भूली बिसरी साहित्य संध्या
भूली बिसरी साहित्य संध्या
कुछ पलों के अंतराल में कैफे में प्रविष्ट हुए : पहले – देर होने से डरते हुए वी. यू. दिमिखीन, - हॉल के बीच में खड़े होकर उसने ताड़ती हुई नज़रों से वहाँ उपस्थित थोड़े से लोगों को देखा , - और उसके पीछे-पीछे – दो नौजवान व्यक्ति: एक लड़का और लड़की।
“नमस्ते, वलेन्तीन यूरेविच।”
उम्र के आधार पर ( कैफ़े में अन्य कोई “बूढ़े” थे ही नहीं) पीछे से ही पहचान लिए जाने पर वह मुड़ा।
“मक्सिम. मैंने ही आपको फ़ोन किया था।”
पीठ पर ‘बैक पैक’। छोटी-सी, अल्पविराम जैसी दाढ़ी – पिछली से पिछली शताब्दी में उसे उपहासात्मक कह सकते थे।
“मरीना।”
माथे पर लाल लटे, लाल भौंहे।
“बहुत ख़ुशी हुई,” वलेन्तीन यूरेविच ने झूठ नहीं बोला।
उसे दो टिप-टॉप, काले सूटों में, तिरछी धारियों वाली नेकटाई पहने दो क्लर्कों को देखने की आशंका थी (‘बिज़नेस मीटिंग’जैसे आयोजनों की जानकारी वलेन्तीन यूरेविच को सिर्फ विदेशी फ़िल्मों से ही प्राप्त हुई थी, उसने ख़ुद,जो निश्चित रूप से रचनात्मक व्यक्ति था, बिना कुछ ज़्यादा सोचे-समझे अपना प्राचीन भूरा जैकेट पहनने का फ़ैसला किया, पतलून तो किसी अन्य सूट की ही थी, - स्वेटर पहनकर आया। नौजवानों ने जीन्स पहनी थी, ऊपर से लड़की ने – फटी हुई; वलेन्तीन यूरेविच को दिलासा देती हुई, हर चीज़ इस बात की ओर इशारा कर रही थी, कि बातचीत सुखद रहेगी। वार्ताकारों की विविधता से भी दिमीखिन ख़ुश हो गया – उसे दो पुरुष वार्ताकारों को देखने की उम्मीद थी। आख़िर कैफे – रेस्तराँ तो नहीं होता मामूली-सा, बिना बेयरों के। दिमीखिन को सादगी पसन्द थी। सादगी और सहजता।
ख़ै, उसे लगा, कि उसे ये पसन्द है।
नौजवानों से बातचीत करना भी उसे अच्छा लगता था।
ख़ैर,उसे ऐसा लगा।
“शायद, दीवार के पास?”
“बहुत अच्छे,” वलेन्तीन यूरेविच ने मक्सिम की पसन्द का समर्थन किया : दीवार के पास वाली मेज़ ही, उसकी राय में, व्यावसायिक बातचीत के लिए सबसे बढ़िया जगह होती है।
“कॉफ़?”मेज़ के पास पहुँच कर मक्सिम ने पूछा।
“पेस्ट्री के साथ,” मरीना ने कहा और दिमीखिन की ओर मुड़ी : “एकजुटता दिखाएँगे?”
“नहीं, नहीं,” वलेन्तीन यूरेविच ने मिठाई से इनकार कर दिया। “चाय स्ट्राँग नहीं, प्लीज़,अमेरिकानो।”
मक्सिम निमंत्रित करने वाले पक्ष की ओर से मेज़बान के अंदाज़ में तीन कप कॉफ़ी और एक पेस्ट्री खरीदने के लिए काउण्टर की तरफ़, और वलेन्तीन यूरेविच और मरीना मेज़ के पीछे बैठकर साधारण बातचीत करने लगे।
“ऐसा कैफ़े ढूँढना मुश्किल है जहाँ म्यूज़िक न हो,” वलेन्तीन यूरेविच ने कहा, “आप काम करना चाहते हो, और कानों में बूम्-बूम्, बूम्-बूम्... और हमारे यहाँ भी सब जगह ऐसा ही है...पता है, मरीना, जर्मनी में, मैं कॉफी पीते हुए, हमेशा सुन सकता हूँ, कि सामने वाला आदमी क्या कह रहा है।”
“मैं भी आपको सुन रही हूँ,” मरीना ने कहा। “यहाँ तो अभी कुछ नहीं है।”
“कुल मिलाकर, हाँ,” वलेन्तीन यूरेविच ने सहमत होकर कहा। “यहाँ काफ़ी आरामदेह है।”
उसे जर्मनी के बारे में सवाल पूछे जाने की उम्मीद थी, क्या वह अक्सर वहाँ जाता है, - तब वह कहता, कि हैम्बुर्ग में पोता रहता है। मगर मरीना ने कुछ और ही पूछा :
“तो, आप कैफ़े में लिखते हैं, मतलब, सीधे ऐसे, मेज़ पर ?”
