Charumati Ramdas

Children Stories

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Charumati Ramdas

Children Stories

ऐसा कहीं देखा है, ऐसा कहीं सुना है

ऐसा कहीं देखा है, ऐसा कहीं सुना है

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लेखक: विक्टर द्रागून्स्की

अनु। : आ। चारुमति रामदास


शॉर्ट इंटरवल में हमारी ऑक्टोबर-लीडर ल्यूस्या भागकर मेरे पास आई और बोली:

"डेनिस्का, क्या तू कॉन्सर्ट में हिस्सा लेगा? हमने दो छोटे बच्चों को तैयार करने का फ़ैसला किया है, ताकि वे व्यंग्यकार बनें। तैयार है?"

मैंने कहा:

"मैं सब करना चाहता हूँ! बस, तू इतना समझा दे कि ये व्यंग्यकार मतलब क्या होता है।"

ल्यूस्या ने समझाया:

"देख, हमारे यहाँ कई सारी ख़ामियाँ हैं।।।मतलब, मिसाल के तौर पर, ऐसे बच्चे जिन्हें बस 'दो' नम्बर मिलते हैं, या कुछ बच्चे आलसी होते हैं - उनकी बुराई करनी है। समझ गया? उनके बारे में कविता पढ़नी है, जिससे सब हँसने लगें, इसका उन पर गहरा असर पड़ता है, वे होश में आ जाते हैं।"

मैंने कहा:

"वे कोई शराबी थोड़े ही ना हैं, जो उन्हें होश में लाया जाए, वे बस, आलसी हैं"

"अरे, ऐसा कहते हैं: 'होश में लाना' – हँसने लगी ल्यूस्या। "असल में ये बच्चे सोचने लगेंगे, उन्हें अटपटा लगने लगेगा, और वे सुधर जाएँगे। अब समझ में आया? तो, अब, ज़्यादा नख़रे न दिखा : अगर चाहता है – तो हाँ कर दे ; नहीं चाहता – मना कर दे!"

मैंने कहा:"ठीक है, चलेगा!"

तब ल्यूस्या ने पूछा:"क्या तेरा कोई पार्टनर है?"

 "नहीं।"ल्यूस्या को बड़ा अचरज हुआ:

 "तू बिना दोस्त के कैसे रहता है?"

 "दोस्त तो मेरा है, मीश्का। मगर पार्टनर नहीं है।"

ल्यूस्या फिर से मुस्कुराई:

 "ये तो एक ही बात है। और क्या वो म्युज़िकल है, तेरा ये मीश्का?"

 "नहीं, साधारण है।"

 "गाना गा सकता है?"

 "बहुत धीमे-धीमे। मगर मैं उसे ज़ोर से गाना सिखाऊँगा, तू परेशान न हो।"

अब ल्यूस्या खुश हो गई।

 "क्लास ख़त्म होने के बाद उसे छोटे हॉल में ले आ, वहाँ प्रैक्टिस होगी!"

और मैं पूरी रफ़्तार से मीश्का को ढूँढ़ने के लिए भागा। वो कैंटीन में खड़ा था और सॉसेज खा रहा था।

 "मीश्का, व्यंग्यकार बनना चाहता है?"

मगर उसने कहा:"रुक जा, खाने दे।"

मैं खड़ा होकर देखने लगा कि वो कैसे खाता है। ख़ुद तो इतना छोटा है, और सॉसेज उसकी गर्दन से भी मोटा है। उसने इस सॉसेज को हाथों में पकड़ रखा था और पूरा, बिना काटे, उसे खा रहा था, और जब वह उसे कुतरता तो उसकी पपड़ी चटख़ रही थी और टूट रही थी, और वहाँ से गर्म, ख़ुशबूदार रस उड़ता।

अब तो मुझसे भी रहा न गया और मैंने कात्या आण्टी से कहा:

"मुझे भी सॉसेज दीजिए, प्लीज़, जल्दी से!"

