बचपन की छुट्टियाँ
बचपन की छुट्टियाँ


कितनी सुहावनी होती थीं हमारे समय की गर्मी की छुट्टियाँ आज लवी के दिल में बैठे बैठे यही विचार आ रहे थे अपने नन्हे से बच्चे को अकेले खेलते हुए देखकर .....सोच में डूबी लवी अपने बचपन में लौट गयी।
कैसे हर साल परीक्षा ख़त्म होते ही नानी के घर या दादी के घर जाने के लिए दिल में तूफ़ान मचा रहता था। दादी के घर जाकर सुबह दादाजी के साथ खेतों को देखकर आना और ट्युवेल पर ठंडे पानी में छपाक छपाक कर नहाना और घर आते आते पता ही नहीं कि नहा भी लिये....आम के बड़े से पेड़ पर झूला डलवाना ज़िद्द करके फिर सारे मौहल्ले के बच्चों का पूरी दोपहर घेर में ही समय बिताना कुछ कुछ पेड़ों पर आम भी लगे रहते तो उनको तोड़ने के लिए पेड़ों पर चढ़ना या झूले को ऊँची पेंग बढ़ा कर तोड़ने की कोशिश...अचानक से अपनेबच्चे के गिरने की आवाज़ सुन लवी सोच से बाहर आयी और बच्चे को उठा उसको देखने लगी।
ज़रा सा गिरा था पर माँ तो माँ होती है न ...तिल का ताड़ बना देती है घंटों उसे लेकर बैठी रही जब बच्चा सो गया लवी फिर बाहर सोफ़े पर बैठ गयी आकर । सोचने लगी हम तो दिन में हज़ारों बार गिरते थे पर कोई ऐसे दौड़ कर नहीं आता था बस समझा दिया जाता था देखकर चलो, धीरे चलो.....आजकल हम कुछ ज़्यादा ही बच्चे पर निगाह गड़ाये बैठे रहते हैं उसको खुद से कुछ करने का साहस नहीं देते। पर दादा नाना किसी के भी घर हमेशा इतना कुछ सीखने को मिल जाता था कि कभी गुड मैनर सिखाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी सब अपने आप देखकर ही आ गया। वो गर्मियों की छुट्टियाँ भी कितनी अच्छी हुआ करती थीं ।
दरवाजे की घंटी सुन लवी की फिर से तंद्र टूटी ....उठकर दरवाज़ा खोला। अमन (पति)ऑफ़िस से आ चुका था उसने तुरंत मास्क उतार बाथरूम में नहाने के लिए प्रवेश किया तब तक लवी ने मैंगो शेक बना दिया, बच्चा भी उठ गया था और उसको मशक़्क़त कर दो तीन घूँट मैंगो शेक पिलाया फिर फ़ोन में कविता लगा कर देखने बैठा दिया।
लवी आज तो आते वक
़्त बहुत बुरी हालात देखी सड़क पर सिर्फ़ ऐम्ब्युलेंस की आवाज़ें बहुत मन घबरा गया देखकर। अच्छा हुआ सरकार ने लॉक्डाउन लगा दिया अब कल से घर से ही काम रहेगा मेरा...अमन ने लवी को सोफ़े पर बैठते हुए आज की खबर सुनायी।
अरे वाह मैंगो शेक मेरा तो फेवरेट है तुम्हें पता है लवी जब छुट्टियों में गाँव ज़ाया करता था तो अम्मा हमेशा आम का पना बना के रखती थीं और हम सब बच्चे उसे एक दिन में ही गटक जाते थे बहुत डाँट पड़ती थी मेरी तो।
तरबूज़ ख़रबूज़ लीची ये सब तो ऐसे टोकरियों में भर भर के आया करते थे और दो दिन भी मुश्किल से चलते थे।
हाँ अमन मुझे भी आज अपने गाँव के छुट्टियों के दिन याद आ गये थे कितना मज़ा किया अपने बचपन में पर अब देखो पहले तो पढ़ाई की वजह से कोई जाता नहीं किसी रिश्तेदार के दूसरा कोरोना ने बुरी हालात कर रखी है।
मैं सोच रहा हूँ लवी कि अपने गाँव चलते हैं घर से काम होता रहेगा और अपना बच्चा दादा दादी के पास रहकर बहुत कुछ सीख जाएगा अभी तो चिड़चिड़ा होता जा रहा है
हाँ अमन सही कह रहे हो वहाँ और भी बच्चे हैं तो इसका भी मन लगा रहेगा।
अगली सुबह लवी और अमन बच्चे के साथ गाँव निकल गये। बच्चे के बहाने उन्हें भी इस महामारी में अपने बचपन के दिन अपनों के साथदेखने का सौभाग्य मिल गया और कुछ ही दिनों में बच्चे में भी खुद से खाना खाने, अपने काम खुद करना जैसे कई काम अपने आप करना सीखा उसका चिड़चिड़ा पन भी कम हो गया दादा दादी का मन भी खुश और बच्चे ने भी खूब आम और तरबूज़ ख़रबूज़ अपने आप खाना सीख लिया ये सब देख लवी और अमन खुश थे कि अपने जैसे बचपन की गर्मियों की छुट्टी अपने बच्चे को भी दे पा रहे हैं।
सच में कोरोना ने तो बीते दिन छीन लिए हैं पर आप अपनों के साथ घर में रहकर भी यादों को तरोताज़ा कर सकते हैं बस मन में उत्साह और उमंग बनी रहनी चाहिये। गर्मियों की छुट्टियों को आप भी ऐसे ही न जाने दें घर में रह हर तरह से उत्साह मनाया जा सकता है।