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ये वक्त की...
ये वक्त की...
ये वक्त की...
“
ये वक्त की नज़ाकत है साहब
ना बराबर नाही आगे किसी को देखना चाहता।
इंसा करता रहता है कोशिश पूरी
पर मुट्ठी की रेत की नाईं वक्त फिसलते जाता। ।
”
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