और कात्या आण्टी ने फ़ौरन मेरी ओर बाउल बढ़ा दिया। मैं बहुत जल्दी-जल्दी खा रहा था, जिससे कि मीश्का मुझसे पहले अपना सॉसेज ख़त्म न कर ले : मुझे अकेले तो वह इतना मज़ेदार नहीं लगता। तो, मैंने भी अपना सॉसेज हाथों में पकड़ा और मैं भी बिना साफ़ किए उसे कुतरने लगा, और उसमें से भी गर्म-गर्म, ख़ुशबूदार रस निकल रहा था। हम दोनों इस तरह से अपना-अपना भाप निकलता हुआ सॉसेज खा रहे थे, हाथ जला रहे थे, एक दूसरे की ओर देखे जा रहे थे और मुस्कुरा रहे थे।

फिर मैंने उसे बताया कि हम व्यंग्यकार बनेंगे, और वो राज़ी हो गया ; हम बड़ी मुश्किल से क्लासेस ख़त्म होने तक बैठे, फिर छोटे हॉल में प्रैक्टिस के लिए भागे।

वहाँ हमारी लीडर ल्यूस्या पहले से ही बैठी हुई थी, और उसके साथ एक लड़का था, शायद चौथी क्लास का होगा, बेहद बदसूरत, छोटे-छोटे कान और बड़ी-बड़ी आँखों वाला।

ल्यूस्या ने कहा:

 "ये रहे वो दोनों! इससे मिलो, ये है हमारे स्कूल का कवि अन्द्रेइ शेस्ताकोव।"

हमने कहा:

 " बहुत अच्छे!"

और हम दूसरी ओर देखने लगे जिससे कि वह शान न बघारे।

मगर उस कवि ने ल्यूस्या से कहा:

 "ये क्या गाने वाले बच्चे हैं?"

 "हाँ।"उसने कहा:

 "क्या इनसे अच्छे और कोई नहीं मिले?"

ल्यूस्या ने कहा:

" ये बिल्कुल वैसे ही हैं जैसी हमें ज़रूरत है!"

अब वहाँ आए हमारे म्यूज़िक-टीचर बोरिस सेर्गेयेविच। वह सीधे पियानो की ओर गए:

"तो, चलो, शुरू करते हैं! कविता कहाँ है?"

अन्द्रूश्का ने जेब से कोई कागज़ निकाला और कहा:

"ये रही। मैंने मुखड़ा और मात्राएँ ली हैं मार्शाक की कविता 'किस्सा गधे का, दादा का और पोते का : ऐसा कहीं देखा है, ऐसा कहीं सुना है....' से।"

बोरिस सेर्गेयेविच ने सिर हिलाया:

 "पढ़ के सुना!"

अन्द्र्यूश्का पढ़ने लगा:

वास्या के पापा मैथ्स में हैं पक्के,

पापा पढ़ें पूरे साल वास्या के बदले।

ऐसा कहीं देखा है, ऐसा कहीं सुना है,

पापा करें सवाल और वास्या हो 'पास'?

मैं और मीश्का अपने आप को रोक न सके और खिलखिलाने लगे। बेशक, बच्चे अक्सर अपने मम्मी-पापा से सवाल हल करने को कहते हैं, और फिर उसे इस तरह टीचर को दिखाते हैं, जैसे वे ख़ुद ही इतने होशियार हैं। मगर यदि उन्हें ब्लैक-बोर्ड पर यही करने के लिए बुलाया जाता है, तो टाँय-टाँय फिस्! – 'दो' नम्बर मिलते हैं! ये बात सबको मालूम है। शाबाश अन्द्र्यूश्का, अच्छा पकड़ लिया!

अन्द्र्यूश्का आगे पढ़ता है:


चॉक से बने हैं फर्श पे चौख़ाने

मानेच्का और तानेच्का कूदती हैं वहाँ।

ऐसा कहीं देखा है, ऐसा कहीं सुना है,

'क्लासों' में खेलें और क्लास में न जाएँ? 

फिर से बढ़िया! हमें बहुत अच्छा लगा! ये अन्द्र्यूशा तो वाक़ई में असली जीनियस है, पूश्किन की तरह!

