भारत में रुपए की कहानी
भारत में रुपए की कहानी
मेरा नाम रुपया है। पहले मैं धरती के भीतर रहा करता था। कब से रहता था, मुझे इसका कुछ पता नहीं। किंतु वहाँ मैं बड़े अँधेरे में था। मुझे दुनिया की कुछ खबर न थी। मैं बहुत चाहता था कि बाहर निकलकर देखेँ कि संसार में क्या हो रहा है। पर मैं वहाँ से बाहर निकलने में असमर्थ था। जिस समय की बात मैं कर रहा हूँ, उस समय मेरा रंग-रूप ऐसा न था जैसा अब है। मैं मिट्टी में लोहे के रूप में छिपा पड़ा था । एक दिन एक मज़दूर ने मेरे उस अँधेरे घर में घुसकर मुझे वहाँ से खोद निकाला। मुझे गाड़ियों में लादकर किसी कारखाने में पहुँचाया गया। वहाँ के कारीगरों ने मुझे आग की भट्टी में गरम करके मिट्टी से अलग किया, फिर साँचे में डालकर गोल बनाया। इसके बाद मेरी पीठ पर मेरा नाम और मेरे इस रूप में जन्म का साल छाप दिया गया। इतना हो चुकने पर मेरे आगे की ओर छाती पर, महात्मा गाँधी के चित्र की मोहर लगी।
इसके बाद मुझे उस कारखाने से बाहर आने की आज्ञा मिली। बाहर आकर पता चला कि मैं अकेला नहीं हूँ। मेरे बहुत से भाई हैं। मुझसे बड़े भाइयों का नाम दो रुपया, पाँच रुपया और दस रुपया है। बाहर आकर मुझे यह भी पता चला कि हमारे बिना किसी का काम नहीं चल सकता। मैं लोगों को बड़ा प्यारा हूँ। मुझे लोग बड़ी सावधानी से रखते हैं। कोई मुझे थैली में रखता है, कोई जेब में, कोई संदूक में। कोई-कोई तो मुझे इतना चाहता है कि दिन-रात छाती से लगाए रहता है। लोगों का यह कहना है - जिसके पास नहीं है पैसा, उसका जग में जीवन कैसा! अच्छा, अब आगे का हाल सुनिए। एक दिन एक व्यापारी हम सबको थैली में भरकर अपने घर ले गया। तब से
मैं लगातार हाथों-हाथ घूम रहा हूँ। हज़ारों आदमियों के हाथों में घूम आया, बड़े-बड़े मकानों में बेखटके चला गया, मुझे किसी ने नहीं रोका। मैं इसी तरह घूमता-घूमता एक बार एक बच्चे के हाथ में पहुँच गया। मुझे पाकर वह बहुत खुश हुआ। वैसे तो मैं जिसके भी पास जाता हूँ, वह खुश हो जाता है लेकिन वह बच्चा कुछ ज्यादा ही खुश हुआ। उसने मुझे ले जाकर एक हलवाई को दे दिया। हलवाई ने मेरे बदले में उसे एक मिठाई दे दी। मिठाई खाकर लड़का बड़ा खुश हुआ।
मैं इसी तरह न जाने कितनी ही दुकानों, झोंपड़ियों, महलों में घूमता रहा हूँ । मैं अपने घूमने की सारी कहानियाँ सुनाने लगूं तो महाभारत से भी बड़ा ग्रंथ तैयार हो जाए। अब तो घूमते-घूमते मेरा सारा शरीर घिस गया है। अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ। अब जो भी मुझे पता है, वही लौटा देता है। मेरा सब जगह अपमान होता है। लोग मुझे खोटा रुपया कहने लगे हैं। अब मैं एक बार फिर उसी कारखाने में आ गया हूँ, जहाँ मुझे यह रूप मिला था। अब मैं यहाँ से कहीं बाहर नहीं जा सकता। शायद यहाँ मुझे फिर से पिघलाकर पहले जैसा रूप दिया जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो शायद में फिर से संसार का भ्रमण करने लगूँगा।