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सुना हैं..
उसके शहर में काफ़ी बरसात हो रहीं हैं,
तुम_
मेरी डायरी के कुछ लिखे पन्ने फाड़कर
उनकी कुछ कश्तियां बनाकर बहा आओ,
उसे शायद-ए-शायर फ़िर याद आ जाए
फ़र्ज़-ए-दर्द मेरे हमदर्द से मुहैय्या कर आओ..!
- ✍ मृदुंग®
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