बोरिस सेर्गेयेविच ने कहा:"ठीक है, बुरा नहीं है! और म्यूज़िक होगा एकदम सिम्पल, कुछ इस तरह का," और उन्होंने अन्द्र्यूशा की कविता ली, और हौले-हौले पियानो बजाते हुए, उसे गाकर सुना दिया।बहुत ही आसान था, हम तालियाँ भी बजाने लगे।अब बोरिस सेर्गेयेविच ने कहा:

 "गा कौन रहा है?"

और ल्यूस्या ने मेरी और मीशा की ओर इशारा किया।

 "ये रहे! "

 "हुम् ," बोरिस सेर्गेयेविच ने कहा, "मीश्का अच्छा गाता है।।।मगर देनिस्का कोई ज़्यादा अच्छा नहीं गाता।"

मैंने कहा, "मगर ज़ोर से गाता हूँ।"

और हमने म्यूज़िक के साथ कविता गानी शुरू कर दी और उसे दुहराते रहे, शायद पचास या फिर हज़ार बार दुहराई होगी, और मैं खूब ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था, सब मुझे शांत कर रहे थे और कुछ-कुछ कह रहे थे:

 "तू घबरा मत! तू थोड़ा धीमी आवाज़ में गा! शांति से! इतनी ज़ोर से गाने की ज़रूरत नहीं है!"

अन्द्र्यूश्का बहुत ज़्यादा परेशान हो रहा था। वो मुझे बहुत परेशान कर रहा था। मगर मैं सिर्फ ज़ोर से ही गाए जा रहा था, मैं धीमी आवाज़ में गाना नहीं चाहता था, क्योंकि असली गाना तो तब होता है जब ज़ोर से गाया जाता है!

...और एक दिन, जब मैं स्कूल पहुँचा, मैंने क्लोक-रूम में नोटिस देखा:

अटेन्शन!

आज बड़े इन्टरवल में

छोटे हॉल में होगा

छोटा सा प्रोग्राम

"पायनियर-व्यंग्यकार' का!

पेश करेगी - बच्चों की जोड़ी!

सामयिक-समस्या पर!

सब लोग आईये!


मेरे दिल की धड़कन रुक गई। मैं क्लास में भागा। वहाँ मीश्का बैठा था और खिड़की से बाहर देख रहा था।

मैंने कहा:

 "तो, आज हमें गाना है!"

मगर मीश्का अचानक बड़बड़ाया:

 "मेरा दिल नहीं चाह रहा है गाने को।।।"

मैं तो जैसे गूँगा हो गया। क्या – दिल नहीं चाहता? ये क्या बात हुई? हमने तो प्रैक्टिस की थी? ल्यूस्या और बोरिस सेर्गेयेविच क्या कहेंगे? अन्द्र्यूश्का? और सारे बच्चे, उन्होंने तो नोटिस पढ़ लिया है और वे सब एक साथ भाग कर पहुँच जाएँगे? मैंने कहा:

 "तू, क्या पागल हो गया है? लोगों को बेवकूफ़ बनाएँगे?"

 मगर मीश्का ने बड़ी दयनीयता से कहा:

 "शायद, मेरे पेट में दर्द हो रहा है।"

मैंने कहा:

 "ये डर के मारे है। मेरा पेट भी दुख रहा है, मगर मैं तो इनकार नहीं कर रहा हूँ!"

मगर मीश्का खोया-खोया ही रहा। बड़े इन्टरवल में सारे बच्चे छोटे हॉल की ओर लपके, मगर मैं और मीश्का बड़ी मुश्किल से घिसटते हुए चल रहे थे, क्योंकि मेरी भी गाने की इच्छा ख़तम हो गई थी। मगर तभी ल्यूस्या भागकर हमारे पास आई, उसने कस कर हमारे हाथ पकड़ लिए और खींचते हुए हमें अपने साथ ले चली, मगर मेरे पैर इतने नर्म हो गए थे जैसे किसी गुड़िया के होते हैं, और वे लड़खड़ाने लगे। मुझ पर ये, शायद, मीश्का का असर हो गया था।

