कोई तुझे क्या देगा माँ ,सब कुछ तो तुझसे पाया है ॥सब कुछ तो सबने कह दिया । अब मैँ क्या कहूँ?तेरे बारे में माँ । क्या लिखू...
हर लम्हा तुझे भूलने को दिल चाहता है अब पर तुझे भूलने की हर दुआ में तेरा नाम आता है अब तुझे भूलने को दिल चाहता है अब
कविता मेरी हरी-भरी हरीयाली में बागिया की खुशबू बहारो में सृजन और संवेदना में दु:ख दर्द सच और झूठ में।
आज वह पदक धन्य हो गया जब वह हलधर नाग जैसे विभूषण के हाथों में शोभायमान हुआ।
असमय दायित्व आने पर पहले तो वह एक वर्ष तक संभल ही नहीं पाई
कवि सम्मेलन के बाद शहर में जहाँ सुनंदा के अपने प्रशंसकों को धोखा देने की चर्चा थी तो वहीं दिनेश भास्कर ने अपने काव्य पाठ...