“कभी प्रैक्टिस किया करता था,” वलेन्तीन यूरेविच ने उड़ते-उड़ते जवाब दिया। “मैं हर जगह लिखता हूँ। सर्वभूत-लेखक।”
मरीना स्पष्टतः मुस्कुराई, ये ज़ाहिर करते हुए कि जैसे उसने टिप्पणी को सुना ही नहीं है।
वलेन्तीन यूरेविच ने भी ऐसा ही किया।
मरीना ने अपना माथा पोंछा।
तब वलेन्तीन यूरेविच ने काम का सवाल पूछा:
“एन्थोलॉजी?”
“क्या?” मरीना ने पूछा।
“ये ही।”
“नहीं। बिल्कुल एन्थोलॉजी नहीं,” उसने आँखों से मक्सिम को ढूँढा।
मक्सिम नज़दीक आ रहा था। एक हाथ में वलेन्तीन यूरेविच की अमेरिकानो के कप वाली प्लेट थी,और दूसरे में – मरीना की एक्स्प्रेसो कॉफी का कप था। वलेन्तीन यूरेविच फ़ौरन उठा और काउण्टर की तरफ़ गया – मदद करने। मगर उसने पेस्ट्री लेने की ज़ोखिम नहीं उठाई,अपना ध्यान एक ही ओर केन्द्रित किया – मक्सिम की एक्स्प्रेसो कॉफ़ी के कप वाली प्लेट पर, - वह दोनों हाथों से उसे अपने सामने पकड़े हुए, ताकि छलक न जाए, धीरे-धीरे, सावधानी से चल रहा था। इस बीच मक्सिम काउण्टर पर पहुँच कर पेस्ट्री वाली प्लेट ला चुका था। जवानी फुर्तीली होती है। इस बारे में दो राय नहीं है।
अब तीनों बैठ गए।
“आपकी ‘अदृश्य किरण’ की तारीफ़ सुनी है,” मक्सिम ने शकर का पैकेट फ़ाड़ते हुए कहा, मैंने ख़ुद तो नहीं पढ़ी , मगर यदि मिल गई तो पढ़ूँगा। ये,शायद आपकी अंतिम रचना है?”
“डराइए नहीं, ‘अंतिम’’!” - वलेन्तीन यूरेविच दिमीखिन प्रभावशाली ढंग से मुस्कुराया। “मेरी चकमक डिबिया में अभी बारूद है!...मुझे दफ़नाने की ज़रूरत नहीं है।”
“मेरा मतलब था...” मक्सिम ने शुरुआत की , मगर वलेन्तीन यूरेविच ने उसे बोलने ही नहीं दिया :
“नहीं, नहीं, वो पुरानी किताब है, उसे तो दस साल हो गए।”
“अच्छा? मुझे ऐसा लगा कि आपने उसके बाद कुछ भी प्रकाशित नहीं किया...”
“क्यों नहीं...थोड़ा-बहुत तो निकला ही है। सात साल पहले, साठवीं सालगिरह पर...दोस्तों ने लघु-उपन्यासों का संग्रह निकाला था...ये सच है, कि काफ़ी छोटा संस्करण था...अपनों के लिए। बिक्री के लिए नहीं। कुछ हद तक आप सही हैं, प्रकाशन गृहों से काफ़ी समय से मेरा सम्पर्क नहीं है। कुछ ऐसा ही हुआ।”
वह ख़ामोश हो गया।
“बड़ा काम,” मक्सिम ने कुछ सवालिया अंदाज़ में कहा।
“उपन्यास?” मरीना ने नरम फ्रूट-पेस्ट्री – ‘ईवनिंग सीक्रेट’ - में चम्मच घुसाते हुए पूछ लिया।
वलेन्तीन यूरेविच ने गंभीरता से अपनी कॉफ़ी ख़त्म की और कप को प्लेट में रख दिया।
“शायद, बहुत बड़ा होगा,”मक्सिम ने कहा।
वलेन्तीन यूरेविच ने कनखियों से उसकी ओर देखा, कहीं ताना तो नहीं दे रहा है...
“दूसरे लब्ज़ों मे, बात कुछ ऐसी है,” मक्सिम काम की बात पर आया।
“आपकी एक पुरानी कहानी को प्रकाशित करने का विचार है। कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करने होंगे, यदि आपको कोई आपत्ति न हो तो।” मक्सिम ने बैकपैक से एक फ़ाईल निकाली,उसे खोला।
“दो प्रतियों में। यहाँ और यहाँ।”
“मेरी वाली कलम से कर सकते हैं,” मरीना ने पर्स से पेन निकाला।
वलेन्तीन यूरेविच ने ब्रीफ़केस से चष्मे का‘केस’ निकाला, और उसके बाद, थोड़ा रुककर – पेपरबैक में दो किताबें।
“ये मैं।।’अदृश्य किरण’ लाया हूँ...आपने इसके बारे में कहा था...मैं इस पर हस्ताक्षर कर देता हूँ...”
“वाह!” मरीना ने कहा। “ये अंतिम तो नहीं है?...माफ़ कीजिए! मैंने “अंतिम इस ख़याल से कह, कि अगर कुछ और भी हो...। अचानक पता चले कि कुछ और नहीं है?...”
“अंतिम से पूर्व,” दिमीखिन हस्ताक्षर करते हुए बुदबुदाया।
उसने इस बात के लिए माफ़ी मांगी कि मक्सिम की प्रति के कवर पर कोना मुड़ने का निशान है।
मक्सिम ने भी पूछा, कि कहीं अफ़सोस तो नहीं हो रहा है:
“अंतिम से पूर्व जो है?...”
