बासी सुबह
बासी सुबह
छुट्टी का दिन था ,घर में सभी चादर तान सो रहे थे ।
दादी अपने नियम अनुसार सुबह सुबह उठकर पूजा पाठ करके हाल में बैठी बस सोचे जा रहीं थी ,कहाँ वह गाँव की महर महर महकती सुबह कहाँ ये सोया हुआ उबासी लेता शहर ।कहाँ गाँव की मनमोहक समरसता कहाँ अपनें ही आप में खोया शहर ।कहाँ गाँव की चहकती गौरेया सी कलरव करती जन जन के मुख पर मुस्कराती राम - राम ।कहाँ बिस्तर की चाय सुड़कती सुबह की बासी गुड मार्निंग।
अचानक चिंटू की मुस्कराती आवाज उनके विचारो की तृंदा को तोड देती है।पास आकर पैरों में बैठ गया चिंटू। दादी सिर पर हाथ फेरते हुए बड़े प्यार से पूछती है
".... क्या बात है बेटवा ? आज तुम बहुत जल्दी जाग गये? कौनो तकलीफ है का?" चिंटू रुआँसी आवाज मे कहता है ..."दादी, दादी .. "
"हाँ बेटवा बोलो का हुआ कुछ चाही का... "
चिंटू "नहीं दादी कल तुम गाँव वापस चली जाओगी ?"
दादी भारी गले से आँखों में आँसू लिए हुए... "हाँ बेटवा जाय के पड़ी.."
"चिंटू !पर क्यों दादी तुम यहीं रहो न हमारे पास। गाँव में तो तुम अकेले रहती हो... हमारे पास क्या कमी है जो तुम हमेशा गाँव जाने की जिद्द करती हो.. आज तुमको बताना ही पड़ेगा क्यों तुम बार-बार गाँव चली जाती हो.. "
"बोलो दादी! बोलो! तुमचुप क्यों हो ?"
दादी बहुत देर तक चिंटू की बात सुनती रही
.... फिर मन ही बड़बड़ाने लगी धूप, हवा, अड़ोसी पड़ोसी, वह अपनत्व भरी बतकही, व्यवहार
"उफ्फ्फ तुम का समझो चिंटू बेटवा ई शहर के लोगन ने खोया ही खोया और का पाया है..।बिस्तर की चाय सुडकती आपा धापी भरी बासी सुबह।