इंसानियत का बदला
इंसानियत का बदला


एक बार जंगल के पास के गाँव में मनमदन नामका एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह जंगल से सूखी लकड़ियों का गठ्ठर बना कर लाता एवं उन्हें गाँव में बेचता और उससे जो पैसा मिलता उसी से अपने परिवार का पालन-पोषण करता था।
एक दिन वह जंगल मे रोज की ही भाँति सूखी लकड़ियाँ इकठ्ठी कर रहा था कि उसे किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी। ध्यान से सुनने पर उसे वह आवाज पास से ही आती समझ में आई। उससे रहा नहीं गया और वह आवाज की दिशा में आगे बढ़ने लगा। कुछ ही दूर जाने पर उसकी नजर हिलती हुई झाड़ियों पर पड़ी कि तभी उसे एक बार फिर से आवाज सुनाई दी।
यह आवाज झाड़ियों कर पीछे से आ रही थी। अब वह झाड़ियों की तरफ सावधानी के साथ धीरे-धीरे बढ़ने लगा। झाड़ियों के पास पहुँचकर उसने देखा तो वहाँ पर एक भालू का बच्चा पैर में आर-पार कांटा लगा होने से उसके पैर से खून भी निकल रहा था, इस कारण से वह ऐसे कराह रहा था, जैसे कोई आदमी हो। उसकी यह हालत देख उसे उस भालू के बच्चे पर दया आ गई। उसने आसपास भली-भांति देखकर कि वहाँ पर कोई बड़ा भालू तो मौजूद नहीं है, उस बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया और उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने लगा। उसके सिर पर हाथ फेरते हुए मनमदन ने बहुत ही आराम से उसके पैर में लगे हुए कांटे को निकाल लिया।पैर से कांटा निकल जाने से उसे बहुत ही आराम मिला और वह मनमदन की ओर कृतज्ञता से देखने लगा। मनमदन उसे इस हालत में जंगल में नहीं छोड़ना चाहता था, इसलिए उसे अपने घर ले जाने के बारे में सोचने लगा।
परंतु एक तरफ वह जख्मी बच्चा और दूसरी तरफ लकड़ी का गठ्ठा, वह सोच में पड़ गया कि वह क्या करे ? अंत में काफी सोच विचार करने के बाद लकड़ी के गठ्ठे को आधा कर कसकर बांध सिर में रख लिया और दूसरे हाथ में बच्चे को छिपा कर ले लिया और अपने घर आ गया। घर आकर सबसे पहले उसने उस बच्चे के घाव को ठीक से साफ कर उसमें कोई दवा लगाकर साफ कपड़े से बांध दिया ताकि दवा गिरे नहीं। अपनी पत्नी को उसकी देखभाल को बोल स्वयं लकड़ी का गठ्ठा उठाकर उसे बेचने चला गया। आज गठ्ठा छोटा होने की वजह से काफी कम रुपये हाथ आये उनमें वह उधर से ही आज के लिए खाने का सामान लेकर आ गया। भालू के बच्चे के पीने के लिए दूध की व्यवस्था की। आज उसे एक जान बचाने की दिल से बहुत खुशी थी।
काफी दिन नियमित देखभाल से भालू के बच्चे का घाव अब ठीक हो आया था। इधर मनमदन का उस बच्चे से लगाव बढ़ता गया और वह बच्चा भी समय बीतने के साथ-साथ बड़ा हो रहा था। लगभग चार माह बीत जाने के बाद वह बच्चा पूरी तरह स्वस्थ हो गया था। मनमदन उसे प्यार से नन्दू कहा करता था। अब मनमदन उसे वापस जंगल में छोड़ने के बारे में सोचने लगा और भारी मन से उसके सिर में हाथ फेर उसके बालों को सहलाकर उसे जंगल मे छोड़ दिया। नंदू भी बार-बार पीछे मुड़-मुड़ कर देख रहा था और जंगल में आगे की ओर बढ़ता गया और आंखों से ओझल हो गया और मनमदन भी भीगी आंखों के साथ एक छोटा सा लकड़ियों का गठ्ठा लेकर घर आ गया।
