Dr. Madhukar Rao Larokar
Literary Colonel
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1998 रायपुर (छग)में काव्य संग्रह "पशीने की महक"प्रकाशित हुई ।विविध पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन का प्रकाशन एवं तिथि 02/06/2019 को साहित्य संगम बेंगलोर से साझा काव्य संग्रह "भारत के कलमकार"विमोचित हुआ।गाडरवारा (मध्यप्रदेश)में 07/08/19को अखिल भारतीय काव्य संग्रह विमोचित किया गया "काव्य चेतना... Read more

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मुकद्दर ने आज मेरी चाहत का दामन नहीं भरा तो क्या हुआ। कल के बेहतर के लिए मैं अभी से जतन करूंगा कभी तो मेरी किस्मत संवर ही जायेगी। ।

ये वक्त की नज़ाकत है साहब ना बराबर नाही आगे किसी को देखना चाहता। इंसा करता रहता है कोशिश पूरी पर मुट्ठी की रेत की नाईं वक्त फिसलते जाता। ।

खाना कोई खजाना नहीं है, के खा-खाकर संपदा बढ़तीं जायेगी।उम्र और सेहत देख खाओ खाना ,वर्ना ये बीमारी को आमंत्रण देती जायेगी ।।

किस उम्र में आकर मिले,हो तुम हमसे सनम। जब हाथों की मेह॔दी ,बालों में लग रही है। । डॉ मधुकर राव लारोकर बेंगलोर

अवकाश तलाश करता रहा , बहुत खोजने पर भी ना मिला। ना करार मिला ना यार मिला, खुद को खोजता रहा वह भी ना मिला। । डॉ मधुकर राव लारोकर बेंगलोर

जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन में हम हर काम करते हैं पहली बार। उम्र का काम है वक्त के साथ बढ़ते जाना, प्रतिभा कहाँ उम्र की मोहताज रहती है एक भी बार। डॉ मधुकर राव लारोकर बेंगलोर

सोनू-मम्मी खेलते समय मुझे गोलू भैया ने मारा। मम्मी-तूझे कितनी बार कहा है कि बाहर से मार खाकर घर मत आया कर। तूने फिर वैसा ही किया। सोनू-मम्मी आपने भैया को भी मारकर आना है, ऐसा नहीं कहा था?

शीशे के मानिंद हूँ मुझे आरपार देख लो। किताब खुली है मेरे वजूद की मुझे पढ़कर खुश हो लो।।

घर तो घर होता है परिवार की खुशियाँ जहाँ है रहती। टूटा हो,फूटा हो ,या हो कच्चा अपनी छत होने का गुमान कराती।। सुख दुख में रहता, परिवार का साथ और करते दूजे को देने का प्रयास। संघर्ष, पीड़ा ,अपनापन बांटते सभी आपस में एक होने का रहता एहसास। । ये घर है,


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