“चलो, ठीक है! अपने पाठक से हर रोज़ तो मिलते नहीं हो,”वलेन्तीन यूरेविच आज की तारीख याद करते हुए बोला, “चाहे संभावित ही क्यों न हो...”
“कितने शानदार हस्ताक्षर हैं!” मरीना प्रसन्नता से बोली। “धन्यवाद,” उसने उपहार पर्स में रख दिया।
“और अब ये, यहाँ, वैसे ही,” कॉन्ट्रैक्ट को दिमीखिन के पास खिसकाते हुए मक्सिम ने कहा।
किताबों को उपहार स्वरूप देने काम वलेन्तीन यूरेविच को कुछ परेशान कर गया। वह खोई-खोई नज़रों से मसौदे को देखता रह, छपे हुए अक्षर उसे अजनबी प्रतीत हो रहे थे।
“सच कहूँ तो, मैं तब...टेलोफ़ोन पर...समझ नहीं पाया था...मेरे पास कई हैं...असल में किस कहानी के बारे में बात हो रही है? क्या शीर्षक है?”
“साहित्य-संध्या”, मक्सिम ने जवाब दिया।
वलेन्तीन यूरेविच ने याद करते हुए आँखें सिकोड़ लीं।
“किस बारे में ह?”
“जहाँ तक हम समझे हैं, ये साहित्य-संध्या के बारे में है, उग्लवोय गली में।”
“क्या मेरी ऐसी कोई कहानी है?”
“थी और है।” और वो। जिसे मक्सिम “साहित्य-संध्या” कह रहा था (या, सही कहें तो, वलेन्तीन यूरेविच ने कभी “साहित्य-संध्या” कहा था), उसके सामने मेज़ पर पड़ी थी।
“शानदार,” मरीना ने कहा। “वो भी टाइपराइटर पर। करीब-करीब “समिज़्दात” (समिज़्दात - स्वयँ प्रकाशन – अनु)।
“ये मेरी है?”
और
“माँ कसम!” वलेन्तीन यूरेविच ने अपनी रचना को पहचान लिया। “ अरे, इसका अस्तित्व तो होना ही नहीं चाहिए था!...आसमानी ताकत!...ये कहाँ मिली?...”
“पच्चीस साल पहले,” मक्सिम ने समझाया, “आपने ये कहानी “बेल्विदेर” में दी थी...”
“ ये ‘बेल्विदेर’ क्या है?”
“ऐसे एक संग्रह की कल्पना की गई थी।।”
“याद नहीं आता।”
“आपको याद नहीं है, मगर हम जानते हैं,” मरीना ने कहा।
“आपने उसे ‘बेल्विदेर’ में दिया था, मगर उस समय ‘बेल्विदेर’ निकला ही नहीं। मर्शीन कहता है, कि आश्चर्य है, कि कहानी खो नहीं गई। अगर मर्शीन न होता तो...”
“ये मर्शीन कौन है?”
“ओल्गा विताल्येव्ना का बेटा।”
“और ओल्गा विताल्येव्ना...वो कौन है?”
“हैलो - क्या बात है! आप कहानी में उसे ओल्गा विताल्येव्ना कहते हैं। बिल्कुल भूल गए।”
“मर्शीन उस शाम को वहाँ था,” मरीना ने कहा, “मतलब, जिसका आपने यहाँ आपने वर्णन किया है...आपने किसी ख़ास घटना का ही वर्णन किया ह, है ना?”
मक्सिम ने सूचित किया :
“वो कहानी में आधुनिक साहित्य पर व्याख्यान देता है।”
“और वह मैक्स का ‘रिसर्च-सुपरवाइज़र’भी है,” मरीना ने जोड़ा। “वैसे, बाइ द वे, हम ग्रेजुएट स्टूडेन्ट्स हैं।”
“संक्षेप में,” मक्सिम ने अपनी बात जारी रखी, “मर्शीन ने आपकी कहानी सँभाल कर रखी, और उस ‘बेल्विदेर’ की ये एक ही चीज़ बची है। मगर अब दूसरा बेल्विदेर’ निकल रहा है, पहले वाले का - सिर्फ नाम ही है। इसमें हर चीज़ अलग है – अवधारण, रचना...तीन अंक निकल चुके हैं। अफ़सोस,कि इस समय हमारे पास नहीं है, वर्ना हम आपको उपहार में देते, मगर हम किसी तरह, किसी के साथ आपको भेज देंगे...”
“नहीं, वाकई में,” मरीना ने कहा, “ ‘बेल्विदेर’ – वयस्कों का है। उच्च श्रेणी के लोगों के लिए।”
दोनों हाथ मेज़ पर रखकर दिमीखिन निश्चल बैठा रहा।
“कोई गड़बड़ है?” वलेन्तीन यूरेविच को ख़यालों में गहरे ख़यालों में डूबा देखकर मक्सिम ने पूछा। “कोई आपत्ति है? मेरे ख़याल से तो, बहुत बढ़िया कहानी है। छोटी ज़रूर है...मगर कथानक कितना कसा हुआ है! एक भी शब्द निकाल कर नहीं फेक सकते। और आरंभ? नहीं, तुम सुनो।” उसने कहानी हाथ में लेकर मरीना की ओर मुख़ातिब होते हुए पढ़ना शुरू कि, जैसे वह ‘साहित्यिक-संध्या’ की विषय वस्तु से अपरिचित हो:
“ ‘आदमी’ शब्द के लिए तुकबन्दी”...