लगभग दो वर्ष बाद की बात है। रोज की भांति उस दिन भ
ी मनमदन जंगल मे सूखी लकड़ियाँ काट रहा था कि तभी उस पर एक बड़े भूरे भालू ने हमला कर दिया।जान बचाने के लिए मनमदन भागकर एक बड़े पेड़ पर चढ़ गया और "बचाओ-बचाओ" की आवाज लगाने लगा। इधर वह भालू पेड़ पर चढ़े मनमदन को ललचाई नजरों से देख रहा था, भालू को पेड़ के नीचे खड़ा देखकर मन मदन भयभीत हो गया। तभी वह भालू अपने पीछे के पैरों के बल पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने लगा। भालू को पेड़ पर चढ़ता देख मनमदन के शरीर से पसीना छूट गया, भय के मारे उसके प्राण सूख गए। अब वह और जोर -जोर से "बचाओ-बचाओ" चिल्लाने लगा।
कुछ समय बाद झाड़ियों के बीच से कोई उसी तरफ आता दिखाई दिया। परन्तु यह क्या ! दूसरे भालू को उसी तरफ आता देख मनमदन के होश उड़ गए। दूसरा भालू भी पास आकर पेड़ में ऊपर की तरफ देखने लगा। दूसरे भालू को आया देखकर भूरा भालू गुस्से से दूसरे भालू पर हमला बोल दिया, परन्तु कुछ समय बाद दूसरे भालू ने भूरे भालू को हरा दिया, इस प्रकार पहला भालू अपनी जान बचाकर वहाँ से भाग गया।
हिंसक भालू के जाने के बाद दूसरा भालू अपने अपने पीछे के पैरों के बल खड़ा हो आगे के पैर ऊपर उठाकर इस तरह हिलाने लगा मानो कह रहा हो कि "उतर आओ ! मैं नंदू हूँ,डरो मत।" भालू की हरकत देखकर मनमदन को भी नंदू की याद आ गई और वह पेड़ से नन्दू के बारे में सोचते हुए धीरे-धीरे उतरने लगा। भालू भी उसे बड़े प्यार से देख रहा था। अंत में मनमदन, नंदू को पहचान गया और पेड़ से नीचे उतर आया और डरते-डरते उसके पास पहुंच गया। नंदू भी उससे बड़े प्यार से खेलने लगा।
मनमदन उसके सिर पर हाथ फेरने लगा। काफी देर बाद जब मनमदन घर की ओर चलने को हुआ, नंदू उसका फटा हुआ गमछा मुँह में दबाकर एक ओर चलने का संकेत करने लगा। उस पर वह उसी ओर चल पड़ा। कुछ दूर जाने परसे एक मिट्टी का टीला दिखाई दिया और मनमदन को नंदू उसी टीले के पास ले गया । वहाँ पहुँच नन्दू अपने नुकीले पंजों से उसे खोदने लगा। नन्दू को टीला खोदते देख मनमदन भी लकड़ी लेकर उसके साथ खुदाई करने लगा। वहाँ का नजारा देख मनमदन की आंखें फ़टी की फटी रह गई क्यों कि उसके सामने सोने-चांदी के आभूषण मिट्टी में दबे बिखरे पड़े थे। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। वह अपने गमछे में सारा सोना-चांदी बाँध खुशी-खुशी घर आ गया और अपनी पत्नी से सारा किस्सा कह सुनाया। पत्नी भी भाव-विभोर हो उठी। सबसे पहले उसने बहुत से गहने अपनी पत्नी को पहनने के लिए दिए और शेष बचे सोने को अब थोड़ा-थोड़ा करके उसने बाजार में बेच बहुत सा धन इकठ्ठा किया।
अपने रहने के लिए एक शानदार और आलीशान महल बनवाया और उसके गृह प्रवेश के मौके पर सारे गाँव के लोगो को बुलाया उन्हें भी बहुत सारा धन दान में देकर आराम पूर्वक अपना जीवन शालीनता के साथ व्यतीत करने लगा। गाँव मे ही उसने एक बड़ा सा व्यवसाय शुरु कर गाँव के बहुत से लोगों को रोजगार देकर उनके जीवन को भी खुशियों से भर दिया। कुछ दिन बाद उसने गाँव में एक पशु अस्पताल भी खोला जिसमें सभी पशुओं का इलाज किया जाता था। उसने पूरे गाँव की तस्वीर ही बदल दी।