Krishna Kumar Patel

Children Stories Action Inspirational

4.5  

Krishna Kumar Patel

Children Stories Action Inspirational

भारत माता की जय

भारत माता की जय

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बात सन 1970 के दौर की है। उस समय फौज की नौकरी नौजवानों को बहुत लुभाती थी। शिवकुमार भी उनमें से एक था। वह भी बहुत खुश था,उसे भी देश की सेवा करने का मौका जो मिला था। बचपन मे ही उसके पिता जी एक बार उसे नेता जी सुभाष चंद्र बोस की वर्दी और टोपी खरीद कर दिया,जिसे पहनकर वह अपने सभी दोस्तों के घर दौड़ा-दौड़ा गया था ताकि सभी उसकी इस नई पोशाक को देख सकें। उस ड्रेस के रंग ने उसे इतना प्रभावित किया कि 15 वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उसने आपने आपको सेना में भर्ती होने के लिए पूरी तरह से तैयार कर लिया और पहले प्रयास में ही उसका चयन हो गया।

आज लगभग डेढ़ वर्ष की कठिन ट्रेनिंग पूरी करने के बाद वह अपने घर लौटा था। पिता बच्छराज और माँ सावित्री बहुत खुश थे। बेटे के लिए माँ ने शाम को ही स्वादिष्ट पकवान और खीर बनाकर अपने हांथों से खिलाया।

उधर शिवकुमार के आने की खबर जंगल की आग की तरह पास के गांव में फैल गई और वहां के लोग अपनी बेटियों की शिवकुमार से शादी की जुगत भी लगाने लगे। वहीं पास के ही गांव मंगलपुर के सरपंच शंकर सहाय खानदानी रईस थे उनकी बेटी सुशीला अपने नाम की ही तरह स्वभाव से भी बहुत ही सुशील एवं गुणवान थी। सरपंच जी भी अपनी बिटिया के लिए योग्य वर की तलाश कर रहे थे। शिवकुमार के आने की खबर उनके कानों में भी पडी और और वो बिना समय गवांए अपनी बेटी का रिश्ता लेकर बच्छराज के घर जा पहुंचे। आव भगत और कुशलक्षेम पूंछने के बाद बच्छराज जी ने सरपंच जी से आने का प्रयोजन पूंछा तो सरपंच जी ने अपने दिल की बात सीधे शब्दों में कह दी।

बच्छराज जी बहुत ही प्रसन्न हुए और रिश्ते के लिए हामी भर दी और पंडित को बुलवा कर 15 दिन बाद का ही महूर्त निकलवा कर दोनों पक्षों ने शादी की तैयारियां शुरू कर दी।

 शिवकुमार भी मन ही मन बहुत प्रसन्न था। अपने नए जीवन साथी के साथ नए जीवन की शुरुआत के लिये उसने भी कई सपने देख रखे थे। धीरे-धीरे वह दिन भी आ गया जिसका दोनों पक्षों को बेसब्री से इंतजार था। दोपहर बाद गाजे बाजे के साथ बारात मंगलपुर की ओर रवाना हुई।

बारात में उसके कई दोस्त भी शामिल हुए। रात का वक्त था,शादी की भागदौड़ में सभी लोग व्यस्त थे,हंसी खुशी का माहौल था कि तभी एक कमांडर जीप आकर रुकी और उससे चार फौजी उतरे। बच्छराज ने उनका स्वागत किया पर उन्होंने शिवकुमार से तुरन्त मिलने बात कही इस पर बच्छराज उन्हें शिवकुमार के पास ले गया। शिवकुमार ने उन्हें 'जय हिन्द' बोला और आपस मे बात करते हुए उन्होंने सरहद के हालात और छुट्टियों के रद्द होने की जानकारी दी और अधिकारी के आदेश वाला लिफाफा उसकी ओर बढ़ा दिया और साथ चलने को कहा तो शिवकुमार ने उनके सामने ही अधिकारी से सुबह तक कि मोहलत मांगी वह शादी को बीच में न छोड़ कर सरपंच जी को बेइज्जती से बचाना चाहता था। अधिकारी ने उसे कल रिपोर्ट करने का आदेश दिया और बाकी सभी को तुरन्त ही वापस आने को कहा। रात में भारी मन से सभी वैवाहिक कार्यक्रम सम्पन्न हुए और सुबह जल्दी दुल्हन को विदा करवाकर वापस गांव आ गए।

  गांव आकर वह सीधे अपने कमरे में गया और अपनी वर्दी पहनकर और अपना सामान लेकर निकल पड़ा,सभी उसे जाने से रोकने लगे। कई लोगों ने तो उसे नौकरी छोड़ने तक की सलाह दे डाली। माँ और पिता जी सभी को बड़े प्यार से समझाकर वह आगे बढा तो सामने उसकी नई नवेली दुल्हन खड़ी थी जिसे कि घर मे आये अभी एक घण्टा भी नहीं हुआ था। दुल्हन को देख सभी भीगी आंखों से वहाँ से हट गए और दोनों को मिलने का मौका दिया।

शिवकुमार और सुशीला दोनों एक दुकाने के गले लग गए,सुशीला रो रही थी तो शिवकुमार ने उसे बड़े प्यार से समझाया कि बड़ी नसीब से ये दिन मिलता है फौजी को कि वह अपनी मातृभूमि की सेवा कर सके,ये तुम्हारे लिए गर्व की बात है। माँ और पिता जी का हमेशा ख्याल रहने की बात बोल वो सुशीला से अलग होने लगा तो उसने शिवकुमार का हाथ पकड़ा पर वह धीरे-धीरे उसके हाथ से फिसल गया और उसके गांव के ही दोस्त साइकिल में उसे पास के बस स्टैंड तक छोड़ने गए,वहां से रेलगाड़ी में बैठ वह अपने पोस्टिंग क्षेत्र में पहुँचा। वहां से 5 दिसम्बर को सुबह बेस कैम्प पहुँचकर कमांडेंट को रिपोर्ट किया।