वायुमण्डल का अवशेष...
सफ़ेद मक्खियाँ...
बिल्कुल बर्फ...
बिल्कुल, कहता हूँ, बर्फ...फ़ाहे...
पीछे दरवाज़े की धड़ाम...
सीढ़ियाँ चढ़ते,झटकता कॉलर और टोपी...
पैर पटकते –
जूतों से”।
“बढ़िया!” मरीना ने कहा। “ये गद्य नही, बल्कि कविता है।”
वलेन्तीन यूरेविच ने कहा:
“इस कहानी के साथ मेरी कुछ अप्रिय यादें जुड़ी हैं।”
“मैं समझता हू,” मक्सिम ने कहा।
“कुछ साल पहले, मैं फिर एक बार अपने संग्रह का और कुछ अन्य चीज़ों का पुनर्निरीक्षण कर रहा था, और हमेशा की तरह काफ़ी कुछ नष्ट भी कर दिया। ऐसा लगता है, कि इस कहानी को मैंने नष्ट करने के लिए भेज दिया, फिर से पढ़े बिना...बड़ी अजीब बात है कि ये आपके पास है। सिर्फ ये न कहिए, कि पांडुलिपियाँ जलती नहीं हैं...जलती हैं, जलती हैं। कुछेक को तो जलना ही चाहिए...”
मरीना ने पेस्ट्री वाली प्लेट दूर खिसका दी – अच्छी नहीं लगी।
“हम पर नज़र रखी जा रही ह,” मक्सिम से बोली।
“मैंने पहले ही देख लिया था,” मक्सिम ने बिना हिले-डुले जवाब दिया।
मगर वलेन्तीन यूरेविच, घबराहट से, अनायास मुड़ गया : एक दुबला-पतला नमूना बगल वाली मेज़ पर बैठा बेवकूफ़ी से मेन्यू देख रहा था – हो सकता है, उसने भाँप लिया था, कि उसे देख लिया गया है। वलेन्तीन यूरेविच ने भी, फ़ौरन, ऐसे दिखाया जैसे कुछ नहीं देखा है, और उसने घबराकर नमूने से नज़र हटा ली।
“रखने दो,” मक्सिम ने बेपरवाही से कहा।
दिमीखिन ने फिर से अपने ब्रीफ़केस की ओर हाथ बढ़ाया।
“मेरे पास बहुत सारी हैं। बेहतर , मैं आपको कोई और देता हूँ। पूरा संग्रह दे सकता हूँ। बड़ी, छोटी कहानियों का...”
“वो बाद में। आरंभ में तो हम इसी को प्रकाशित करना चाहते हैं।”
“अरे, मेरे पास हैं,” उसने ब्रीफ़केस से कुछ कहानियाँ निकालीं। – ये रहीं कुछ और। मैं लाया हूँ। देखिए...यहाँ अच्छी कहानियाँ हैं। सभी अप्रकाशित...”
मक्सिम ने देखे बिना ही अच्छी कहानियों को तह करके जल्दी से अपने बैकपैक में रख लिय, जिससे बहस न करना पड़े।
“देखिये, ये वाली पुरानी हो गई है!” वलेन्तीन यूरेविच चीख़ा। “मुझे याद भी नहीं है कि उसमें क्या था,मगर मुझे डर है, कि आज वो मासूम, भोला प्रतीत होगा... और मैं भी अब बिल्कुल बदल गया हूँ। और ये बेहद व्यक्तिगत किस्म की कहानी है।”
“अपने आप से शरमा रहे हैं,” मरीना ने उलाहना देते हुए पूछा।
“मैं शरमाता नहीं हूँ।”
“मासूमियत, बेशक है,” मक्सिम ने कहा। “मगर मासूमियत के अलावा, उसमें कठोरता भी है। और ये मासूमियत और कठोरता का संयोग आपकी कहानी को एक अद्भुत विरोधाभास प्रदान करता है।”
मरीना ने कहा:
“कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे हैं, कि ‘बेल्विदेर’ कोई भी चालू गद्य प्रकाशित करेगा? बस कीजिए! बहुत बढ़िया कहानी है!”
“अच्छ?” वलेन्तीन यूरेविच बौखला गया। “आपको पसन्द आई? मैंने सोचा भी नहीं था, कि नौजवानों को इस तरह की रचना पसन्द आएगी...”
“ अगर कलात्मक खूबियों को एक तरफ़ छोड़ देंं, तो भी एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ के रूप मेें यह कहानी दिलचस्प है,” मक्सिम ने कहा। “ एक असामान्य परिस्थिति पर प्रत्यक्ष, भावनात्मक प्रतिक्रिया के उदाहरण के रूप में...मुद्दा ये भी नहीं है, कि असल में हुआ क्या था, मुद्दा कथन की वास्तविक ईमानदारी में है, उसके अद्वितीय लहजे में है...ये मैं सिर्फ आपकी तारीफ़ करने के लिए नहीं कह रहा हूँ।”
“आजकल ऐसा नहीं लिखते,” मरीना ने बात पूरी की।
“हम क्यों बहस कर रहे हैं, वलेन्तीन यूरेविच! कुल मिलाकर सिर्फ तीन पृष्ठ! चलिए, औपचारिकताएँ पूरी कर लेते हैं। हस्ताक्षर घसीट दीजिए! और काम ख़तम।”
वलेन्तीन यूरेविच ने नाक पर चश्मा ठीक किया।
“आप ख़ासतौर से आए हैं...मेरे साथ अनुबंध करने?”
