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डुबाती...
डुबाती हूँ हर...
डुबाती हूँ...
“
डुबाती हूँ हर रोज़ इस कलम को मुस्कानों की स्याही में,
पर न जाने क्यों , ये हर दम गमों का समंदर ही लिखती है।
©नेहा जिंदल
”
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