हॉल में पियानो के लिए एक जगह बनाई गई थी, और चारों तरफ़ सभी कक्षाओं के बच्चों की, आयाओं की, और टीचर्स की भीड़ जमा थी।

मैं और मीश्का पियानो के पास खड़े हो गए।

बोरिस सेर्गेयेविच पहले ही अपनी जगह पर बैठ चुके थे, और ल्यूस्या ने अनाउन्सर जैसी आवाज़ में घोषणा की:

 "सामयिक विषयों पर "पायनियर-व्यंग्यकार" का प्रोग्राम शुरू करते हैं। स्क्रिप्ट लिखी है अन्द्रेइ शेस्ताकोव ने, और इसे पेश कर रहे हैं जाने-माने व्यंग्यकार मीशा और डेनिस! आइए!"

मैं और मीश्का थोड़ा आगे निकल कर खड़े हो गए। मीशा दीवार की तरह सफ़ेद हो गया था। मगर मैं, ठीक ही था, बस, मेरे गले में ख़राश हो रही थी और वह सूख गया था।

बोरिस सेर्गेयेविच ने बजाना शुरू किया। शुरूआत मीश्का को करनी थी, क्योंकि पहली दो पंक्तियाँ वो ही गाता था, और बाद की दो पंक्तियाँ मुझे गानी होती थीं। तो, बोरिस सेर्गेयेविच बजा रहे हैं, और मीश्का ने बायाँ हाथ एक ओर को निकाला, जैसा कि उसे ल्यूस्या ने सिखाया था, और अब उसे गाना था, मगर देर हो गई, और जब वो बस गाने ही वाला था, तो इतने में मेरी बारी आ गई, पियानो पर चल रहे म्यूज़िक के अनुसार ऐसा हुआ था। मगर मैंने नहीं गाया, क्योंकि मीशा ने देर कर दी थी। कैसे गाता!

तब मीश्का ने अपना हाथ वापस नीचे कर लिया। और बोरिस सेर्गेयेविच ने फिर से ज़ोर-ज़ोर से और साफ़-साफ़ बजाना शुरू किया।

उन्होंने पियानो की कुंजियों पर तीन बार मारा, जैसा कि उन्हें करना था, और चौथी बार में मीश्का ने फिर से बायाँ हाथ बाहर निकाला और आख़िरकार गाने लगा:

   

वास्या के पापा मैथ्स में हैं पक्के,

पापा पढ़ें पूरे साल वास्या के बदले।


मैंने फ़ौरन पकड़ लिया और चिल्लाने लगा:

ऐसा कहीं देखा है, ऐसा कहीं सुना है,

पापा करें सवाल और वास्या हो 'पास'?!


हॉल में मौजूद सब लोग हँसने लगे, और मुझे इससे कुछ राहत मिली। और बोरिस सेर्गेयेविच आगे बजाने लगे। उन्होंने फिर से तीन बार कुंजियों पर ज़ोर-ज़ोर से मारा, और चौथी बार में मीशा ने सफ़ाई से बायाँ हाथ एक ओर को निकाला और न जाने क्यों फिर से शुरू से गाने लगा:

वास्या के पापा मैथ्स में हैं पक्के,

पापा पढ़ें पूरे साल वास्या के बदले।


मैं फ़ौरन समझ गया कि उससे गलती हो गई है! मगर जब बात ये थी तो मैंने भी तय कर लिया कि मैं इसी को आख़ीर तक गाऊँगा, फिर बाद की बाद में देखी जाएगी। मैं लपका और गाने लगा: 


ऐसा कहीं देखा है, ऐसा कहीं सुना है,

पापा करें सवाल और वास्या हो 'पास'?!