“क्या आपको आश्चर्य हो रहा है?”
“मानता हूँ, हाँ।”
“रात वाली ट्रेन से वापस चले जाएँगे। शहर में घूमने का मन है। आपसे बातें करना अच्छा लग रहा है, मगर...” उसने घड़ी पर नज़र डाली।
“अरे, मुझे क्या। बात पुरानी है। आपकी ज़िम्मेदारी है।”
दिमीखिन ने कॉन्ट्रेक्ट पर हस्ताक्षर कर दिए।
“मैंने देखा है,” मक्सिम ने अपनी कॉफ़ी ख़त्म करते हुए कहा, कि लेखक जितना वयोवृद्ध होता है, उसके पास जितना अधिक ज़िन्दगी का अनुभव होता है, उतनी जल्दी वह हस्ताक्षर कर देता है, बिना देखे। आपकी पीढ़ी बहुत भोली है।”
“मगर आप घबराइये नही, यहाँ कोई चाल नहीं है,” मरीना ने कहा। “मगर आप रॉयल्टी के बारे में क्यों नहीं पूछ रहे हैं?”
“रॉयल्टी!” वलेन्तीन यूरेविच को जैसे कोई भूला हुआ लब्ज़ याद आ गया।
“यहाँ,” मरीना के कृत्रिम बैंगनी नाखून ने आत्मविश्वास से अनुबन्ध में संबंधित पंक्ति की ओर इशारा किया।
“ओ!” वलेन्तीन यूरेविच को अच्छा लगा, कि उसका सम्मान किया जा रहा हैं।
“फ़िर भी,आप कहानी को फिर से पढ़े,” मरीना ने कहा। “आप तो ख़ुद की इज़्ज़त ही करना नहीं चाहते। पढ़िए – अचानक अच्छी लगने लगेगी।”
“आप पढ़िये, और हम चले। ये आपकी प्रति है।”
“आपसे मिलकर ख़ुशी हुई। 'अदृश्य किरण’ के लिए धन्यवाद। स्वास्थ्य और सफलता की कामनाएँ।”
उन्होंने बिदा ली। मरीना और मक्सिम ने, जाने से पहले, कुछ भी कहे बिना, बगल वाली मेज़ पर बैठे नमूने की ओर देखा, मगर वलेन्तीन यूरेविच इस बार नहीं मुड़ा।
थूको।
वे चले गये, और वह रूमाल से चश्मे की काँच पोंछकर अपने पुरानी रचना पढ़ने लगा।
साहित्य-संध्या
कहानी
‘आदमी’ शब्द के लिए तुकबन्दी”, वायुमण्डल का अवशेष, सफ़ेद मक्खियाँ। बिल्कुल बर्फ। बिल्कुल , कहता हूँ, बर्फ। फ़ाहे। पीछे दरवाज़ा धड़ाम् से बन्द हुआ। सीढ़ियाँ चढ़ते कॉलर और टोपी झटकता हूँ। पैर पटकते हुए – जूतों से।
“देर कर दी, प्यारे। बस, ख़तम ही होने वाला है,”मेज़बान महिला ने मुझे प्रवेश कक्ष में आने दिया। “चलो, चलो, जल्दी,” फ़र-कोटों और भेड़ की खाल के कोटों की तरफ़ इशारा करके वह फ़ौरन उस कमरे में गई।
उस कमरे का दरवाज़ा थोड़ा-सा खुला था। उस कमरे से अस्पष्ट आवाज़ सुनाई दे रही थी। मैंने जल्दी से गर्म कपड़े उतारे।
मगर मैं एक और मिनट हैंगर के पास पैर पटकता रहा, ये न समझ पाते हुए कि अपने भेड़ की खाल के ओवरकोट को कहाँ टाँगूं – पाँच बार उसे फर्श से उठाया।
आख़िरकार मैंने उसे फ्रिज के हत्थे में अटका दिया और कमरे में घुसा।
जिन्होंने मेरी ओर देखा, उनका मैंने चेहरे के भाव से स्वागत किया, जो ऐसी परिस्थितियों में अक्सर होता है। किसी ने भी जवाब नहीं दिया। वे सुन रहे थे।
मैंने ग़ौर किया : उनकी आँखों में विभिन्न प्रकार के भाव थे – परेशानी, वितृष्णा, भय। हो सकता है, किसी की आँखों में अति उत्साह का भी भाव हो, मुझे मालूम नहीं। मैंने किसी को भी ग़ौर से नहीं देखा, मगर सरसरी तौर पर देखा : कोई दीवार की तरफ़ मुड़ गया, किसी ने हथेली से अपना मुँह बन्द कर लिया, खिड़की के पास बैठी हुई महिला उँगलियों से मोती खींच रही थी।
