आसान से वो असली चोर पकड़ा गया।रमा को तो शाबाशी मिला और इनाम बूढ़ी के ओर से मिला।