STORYMIRROR

Charumati Ramdas

Others

4  

Charumati Ramdas

Others

बचपन का दोस्त

बचपन का दोस्त

6 mins
265


 

जब मैं छह या साढ़े छह साल का था, तो बिल्कुल नहीं जानता था कि इस दुनिया में मैं आख़िर क्या बनूँगा। मुझे अपने चारों ओर के सब लोग अच्छे लगते थे और सारे काम भी अच्छे लगते थे। तब मेरे दिमाग़ में बड़ी भयानक उलझन थी, मैं काफ़ी परेशान था और तय नहीं कर पा रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए।

कभी मैं एस्ट्रोनॉमर बनने की सोचता, जिससे कि रात को सोना न पड़े और मैं रात भर टेलिस्कोप में दूर-दराज़ के तारे देख सकूँ; या फिर दूर की यात्रा करने वाले जहाज़ का कप्तान बनने का सपना देखता, जिससे कप्तान के ब्रिज पर पैर फैलाए खड़ा रहूँ और दूर-दूर वाले सिंगापुर की सैर कर सकूँ और वहाँ एक अच्छा–सा दिलचस्प बन्दर ख़रीद सकूँ। कभी-कभी मेरा दिल बुरी तरह चाहता कि मेट्रो-ड्राइवर या स्टेशन-मास्टर बन जाऊँ, लाल कैप पहनूँ और मोटी आवाज़ में चिल्लाऊँ:

 “रे-ए-डी!”

कभी मैं ऐसा आर्टिस्ट बनने का ख़्वाब देखता जो सड़क पर आने-जाने वाली मोटर गाड़ियों के लिए सफ़ेद पट्टे बनाता है। या फिर मुझे ऐसा लगता कि एलेन बोम्बार जैसा बहादुर यात्री बनना – छोटी-सी बोट पर सारे महासागर तैर जाना, वो भी सिर्फ मछली खाकर – ये भी बुरी बात नहीं है। ये सच है कि अपनी समुद्री यात्रा के बाद बोम्बार का वज़न पच्चीस किलो कम हो गया था, और मेरा तो कुल वज़न ही सिर्फ छब्बीस किलो है, तो इसका मतलब ये हुआ कि अगर मैं भी बोट में जाऊँ, उसकी तरह, तो मैं तो इतना दुबला हो ही नहीं सकता; सफ़र ख़तम होने पर मेरा वज़न रह जाएगा सिर्फ एक किलो। और, अगर अचानक, मान लो कभी एकाध-दूसरी मछली भी न पकड़ पाऊँ और इससे भी ज़्यादा दुबला हो जाऊँ तो? तब तो मैं बस हवा में पिघल ही जाऊँगा धुँए की तरह, फिर तो बस हो गई छुट्टी।

जब मैंने इन सारी बातों पर गौर किया तो तय किया कि मैं ये जोख़िम नहीं उठाऊँगा; मगर दूसरे ही दिन मेरा दिल बॉक्सर बनने के लिए मचलने लगा, क्योंकि मैंने टी। वी। पर बॉक्सिंग की यूरोपियन चैम्पियनशिप का ड्रा-मैच देखा। हा! कैसे वे एक दूसरे को धुन रहे थे – बहुत डरावना था! और फिर उनकी ट्रेनिंग कैसे होती है ये दिखाया गया, यहाँ वे मुक्के बरसाए जा रहे थे एक बड़ी भारी चमड़े की “नाशपाती” पर – ये ऐसी लम्बी, भारी-भरकम गेंद होती है; उस पर पूरी ताक़त से मुक्के बरसाए जा सकते हैं, उसका कचूमर बनाया जा सकता है, जिससे कि आपके भीतर इस मार का फोर्स बढ़ता जाए। मैं ये सब देखते-देखते इतना मगन हो गया, कि मैंने अपने कम्पाउण्ड में सबसे ज़्यादा ताक़तवर इन्सान बनने का फ़ैसला कर लिया, जिससे कि ज़रूरत पड़ने पर मैं सबको मार सकूँ।

मैंने पापा से कहा:

 “पापा, मेरे लिए नाशपाती ख़रीद दो। ”

 “अभी जनवरी का महीना है, नाशपातियाँ नहीं मिलतीं। फ़िलहाल तुम गाजर खा लो। ”

मैं हँसने लगा:

 “नहीं, पापा, वो वाली नहीं! खाने वाली नाशपाती नहीं! तुम, प्लीज़ मुझे ऑर्डिनरी वाली, चमड़े की, बॉक्सरों वाली नाशपाती खरीद दो। ”         

 “वो तुझे किसलिए चाहिए?” पापा ने कहा।

 “ट्रेनिंग के लिए,” मैंने कहा। “क्योंकि मैं बॉक्सर बनूँगा और सबको मारा करूँगा। खरीदोगे ना, हाँ?