ख़ुदा का शुक्र है कि हॉल में ख़ामोशी थी – ज़ाहिर था, कि सब मीशा की गलती को समझ गए हैं, और सोच रहे थे कि "कोई बात नहीं, होता है; चलो, अब आगे गाने दो।"

और इस बीच म्यूज़िक तो आगे-आगे भागा जा रहा था। मगर मीश्का के चेहरे का रंग कुछ हरा-सा हो गया।

और जब म्यूज़िक उस जगह पर पहुँचा, उसने अपना बायाँ हाथ झटका, और घिस गई रेकॉर्ड की तरह तीसरी बार गाने लगा:

वास्या के पापा मैथ्स में हैं पक्के,

पापा पढ़ें पूरे साल वास्या के बदले।


मेरा दिल तो कर रहा था कि उसके सिर पर कोई ज़ोरदार चीज़ दे मारूँ, और मैं भयानक तैश से गरजा:


ऐसा कहीं देखा है, ऐसा कहीं सुना है,

पापा करें सवाल और वास्या हो 'पास'?!


"मीश्का, देख, तूने तो पूरी गड़बड़ कर दी है! तू ये तीसरी बार भी वही-वही क्या गाए जा रहा है? चल, आगे, लड़कियों के बारे में गा!

मगर मीश्का ने धृष्ठता से कहा:

 "तुझे कुछ बताने की ज़रूरत नहीं है!" और उसने बड़े अदब से बोरिस सेर्गेयेविच से कहा: "प्लीज़, बोरिस सेर्गेयेविच, आगे बजाइए!"

बोरिस सेर्गेयेविच ने बजाना शुरू किया, और मीश्का में अचानक हिम्मत आ गई, उसने फिर से अपना बायाँ हाथ बाहर निकाला और चौथी बार पर ऐसे गाने लगा, जैसे कुछ हुआ ही न हो:

 

वास्या के पापा मैथ्स में हैं पक्के,

पापा पढ़ें पूरे साल वास्या के बदले.....


अब तो पूरे हॉल में ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगने लगे, और मैंने भीड़ में देखा कि अन्द्र्यूश्का का चेहरा कितना दुखी हो रहा था, और ये भी देखा कि ल्यूस्या, पूरी तरह लाल और बिफ़री हुई, भीड़ में से हमारी ओर आ रही है। और मीश्का का मुँह खुला ही रह गया है, जैसे वह खुद पर ही अचरज कर रहा है। इस बीच मैंने, समझदारी से काम लेते हुए चिल्लाकर पूरा किया:


ऐसा कहीं देखा है, ऐसा कहीं सुना है,

पापा करें सवाल और वास्या हो 'पास'?!


अब तो जैसे कोई भयानक बात हो गई। सब इस तरह ठहाके लगा रहे थे, जैसे उन पर दौरा पड़ा हो, और मीश्का का रंग हरे से बैंगनी हो गया। हमारी ल्यूस्या ने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी ओर खींच लिया। वह चिल्लाई:

 "डेनिस्का, तू अकेले ही गा! हमें नीचा ना दिखा...म्यूज़िक! और..."

और मैं खड़ा हूँ पियानो के पास और मैंने फ़ैसला कर लिया है कि मैं उसे नीचा नहीं दिखाऊँगा। मुझे महसूस हुआ कि मेरे लिए ये कोई बड़ी बात नहीं है, और, जब म्यूज़िक उस जगह तक आया, तो न जाने क्यों मैंने भी अचानक अपना बायाँ हाथ बाहर को निकाला और एकदम बेसोचेसमझे चिंघाड़ने लगा:

वास्या के पापा मैथ्स में हैं पक्के,

पापा पढ़ें पूरे साल वास्या के बदले।।।।

मुझे तो अच्छी तरह याद भी नहीं है कि आगे क्या हुआ, कुछ-कुछ ज़लज़ले की तरह हो रहा था। और मैं सोच रहा था कि अभ्भी मैं ज़मीन में समा जाऊँगा, और चारों ओर सब लोग हँसी के मारे एक दूसरे पर गिरे जा रहे थे – आयाएँ, और टीचर्स, और सब, सब, सब।।।

मुझे तो अचरज भी होता है कि मैं इस नासपीटे गाने की वजह से मर कैसे नहीं गया।

शायद मर ही जाता, अगर उसी समय घंटी न बजी होती।।।

अब मैं कभी भी व्यंग्यकार नहीं बनूँगा!



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