मैंने फ़ौरन उधर देखा, - मेज़ के पीछे दो लोग बैठे हैं, - एक, फ्लैट का मालिक, ठण्ड़ी हल्की-सी मुस्कान से छत की ओर देख रहा हैै, और दूसरा – बीमार आदमी है।
मुझे मानसिक रोगों के क्षेत्र के बारे में जानकारी नहीं है। मुझे इन सब नामों का पता नहीं है, मैं मेडिकल बारीकियों को नहीं समझता। मुझे सिर्फ इतना मालूम है, कि आदमी बीमार है।
उसे पढ़ना आता था,और, सारी बातों को देखते हुए, वह लिख भी सकता था, क्योंकि, वो, जो अभी उसने पढ़ा था हिज्जे करके और व्यंजनों को निगलते हुए, उस की अपनी ही कल्पना थी, अगर ये वाकई में कल्पना थी तो। उसने जो पढ़ा था, वह घिनौना था। गन्दगी का सैलाब, और हम सुन रहे थे। और यह केवल अश्लीलता का प्रवाह नहीं था, न सिर्फ गाली-गलौज, जो सबको सुनाई देती है - हो सकता है कुछ बौद्धिक चमक-दमक के साथ – रोज़मर्रा की बदतमीज़ी नहीं , बल्कि और भी घिनौना – जाने पहचाने शब्दों को वास्तविकता तक, भौंडेपन के, दबाव के, चिपचिपाहट के एहसास तक उनका मूल, शाब्दिक अर्थ वापस लौटाया जा रहा था।
रेल्वे स्टेशन पर खड़ी ट्रेन का लेडीज़ टॉयलेट। वह नाबदान में घुस गया। वह झाँक रहा है।
जब उसने पढ़ना ख़त्म कि, तो कोई भी नहीं हिला। शॉक! वास्तविक, सच्चा शॉक। किसी के मुँह से एक लब्ज़ भी नहीं फूटा। और तब...और तब उसने लार टपकाई।
“मेरे दोस्तो,” फ्लैट का मालिक उठा, “मैं आप सब की उत्तेजना को समझ सकता हूँ। मेरा ख़याल है,कि हम पॉल को इतनी आश्चर्यजनक शाम के लिए, मैं तो कहूँगा, सबक के लिए धन्यवाद देते हैं और और कामना करते हैं...उसकी सफ़लता की कामना करते हैं। तो। ठीक है। मैं उन सबसे, जो चाहें, चर्चा के लिए रुकने को कहूँगा। चर्चा होगी करीब दस-पन्द्रह मिनट बाद, तब तक चाय आ जाएगी। दोस्तों, सिर्फ आपको याद दिलाना चाहूँगा, कि मैंने ओल्गा विक्तरोव्ना से वादा किया है कि अपने दोस्त को ठीक दस बजे लौटा दूँगा, इसलिए समय का ध्यान रखेंगे।
हम कमरे से बाहर आए। कुछ लोग गरम कपड़े पहनने लगे। वे चुपचाप कपड़े पहन रहे थे, मेज़बानों ने उन्हें नहीं रोका। एक मेहमान से रहा नहीं गया। कपड़े पहन चुकने के बाद, वह वापस लौटा। वह मेज़बान की जैकेट का कॉलर पकड़ कर उसे झकझोरने लगा।
“तूने उसे सिखाया, तू कमीने!...”
“मैंने किसी को नहीं सिखाया,” मेज़बान लड़खड़ा गया, "उसीने ख़ुद!”
“तून, घिनौने, तूने कमीने!...”
“शांत रहिए, शांत रहिए, अपमान न कीजिए!”
“तूने, कमीने, तूने!”
उसे खींच कर ले गए।
“वह नशे में धुत् है,” किसी ने कहा।
“शराबी बेवकूफ, आया क्यों है?”
“मगर, भयानक...”
“पॉल ने कितना डरा दिया...”
“कमरे में कोई, पॉल से बात कीजिए। वो वहाँ कर क्या रहा है?”