 “कितने की आती है वो नाशपाती?” पापा ने दिलचस्पी से पूछा।

 “बहुत कम में,” मैंने कहा, “यही कोई दस या पचास रुबल की होगी। ”

 “तू पागल हो गया है, मेरे भाई,” पापा ने कहा , “बिना नाशपाती के ही किसी तरह मैनेज करो। तुम्हें कुछ नहीं होगा। ”

 और वो कपड़े पहन कर काम पे चले गए।

और मैं उनके ऊपर इसलिए गुस्सा हो गया कि उन्होंने हँसकर मुझे टाल दिया। मगर मम्मी फ़ौरन ताड़ गईं कि मैं गुस्सा हो गया हूँ, वो फ़ौरन बोलीं:

 “ ठहर ज़रा, मेरे दिमाग़ में शायद कोई ख़याल आया है। क्या-है, क्या-है, सबर-कर एक मिनट। ”

वह झुकी और दीवान के नीचे से एक बड़ी बुनी हुई बास्केट निकाली; उसमें पुराने खिलौने रखे हुए थे जिनसे मैं अब नहीं खेलता था। क्योंकि मैं अब बड़ा हो गया था और पतझड़ में मेरे लिए स्कूल यूनिफॉर्म और शानदार कैप खरीदी जाने वाली थी।

मम्मी बास्केट में कुछ ढूँढ़ने लगी, और, जब तक वह ढूँढ़ रही थी, मैंने अपनी पुरानी ट्रामगाड़ी देखी – बिना पहियों के, रस्सी से बँधी हुई, प्लैस्टिक की बाँसुरी देखी, धारियों वाला लट्टू देखा, एक तीर रेक्ज़ीन के टुकड़े में लिपटा हुआ; नाव के पाल का टुकड़ा, बहुत सारे झुनझुने, और भी बहुत कुछ टूटे-फूटे खिलौने देखे। और अचानक मम्मी ने बास्केट की तली से तन्दुरुस्त, मोटे-ताज़े, रोएँदार मीश्का (टैडी बेअर) को निकाला।

उसने उसे मेरी ओर दीवान पर फेंका और बोलीं:

 “ये देख। ये वही है जो तुझे मीला आंटी ने दिया था। तू तब दो साल का हुआ था। अच्छा मीश्का है, बढ़िया। देख, कैसा टाइट है! पेट कितना मोटा है! ओफ़, कितना खेलता था तू इससे! क्या ये नाशपाती जैसा नहीं है? उससे भी बढ़िया है! और खरीदने की भी ज़रूरत नहीं है! जी भर के इस पर प्रैक्टिस कर! शुरू हो जा!

मगर तभी उसे टेलिफोन सुनने कोरीडोर में जाना पड़ा।

मैं बहुत ख़ुश हो गया, कि मम्मी ने इतनी बढ़िया बात सोची। मैंने मीश्का को दीवान पर अच्छी तरह से बैठा दिया, जिससे मैं उस पर प्रैक्टिस कर सकूँ और मार की ताकत बढ़ा सकूँ।

वो मेरे सामने बैठा था - ऐसे बढ़िया चॉकलेट-कलर का, मगर उसका रंग काफ़ी उड़ चुका था; और उसकी आँखें भी अलग-अलग तरह की थीं: एक, जो उसकी ख़ुद की थी – पीली काँच की, और दूसरी बड़ी, सफ़ेद – तकिए के गिलाफ़ से बनी बटन की; मुझे तो ये भी याद नहीं कि वो कब आया था। मगर ये ज़रूरी नहीं था, क्यों कि मीश्का अपनी अलग-अलग तरह की आँखों से मेरी ओर इतनी ख़ुशी से देख रहा था, और उसने अपने पैर फ़ैलाए हुए थे, मुझसे मिलने के लिए अपने पेट को बाहर निकाल लिया था, और दोनों हाथ ऊपर उठा लिए थे, जैसे मज़ाक कर रहा हो कि वो पहले ही हार मान रहा है।

मैं उसकी ओर देखता रहा और अचानक मुझे याद आया कि कैसे मैं इस मीशा से एक मिनट को भी अलग नहीं होता था, हर जगह उसे अपने साथ घसीट कर ले जाता था, उसको गोद में खिलाता, उसके लाड करता, और खाना खाते समय उसे अपनी बगल में मेज़ पर बिठाता, उसे चम्मच से नूडल्स खिलाता, और जब मैं उसके चेहरे पर कुछ पोत देता - चाहे वही नूडल्स या पॉरिज हो - तो उसका चेहरा इतना मज़ेदार और प्यारा हो जाता, जैसे बिल्कुल ज़िन्दा हो! मैं उसे अपने साथ सुलाता, उसे अपनी गोद में झुलाता मानो वो मेरा छोटा भाई हो; उसके मखमली, मज़बूत कानों में कहानियाँ फुसफुसाता; तब मैं उसे प्यार करता था, अपनी पूरी आत्मा से प्यार करता था, उसके लिए उस समय मैं अपनी जान भी दे देता। और इस समय वो बैठा है दीवान पर – मेरा पुराना, सबसे बढ़िया दोस्त, बचपन का सच्चा दोस्त। वो बैठा है, अपनी अलग-अलग तरह की आँखों से मुस्कुरा रहा है, और मैं हूँ कि उस पर मार की ताक़त आज़माना चाहता हूँ। । ।

 “तू क्या,” मम्मी ने कहा, वह कॉरिडोर से वापस आ गई थी, “क्या हुआ है तुझे?”

मगर मैं नहीं जानता था कि मुझे क्या हुआ है, मैं बड़ी देर तक ख़ामोश रहा और फिर मैंने मुँह फेर लिया, जिससे कि वह मेरे होठों से और मेरी आवाज़ से कोई अन्दाज़ न लगा सकें कि मुझे क्या हुआ है, और मैंने झटके से सिर छत की ओर उठा दिया जिससे आँसू वापस लौट जाएँ, और फिर जब मैंने अपने आप पर थोड़ा काबू पा लिया तो मैंने कहा:

 “किस बारे में पूछ रही हो, मम्मी? मुझे कुछ भी नहीं हुआ। बस मैंने अपना इरादा

बदल दिया है। बस, मैं कभी भी बॉक्सर नहीं बनूँगा।



Rate this content
Log in