बाल कवि सम्मेलन

बाल कवि सम्मेलन

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हमारे स्कूल में बाल कवि सम्मेलन होने जा रहा था। उसके एक दिन पहले जब मैं स्कूल से आया तो, मैंने सबसे पहले अपना कविता लिखना शुरू किया। हां, मैंने मेहनत किया था, मैंने अपनी तरफ से अच्छी कविता लिखी थी। सच कहूं तो मेरी कविता का उद्देश्य मोटिवेशन था। कविता लिखते लिखते शायद शाम हो चुकी थी। जब शाम को मैंने अपना व्हाट्सएप खोला तो मैंने अपनी दोस्त से पूछा कि उसने अपनी कविता कैसे लिखी है। वह मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी। जब मैंने उसकी कविता देखी तो मैं जैसे हिल गया था, उसकी कविता का थीम माँ और उसके बच्चे के बीच के लगाव का था। जब मैंने उसकी कविता को पढ़ा तो मुझे उससे ईर्ष्या होने लगी थी, मुझे उससे जलन होने लगी थी उसकी कविता काफी अच्छी थी , बहुत ही अच्छी थी। आखिर कोई इतनी अच्छी कविता कैसे लिख सकता है। मन कर रहा था कि मैं उसे बोलूं कि कल तुम स्कूल ही मत आना। मुझे लगा जैसे इस प्रतियोगिता की विजेता सिर्फ वही होगी।

जब मैंने अपना कविता देखी तो मेरी कविता में कुछ भी नहीं था, सिर्फ और सिर्फ कचरा भरा पड़ा था। मेरा मन कर रहा था कि उसका कविता मैं ले लूं या फिर मैं उसे कहूं कि मेरी भी कविता तुम ही दिखा दो, लेकिन मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया क्योंकि मुझे भरोसा था खुद पर। अगले दिन यानी बाल कवि सम्मेलन के दिन, जब उसने अपनी कविता को प्रस्तुत किया तो मुझे अजीब सा महसूस होने लगा था। उसकी कविता पर बजने वाली तालियों की गड़गड़ाहट मुझे अंतर तक घायल कर गई थी। उसके सामने मेरी कविता कुछ भी नहीं थी। लेकिन फिर भी, मैंने भी अपनी कविता प्रस्तुत की जब मेरी बारी आई। मुझे कुछ पंक्तियां याद है मेरी कविता की, वह कुछ इस प्रकार हैं:-


 रंग बिरंगी मोतिया बिखरी हैं,

 मुझे किन्ही एक को उठाना है

 यह दुनिया अंधों की भीड़ है,

 मुझे नयन हासिल करना है।


लोग तो ज़मीन पर ही रह जाते हैं,

मुझे बादलों के साथ उड़ना है

लोग तो जिंदगी व्यतीत करते हैं,

मुझे जिंदगी को जीना है।


मैंने भी देखा था, सुना था उन तालियों की गड़गड़ाहट को। वह कम बिल्कुल भी नहीं थे। तालियों को सुनने के बाद मैं इतना तो जान चुका था कि मेरी कविता टॉप टेन में सिलेक्ट हो जाएगी। और फिर जब बाल दिवस के दिन विजेता का नाम बताया गया तो वह था खुद मैं, और मेरी दोस्त वह थी दूसरे नंबर पर।


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