उसकी डयूटी पूर्वी फ्रंट पर लगाई गई उसके साथ उसकी पूरी बटालियन ने भी मोर्चा संभाल लिया। लगभग दो घन्टे बाद पाकिस्तानी सेना के जवानों ने उन पर गोली बारी शुरू कर दी गई। कैप्टेन संकेत मिलते ही हमारे जवानो ने भी जवाबी कार्यवाही की। अपने आपको बचाते हुए शिवकुमार ने बंकर के एक तरफ से झांककर देखा तो लगभग 20 पाकिस्तानी फौजी उनकी ओर बढ़े चले आ रहे थे,मौका देखकर उसने तीन फायर झोंक दिए जिससे चींखकर तीन दुश्मन वहीं ढेर हो गए। जब तक कि वो गोली चलाते शिवकुमार बंकर के पीछे आ गया।

दो मिनट बाद वह पुनः खड़ा हुआ और उसकी बंदूक ने आग उगल कर दो और लोगो को धराशायी कर दिया परन्तु तभी एक गोली उसके बांए कंधे में एक इंच गहरा घाव देते हुए निकल गयी। शिवकुमार वही बैठ गया। तब तक उसके साथियों ने तीन और दुश्मनों को खत्म कर दिया। उनका भी एक साथी सीने में गोली लगने से वहीं शहीद हो गया। शिवकुमार साथी को मरते देख बहुत दुखी और क्रोधित हुआ और उसने लगातार तीन हैंड ग्रेनेड उनकी तरफ पूरी ताकत से फेंका उनके फटते ही तीन-चार और साथी तड़पते नजर आए फिर शांत हो गए,शायद वो भी दम तोड़ चुके थे।

अभी भी आठ-नौ दुश्मन उनसे कुछ ही दूरी पर हमारी भूमि पर छिपे थे और वहाँ की भौगोलिक स्थित का लाभ उठा कर अभी तक अपने आपको बचाये हुए थे। वो अब शान्त थे परंतु शिवकुमार का खून खौल रहा था। वह किसी भी हालत में उन्हें बचकर नहीं जाने देना चाहता था। उसने अपने एक साथी मनजीत को कवर फायर देने को कहा और बचते-बचते उनके पास ही एक पत्थर की ओट में उनकी हरकत का इंतजार करने लगा ताकि उनकी सही स्थिति का अंदाजा लगाया जा सके। उसकी उम्मीद के मताबिक एक साथ तीन दुश्मनों ने अपना सिर उठाया ही था कि शिवकुमार ने तीनो का भेजा उड़ा दिया। फिर काफी देर बाद तक जब कोई हरकत न दिखी तो उसने अपनी टीम को आगे बढ़ने का संकेत दिया परन्तु जब तक वह वापस घूमा दुश्मन की एक गोली उसके सीने में दांई ओर आ धंसी। उसके गोली लगते ही सभी साथी एक साथ चींख पड़े परन्तु तब तक एक और गोली उसके पेट आ लगी। इसप्रकार वह काफी घायल हो चुका था और तब तक लगभग सत्रह-अट्ठारह दुश्मन भी खत्म हो चुके थे,एक-दो दुश्मन ही बच सके थे अभी तक।

उनमें से कुछ शिवकुमार को सुरक्षित स्थान की ओर ले जाने लगे और कुछ लोग उन्हें कवर फायर देने लगे तभी दुश्मनों ने एक हैंड ग्रेनेड उनकी ओर फेंका जो कि उनके बीच में आ गिरा जिसे शिवकुमार ने अपनी बन्द होती आंखों से देखा तो उसने बिना एक भी पल गवांए एक खतरनाक निर्णय लिया जिसके बारे में उसके किसी साथी ने सोचा भी नहीं था। शिवकुमार भारत माता की जय बोलते हुए उस ओर तेजी से दौड़ पड़ा जब तक कि वे कुछ समझ पाते वह उस ग्रेनेड के ऊपर लेट गया,और एक तेज धमाके के साथ उसके शरीर के चिथड़े उड़ गए।

उसके साथी चीख पड़े। परन्तु उनके एक साथी ने पलट कर उन दोनों दुश्मनों को धराशायी कर दिया। चौकी पर तिरंगा फहराने के बाद रेडियो ट्रांसमीटर पर उच्चाधिकारियों को चौकी के आज़ाद होने की सूचना दे दी और साथ मे पूरा वाकिया भी दुःखी मन से कह सुनाया। सेना के वाहन द्वारा उसके मृत शरीर को फूल मालाओं से सजा कर जय हिंद के उद्घोष के साथ उसके गाँव लाया गया। उसकी माँ सावित्री और पिता बच्छराज बहुत ही दुखी थे उनकी आंखों से आंसु रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। सबसे बुरा हाल पत्नी सुशीला का था जिसके हाथों की मेहंदी तक अभी नहीं छूटी थी। अधिकारियों और रिश्तेदारों ने समझा बुझाकर 'गार्ड ऑफ ऑनर'देते हुए पूरे सम्मान के साथ उसका अंतिम संस्कार करवाया गया। उसकी वीरता को सम्मान देते हुए 26 जनवरी को शिवकुमार को वीरता चक्र से सम्मानित किया गया। इस प्रकार शिवकुमार ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा की और अपना नाम अमर कर गया।


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