“वह उबला हुआ पानी पी रहा है।”
“बकवास, बकवास, बकवास,” अब आँगन से सुनाई दे रहा था।
“और, आपको कैसा लगा?” मेज़बान मेरी तरफ़ मुड़ा।
“घृणित।”
शायद, वह ख़ुश हो गया।
“अभी तक तो ऐसा नहीं होता है,” मेज़बान भलमनसाहत से मुस्कुराया। “ आज हमारा मित्र फॉर्म’ में नहीं है।”
मालकिन टॉयलेट से बाहर निकली। उसके हाथ में एक मैला चीथड़ा था।
“किसी ने उल्टी कर दी।”
“बकवा, बकवास, बकवास।” सड़क से आवाज़ें आ रही थीं।
“बढ़िया।” मेज़बान जोश में आ गया, “इसे कहते हैं भाव-विरेचन।”
मालकिन ने हाथ धोए और चाँदी की घण्टी बजाने लगी।
“तो, मित्रों,” जब कमरे में सब लोग अपनी-अपनी जगह पर बैठ गए, तो मेज़बान ने कहा। “चलिए,भावनाओं में न बहें। क्या होना चाहिए, और क्या नहीं होना चाहिए, इस विषय पर चर्चा को एक ओर रख दें। ज़रूरत नहीं है...उसी तरह भाषा के बारे मे, शब्दों के प्रयोग के तरीकों और उनकी सीमाओं के बारे में भी...बहुत हो गया। काफ़ी कह चुके। उकता गए हैं। सब संभव है। किसने कहा कि,नहीं होना चाहिए? नैतिक है या अनैतिक, सिर्फ एक रचनाकार ही जानता है। हाँ, और वह भी कुछ नहीं जानता। सब कुछ संभव है। सिर्फ संभावनाओं के बारे में सोचकर अपने आप को धोखा नहीं देंगे। मेरा मतलब है : हम दृढ़ रहेंगे। हममें से वे भी, जो कलाकार के मिशन को प्रोक्टॉलोजिस्ट के जुनून से जोड़ते हैं, वे भी इस विषय की विशिष्ठता के बारे में कोई विशेष भ्रम न रखें और अपनी अपनी, तथाकथित, कट्टरपंथी, “प्रभावशाली तरीकों” आदि की डींग न मारें!... क्योंकि, मैं कहता हूँ, उनके सभी नारे, सभी परिकल्पनाएँ, घिसी-पिटी लकीर से संघर्ष के प्रति उनकी भूमिका इत्यादि – ये सब एक शिक्षित दिमाग की चालें हैं और कुछ नहीं। मैं कलात्मक सोच के क्षेत्र में स्वाभाविकता का पक्षधर हूँ। मैं मानता हूँ, कि ऐसी रचनाओं के सृजन के उद्देश्य का, जो अभी हमने सुनी, कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जा सकता। क्या रचना करते समय वह सोच रहा था या नहीं, मैं नहीं जानता। मगर मैं ये जानता हूँ, मुझे गहरा विश्वास है, कि प्राकृतिक, चाहे दर्दनाक मुक्ति और सम्पूर्ण मासूमियत, पवित्रता, स्वच्छता को देखते हुए, “वैज्ञानिक कलात्मकता” की मान्यताओं से असीमित मुक्ति को देखते हुए और, यदि आप चाहें, तो मासूमियत, पाकीज़गी ख़ासकर पाकीज़गी को देखते हुए, जो तथाकथित साहित्य के लिए अपरिचित है, जो पाठकों की पसन्द को ध्यान में रखकर रचा जाता है, और इसलिए परिभाषानुसार भ्रष्ट है – इस सबको देखते हुए वो, जो हमने अभी सुना है, ऊँची किस्म का साहित्य है, और मैं दावा करता हूँ, कि अन्य सब साहित्य झूठ है!”
“पापा, पापा,” पीठ के पीछे से सुनाई दिए। “अंकल गॉड की प्रेयर कर रहे हैं!”
मैं घुटनों के बल खड़ा था और बर्फ खा रहा था। मैंने बर्फ को चेहरे पर, आँखों पर, होठों पर मला।
“क्या आपकी तबियत ख़राब है?आपको मदद चाहिए?”
“मैं ठीक हूँ, मैं ठीक हूँ, मुझमें अभी भी ताकत है।”
वलेन्तीन यूरेविच एक मिनट निश्चल बैठा रहा। धुँधली यादें उसे परेशान कर रही थीं। आख़िरकार उसने मोबाइल निकाला और मक्सिम को फ़ोन किया।
“अजीब चुनाव , मक्सिम। इस समय मुश्किल से ही किसी को इसमें दिलचस्पी हो सकती है। मैं सोचता हूँ, कि “बेल्विदेर” में मेरा परिचय किसी और कहानी से होना चाहिए। इससे नहीं।”
“फिर वही राग! सुनिए, इस तरह से काम नहीं होता, आपने तो कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तख़त किए हैं!”
शोर की आवाज़ से पता चल रहा था कि मक्सिम और मरीना रास्ते पर चल रहे थे।
वलेन्तीन यूरेविच निराश हो गया।
“समझ में नहीं आता, कि आप इसी कहानी के पीछे क्यों पड़े हैं! अगर आपको ऐतिहासिक कहानी की इतनी ही ज़रूरत , तो मैंने, मिसाल के तौर पर सोल्झेनीत्सिन को देखा है, आप सिर्फ कल्पना कीजिए!...प्रत्यक्ष...और मेरे पास इस विषय पर एक निबंध भी है!...”
“भाड़ में जाए सोल्झेनीत्सिन,आप, क्या मज़ाक कर रहे है? हम एक विशिष्ठ घटना के बारे में सामग्री संकलित कर रहे हैं – विशिष्ठ साहित्य-संध्या के बारे में, उग्लोवाया गली के एक फ्लैट में आयोजित कार्यक्रम के बारे में...और आप मुझे सोल्झेनीत्सिन के बारे में बता रहे हैं!... तीन प्रतिभागी हमें अपने संस्मरण दे चुके हैं और उनमें प्रोफेसर मर्शीन भी हैं!...हमें आपकी रचना चाहिए! वह सबसे ज़्यादा मूल्यवान है...ताज़ा घटनाओं पर त्वरित प्रतिक्रिया...”
“मुझे समझाइए कि ये आयोजन क्या था?” दिमीखिन चीखा। “किस बात के बारे में था, समझ में नहीं आ रहा है?!”
“वलेन्तीन यूरेविच, क्या अब मैं आपको साहित्य के इतिहास के बारे में बताऊँगा?”
