अहसास
अहसास


दिमाग सुन्न पड़ गया था रामेश्वर बाबू और उनकी पत्नी बीना का जब उनके इकलौते बेटे दीपक ने आकर उन्हें कहा, "यह देखिए पापा मेरा अप्वाइंटमेंट लेटर, मुझे मुम्बई में नौकरी मिल गई है और वो भी यहां से लगभग दोगुनी सैलरी की, साथ ही एक फ्लैट और आने-जाने के लिए कैब सुविधा, वाह लाइफ बन जाएगी।
अच्छा मम्मी हमें कल ही निकलना होगा ट्रेन टिकट कंफर्म हो गये है और हां पापा सुमन भी मेरे साथ जा रही है होटल ढाबों का खाना मुझे पचता नहीं है"
कहते हुए खुश होते हुए दीपक अपने कमरे की तरफ बढ़ गया वहीं रामेश्वर बाबू और बीना एक दूसरे की और देखकर समझने की कोशिश कर रहे थे कि दीपक उन्हें बता कर अपना फैसला सुना रहा था या उनसे जाने की परमिशन मांगने आया था।
पहले जब एक बार उसने दूसरे शहरों में नौकरी की वकालत की थी तो रामेश्वर बाबू ने साफ कहा तो था कि बेटा यहां की नौकरी में क्या तकलीफ है
और यहां अपना घर ये अपना शहर है तो खर्च भी तो कम है और साथ रहने का सुकून भी तो है।
तो उस समय भी कैसे झुंझलाकर दीपक ने कहा था तो, आप मुझे बेड़ियों में बांधकर रखना चाहते है।
p>फिर कुछ नहीं कहा गया रामेश्वर बाबू से, उन्हें लगा उनके और अपनी मां के मुरझाए चेहरे देखकर दीपक...
मगर आज ...पूरी रात रामेश्वर बाबू और बीना अपने कमरे में बैठे आंसू बहाते रहे।
वहीं दूसरे कमरे से दीपक और सुमन के खिलखिला कर हंसते हुए सामान बांधने की आवाजें आती रही।
अगले दिन दुखी मन से रामेश्वर बाबू बेटा बहु को स्टेशन से गाड़ी पर बिठाकर लौटे तो देखा कि पुराने जमाने से आज तक के उनके सुख-दुख के साथी दोस्त राजूभाई उनसे मिलने के लिए आए हुए उनके इंतजार में बैठे हैं और वही दूसरी ओर उनकी पत्नी बीना अपनी साड़ी के पल्लू को पकड़े आंसू बहा रही थी इससे पहले वह कुछ कह पाते राजूभाई ने ही कहा...मुझे मालूम है यार...
बहुत बुरा लग रहा है ना दीपू का ऐसे ही छोड़कर जाना।
नहीं यार..."आज मुझे पहली बार यह एहसास हुआ कि जब यही बात मैंने आज से तीस साल पहले अपने बाबूजी से गांव में बोली थी तो उन्हें कैसा लगा होगा
समय का चक्र ही घूमा है..
भावना तो वही है यार...
कुछ नहीं बदला बस महसूस करने वाले दिल बदले है...
कहते हुए रामेश्वर बाबू भी फूटफूट कर रो पड़े।"