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रुतबा मेरा...
रुतबा मेरा...
रुतबा मेरा...
“
रुतबा मेरा सिकन्दर सा था,
नसीब अश्के समन्दर हुआ।
फिर मैंने भी बदल ली फितरत
झूठी मुस्कान का धुरन्दर हुआ।
रजनी श्री बेदी
जयपुर
राजस्थान
”
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