“इतिहास किसका?...सा-हि-त्य का?...तो फिर आप उस पॉल् की रचना क्यों नहीं ढूँढ़ते?!।।ढूँढ़िए और तस्वीर पूरी करने के लिए उसे प्रकाशित कीजिए!”
“रचन, जैसा कि आपने फ़रमाया, उस पॉल की, काफ़ी पहले मिल गई है और अनेक बार प्रकाशित हो चुकी है। और विदेशी भाषाओं में अनुवादित हो चुकी है। वैसे,आपको शायद, उसकी याद नहीं है, उसका असली उपनाम पॉल नहीं, बल्कि झ्यूल है, ये उसे आप अपनी कहानी में पॉल कहते हैं, मगर पूरी दुनिया में वह झ्यूल के नाम से मशहूर है। झ्यूल झ्यूलेयेव।”
“पूरी दुनिया से क्या मतलब है?” वलेन्तीन यूरेविच ने फ़ौरन पूछा।
“यही मतलब है। और ये अंक पूरी तरह उसको समर्पित है – झ्यूल झ्यूलेयेव को। ये बात है! “बेल्विदेर” के चौथे अंक मे पहली बार झ्यूल झ्यूलेयेव की उन सभी रचनाओं का, जो अभी तक अस्तित्व में हैं, पूरा संकलन प्रकाशित किया जाएगा, टिप्पणियों, परिशिष्टों और झ्यूल झ्यूलेयेव नामक अद्भुत घटना के शोधकर्ताओं के निबंधों सहित। मुझे आपके लिए बड़ा अजीब लगता है, आप तो जैसे चाँद पे रहते हैं। ठीक है। इससे आपकी रचना का महत्व कम नहीं हो जाता। और ये बात, कि आपका दृष्टिकोण नकारात्मक है, ये ख़ास तौर से मूल्यवान है। सिर्फ सफ़ाई देने की ज़रूरत नहीं है!...तो अब नख़रे करना बंद करें। अच्छा नहीं लगता।”
“क्या झ्यूल झ्यूलेयेव,” कँपकँपाती आवाज़ में वलेन्तीन यूरेविच ने पूछा, "ज़िंदा है?"
“मर गया सन् ’92 में, कुछ अन्य सूचनाओं के अनुसार – सन् ’93 में, जब मानसिक रुग्णालयों और विशेष आवास-सुविधाओं का एक हिस्सा बंद कर दिया गया था... आपको तो याद होगा?... आर्थिक सहायता बंद होने के कारण...उसका जीवन भयानक था, वलेन्तीन यूरेविच...ख़ुशकिस्मती से बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़ ने “बेल्विदेर” को कॉपीराइट दे दिया।”
“क्या मैं, वलेन्तीन यूरेविच ने पूछा, “परिशिष्ट में रहूँगा?”
“आप? हाँ हाँ। कॉन्ट्रैकट देखिए, वहाँ सब कुछ है। और आपको कौन सी चीज़ परेशान कर रही है, वलेन्तीन यूरेविच? संकलन का पाँच भाषाओं में अनुवाद हो रहा है, ये अन्तर्राष्ट्रीय प्रोजेक्ट है। आपको तो जर्मनी में कभी प्रकाशित नहीं ना किया गया?...माफ़ कीजिये, बैटरी डाऊन हो रही है...”
फोन हटाकर वलेन्तीन यूरेविच ने कप को उलट दिया। मगर कॉफी के गाढ़े घोल से उसने कुछ नहीं बूझा, वह बाहरी दरवाज़े की ओर चल पड़ा। उसने दस्ताना गिरा दिया, और जब उसे उठाने के लिए झुका, तो देखा, कि दुबला-पतला नमूना अपनी जगह से उठ रहा है।
दुबला-पतला नमूना सीधे उस मेज़ की तरफ़ बढ़जिसे अभी-अभी वलेन्तीन यूरेविच ने ख़ाली किया था,प्लेट से पेस्ट्री उठाई (मरीना ने एक चौथाई पेस्ट्री भी नहीं खाई थी) और जितना संभव था, “ईवनिंग सीक्रेट” को पूरा का पूरा मुँह में ठूँस लिया। इसके बाद वह तेज़ चाल से दरवाज़े की ओर लपका।
दरवाज़े पर वलेन्तीन यूरेविच ने उसके लिए रास्ता छोड़ा।
जेब में आवाज़ आई।
मरीना फोन कर रही थी।
“हम एक बात पूछना भ, वलेन्तीन यूरेविच। क्या ये सच है कि आप उस समय बर्फ खा रहे थे और घुटनों के बल प्रार्थना कर रहे थे?”
वह ख़ामोश रहा।
“बात ये है, कि वह कार्यक्रम हुआ था मार्च के अंत में। मैक्स कहता है, कि बर्फ उस समय करीब-करीब थी ही नहीं और इसलिए आप घुटनों के बल बर्फ पर खड़े नहीं हो सकते थे। अगर बर्फ होती भी, तो बेहद गंदी होगी। आपने गन्दी बर्फ तो नहीं खाई होगी, है ना? ये ‘अतिशयोक्ति’ है, हाँ? साहित्यिक तकनीक?”
“तकनीक”, दिमीखिन भर्राया और उसने फोन बन्द कर दिया।